निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें अनुरोध किया गया कि राज्य सरकार बिहार के सभी जिला सिविल न्यायालयों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) की स्थापना करे। यह याचिका एक अधिवक्ता द्वारा दायर की गई थी, जो खुद भी हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि जिला न्यायालयों में रोज़ाना हजारों न्यायाधीश, अधिवक्ता, कर्मचारी और आम जनता आती है, लेकिन वहां कोई बुनियादी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21) सिर्फ जीवित रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि सम्मानपूर्वक और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार भी है।
इसके जवाब में बिहार सरकार ने एक पूरक हलफनामा दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकार पहले ही निर्णय ले चुकी है कि बिहार के सभी 38 जिला न्यायालय परिसरों में PHC स्थापित किए जाएंगे। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई है और वित्तीय स्वीकृति भी दी जा चुकी है। 18 जुलाई 2019 को लेखा महानियंत्रक को इस बारे में पत्र भेजा गया था।
इन PHC में एक मेडिकल ऑफिसर, एक स्टाफ नर्स (ANM), एक फार्मासिस्ट, एक लैब इंस्ट्रक्टर और एक लिपिक (LDC) की नियुक्ति की जाएगी। कुल मिलाकर 180 पदों की स्वीकृति दी गई है।
महाधिवक्ता ने अदालत को आश्वस्त किया कि तीन महीने के भीतर ये स्वास्थ्य केंद्र कार्यरत हो जाएंगे और आगे चलकर प्रत्येक PHC में दो डॉक्टरों की नियुक्ति भी की जाएगी, जैसा कि केंद्र सरकार के मानकों में है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने कहा कि चूंकि राज्य सरकार पहले ही कदम उठा चुकी है, इसलिए अब इस याचिका को आगे बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है और इसे समाप्त किया जाता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला न्यायपालिका के स्वास्थ्य और कार्य-परिस्थितियों को सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह न केवल न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं के लिए बल्कि हजारों आम नागरिकों के लिए भी फायदेमंद है, जो अपने मामलों के सिलसिले में कोर्ट परिसर आते हैं।
बिहार सरकार द्वारा लिया गया यह नीतिगत निर्णय अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। यह दिखाता है कि कैसे जनहित याचिकाएं प्रशासनिक सुधारों का माध्यम बन सकती हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या राज्य सरकार अनुच्छेद 21 के तहत न्यायालय परिसरों में स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए बाध्य है?
- निर्णय: हाँ, कोर्ट ने माना कि यह मूल अधिकार का हिस्सा है और राज्य सरकार पहले ही इस दिशा में कदम उठा चुकी है।
- मुद्दा: क्या याचिका को चलाते रहना चाहिए जब सरकार पहले से ही कार्रवाई कर रही है?
- निर्णय: नहीं, क्योंकि राहत पहले ही प्रदान की जा रही है, कोर्ट ने याचिका समाप्त कर दी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Francis Coralie Mullin v. Union Territory of Delhi, (1981) 1 SCC 608
- Consumer Education and Research Centre v. Union of India, (1995) 3 SCC 42
मामले का शीर्षक
Ranjan Kumar Jha v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7526 of 2018
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 150
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री संजय करोल, मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्री दिनेश कुमार सिंह, न्यायाधीश
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री अवनींद्र कुमार झा, याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता, राज्य सरकार की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzUyNiMyMDE4IzEjTg==-1XR6kdnWX2M=
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