पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: बिहार हाउसिंग बोर्ड के मूल्य विवाद पर राहत 2020 में

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: बिहार हाउसिंग बोर्ड के मूल्य विवाद पर राहत 2020 में

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला बिहार हाउसिंग बोर्ड की एक आवासीय योजना से जुड़ा था जिसमें एक आवेदक (याचिकाकर्ता) को चापरा में एक भूखंड आवंटित किया गया था। यह आवंटन मध्यम आय वर्ग की योजना के अंतर्गत किया गया था। याचिकाकर्ता ने सभी किस्तें जमा कर दीं और उसे भूखंड का कब्जा भी दे दिया गया। कुछ वर्ष बाद, हाउसिंग बोर्ड ने अचानक अतिरिक्त राशि की मांग करते हुए दो पत्र भेजे — एक 10 अगस्त 2011 का और दूसरा 25 अक्टूबर 2013 का। बोर्ड ने कहा कि यह राशि मूल्य में बढ़ोतरी और देरी से किस्तें जमा करने के कारण देय है।

याचिकाकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और कहा कि उसने योजना के अनुसार पूरी राशि पहले ही जमा कर दी थी और अब अतिरिक्त मांग अवैध है। उसने यह भी अनुरोध किया कि बोर्ड को निर्देश दिया जाए कि वह भूखंड का स्थायी पट्टा (lease deed) निष्पादित करे।

बिहार हाउसिंग बोर्ड ने जवाब में कहा कि योजना के समय तय की गई कीमत “tentative” यानी अस्थायी थी। बोर्ड ने यह भी कहा कि आवेदक ने कुछ किस्तें देरी से जमा की थीं, जिससे ब्याज और बढ़ी हुई लागत वसूलना आवश्यक था।

न्यायालय ने पाया कि दोनों पक्षों के बीच राशि को लेकर वास्तविक विवाद है — कौन सी किस्तें समय पर जमा हुईं, मूल्य में बढ़ोतरी क्यों की गई, और क्या इसके लिए उचित कारण बताए गए या नहीं। ऐसी स्थिति में न्यायालय ने कहा कि वह खुद इस विवाद की गणना नहीं कर सकता क्योंकि यह तथ्यात्मक मामला है। इसके बजाय, न्यायालय ने यह स्पष्ट निर्देश दिया कि आवेदक अपनी शिकायत हाउसिंग बोर्ड की Pricing Committee (मूल्य निर्धारण समिति) के समक्ष प्रस्तुत करे।

न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि जब तक समिति निर्णय नहीं दे देती, तब तक बोर्ड की ओर से की गई दोनों अतिरिक्त मांगें (10.08.2011 और 25.10.2013) अस्थायी रूप से रोकी जाएंगी। आवेदक को निर्देश दिया गया कि वह 12 हफ्तों के भीतर समिति में आवेदन करे और समिति को कहा गया कि वह आवेदन मिलने के तीन महीने के अंदर कारण सहित आदेश पारित करे।

इस प्रकार, न्यायालय ने विवाद का निपटारा खुद नहीं किया बल्कि उसे उचित मंच यानी Pricing Committee के पास भेज दिया ताकि निष्पक्ष जांच हो सके।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला उन सभी आवासीय योजना धारकों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें वर्षों बाद बोर्ड द्वारा अचानक अतिरिक्त धन की मांग का सामना करना पड़ता है। न्यायालय ने यह सिद्धांत स्पष्ट किया कि यदि कोई मूल्य वृद्धि की जाती है, तो बोर्ड को उसके ठोस कारण बताने होंगे। केवल “tentative price” का हवाला देकर लाखों रुपये की मांग नहीं की जा सकती।

इस निर्णय से आम लोगों को यह राहत मिली कि उनके पास अब एक निश्चित प्रक्रिया है — Pricing Committee के माध्यम से वे अपनी शिकायत रख सकते हैं। अब किसी भी प्रकार की मूल्य वृद्धि, ब्याज या अतिरिक्त शुल्क की जांच पारदर्शी तरीके से की जा सकेगी।

सरकारी निकायों के लिए यह निर्णय एक चेतावनी है कि वे अपने रिकॉर्ड, मूल्य निर्धारण और सूचना पारदर्शिता पर ध्यान दें। यदि कोई भी निर्णय बिना ठोस कारणों के लिया गया तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या उच्च न्यायालय को मूल्य विवाद पर निर्णय देना चाहिए या Pricing Committee को भेजना चाहिए?
    ➤ न्यायालय ने कहा कि यह विवाद तथ्यात्मक और गणना से जुड़ा है, इसलिए Pricing Committee ही इसका उपयुक्त मंच है।
  • अतिरिक्त मांग पत्रों की स्थिति क्या होगी?
    ➤ न्यायालय ने कहा कि समिति के निर्णय तक दोनों मांग पत्रों को अस्थायी रूप से रोक दिया जाए। यदि आवेदक 12 हफ्तों में शिकायत नहीं करता तो बोर्ड कानून के अनुसार आगे बढ़ सकता है।
  • समिति को समय सीमा और प्रक्रिया का पालन कैसे करना होगा?
    ➤ समिति को तीन महीने में कारण सहित आदेश देना होगा और दोनों पक्षों की बात सुननी होगी।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Manju Singh v. Bihar State Housing Board & Ors., 2001(1) PLJR 144
  • Shiv Sahai Verma v. State of Bihar & Ors., 2006(4) PLJR 264
  • Bihar State Housing Board & Ors. v. Shiv Sahai Verma & Anr., 2008(2) PLJR 384
  • Rajiv Kumar v. Bihar State Housing Board, 2013(1) PLJR 864

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Division Bench द्वारा दिए गए पूर्व निर्णय, जिनमें Pricing Committee को उपयुक्त मंच बताया गया।
  • न्यायालय ने पाया कि बोर्ड ने मूल्य बढ़ोतरी का कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया, इसलिए विवाद समिति को भेजा गया।

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य हाउसिंग बोर्ड एवं अन्य (पटना उच्च न्यायालय)

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 25697 of 2013

उद्धरण (Citation)

2021(3) PLJR 70

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय कुमार सरोज, अधिवक्ता
प्रतिवादी (हाउसिंग बोर्ड) की ओर से: श्री ललित किशोर, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं श्रीमती बिनिता सिंह, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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