निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम सवाल उठाया – क्या जीएसटी कानून के तहत की गई तलाशी या निरीक्षण (inspection) तब वैध माना जाएगा जब उसमें दो स्वतंत्र और सम्मानित गवाह मौजूद न हों?
मामला एक ऐसे करदाता से जुड़ा था, जिसकी व्यावसायिक जगह पर बिहार वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 (BGST Act) की धारा 67 के तहत तलाशी की गई थी। यह धारा साफ कहती है कि तलाशी की प्रक्रिया दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों के अनुरूप ही होनी चाहिए। CrPC की धारा 100 यह अनिवार्य करती है कि तलाशी के समय दो स्वतंत्र और सम्मानित गवाहों की मौजूदगी होनी चाहिए और उनके हस्ताक्षर तलाशी कार्यवाही में दर्ज किए जाने चाहिए।
याचिकाकर्ता (करदाता) ने आकलन आदेश को चुनौती दी और कहा कि तलाशी प्रक्रिया ही दोषपूर्ण थी क्योंकि दो स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं थे। अदालत ने माना कि भले ही करदाता ने यह आपत्ति तुरंत तलाशी दल के सामने न उठाई हो, फिर भी यह एक गंभीर कानूनी खामी है जिसे बाद में भी चुनौती दी जा सकती है।
जब राज्य सरकार ने अपने दस्तावेज पेश किए, तो एक गंभीर अंतर सामने आया। तलाशी के समय करदाता को जो कार्बन कॉपी दी गई थी, उसमें केवल एक गवाह का नाम था और उसका भी कोई पूरा पता या मोबाइल नंबर दर्ज नहीं था। लेकिन विभाग ने अदालत में जो प्रति दी, उसमें बाद में अतिरिक्त हस्ताक्षर जोड़े गए दिखाई दिए। अदालत ने इसे गंभीरता से लिया और अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से बुलाकर मूल रिकॉर्ड मंगवाया।
मूल रिकॉर्ड की जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि तलाशी के समय वास्तव में केवल एक गवाह ही मौजूद था और उसकी पहचान भी सही तरह से दर्ज नहीं की गई थी। अदालत ने कहा कि “अगर स्थानीय लोगों को गवाह के रूप में लाना मुश्किल हो तो अधिकारी नजदीकी सरकारी दफ्तर से कर्मचारियों को बुलाकर यह प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं।”
चूंकि तलाशी प्रक्रिया ही CrPC के नियमों के अनुरूप नहीं हुई थी, इसलिए उस पर आधारित पूरा आकलन आदेश अवैध ठहराया गया। अदालत ने आदेश रद्द करते हुए कर अधिकारियों को भविष्य में सख्ती से कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की हिदायत दी।
इस फैसले से एक बड़ा संदेश यह गया कि जीएसटी तलाशी शक्तियाँ असीमित नहीं हैं, बल्कि कानून द्वारा तय की गई सुरक्षा उपायों से बंधी हुई हैं। अगर इन सुरक्षा उपायों का पालन नहीं किया गया, तो पूरा मामला अदालत में गिर सकता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- करदाताओं के लिए: अगर जीएसटी अधिकारी तलाशी करते समय दो स्वतंत्र गवाह नहीं लाते या उनकी पूरी जानकारी दर्ज नहीं करते, तो उसके आधार पर बना आकलन आदेश चुनौती देकर रद्द कराया जा सकता है। इसलिए तलाशी के समय दी गई कॉपी (carbon copy) को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है।
- सरकारी विभाग के लिए: यह फैसला चेतावनी है कि तलाशी करते समय केवल कर संग्रह पर ध्यान न देकर कानूनी प्रक्रिया का पालन करना भी उतना ही जरूरी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “स्थानीय गवाह न मिलने” जैसी दलीलें स्वीकार नहीं होंगी। अधिकारियों को पास के सरकारी दफ्तरों से स्वतंत्र गवाह बुलाने का विकल्प हमेशा खुला है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या BGST Act की धारा 67 के तहत तलाशी में CrPC की धारा 100 लागू होगी?
✔ हाँ। तलाशी में दो स्वतंत्र गवाह जरूरी हैं। - क्या दोषपूर्ण तलाशी पर आधारित आकलन आदेश वैध रह सकता है?
✘ नहीं। अदालत ने आदेश रद्द कर दिया। - क्या करदाता यह आपत्ति बाद में भी उठा सकता है?
✔ हाँ। अगर खामी प्रक्रिया की जड़ से जुड़ी है तो इसे कभी भी उठाया जा सकता है। - क्या “गवाह उपलब्ध न होने” का बहाना मान्य है?
✘ नहीं। अधिकारी पास के सरकारी कार्यालय से गवाह बुला सकते हैं।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता (जीएसटी करदाता) बनाम राज्य कर विभाग।
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 8422 of 2024.
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन एवं माननीय न्यायमूर्ति श्री पार्थ सारथी। निर्णय दिनांक: 27-11-2024।
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री बिजय कुमार गुप्ता, अधिवक्ता; श्री मनीष कुमार, अधिवक्ता।
- प्रतिवादी (राज्य) की ओर से: श्री विकास कुमार, स्थायी अधिवक्ता (11)।
निर्णय का लिंक
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