निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने सिविल रिट याचिका संख्या 20694/2018 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह मामला इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS), पटना में ऑर्थोपेडिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर पद की नियुक्ति से जुड़ा था।
एक डॉक्टर (याचिकाकर्ता), जिन्होंने IGIMS में सीनियर रेज़िडेंट और बाद में अस्थायी असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया था, ने दो अन्य उम्मीदवारों की नियुक्ति को चुनौती दी। उन्होंने दावा किया कि उनकी योग्यता और अनुभव दोनों ही चयनित उम्मीदवारों से अधिक थे, फिर भी चयन समिति ने नियमों के विरुद्ध कम अंक देकर उन्हें वेटिंग लिस्ट में डाल दिया और दूसरे उम्मीदवारों को अधिक अंक देकर चुन लिया।
मामले की पृष्ठभूमि
IGIMS ने वर्ष 2018 में विज्ञापन संख्या 04/Faculty/IGIMS/Estt./2018 के तहत विभिन्न फैकल्टी पदों के लिए आवेदन मांगे थे। याचिकाकर्ता ने ऑर्थोपेडिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया। उन्होंने एमबीबीएस और एमएस (ऑर्थोपेडिक्स) की डिग्री PMCH से प्राप्त की थी और चार वर्षों से अधिक का शिक्षण अनुभव भी था।
परिणाम जारी होने पर याचिकाकर्ता का नाम वेटिंग लिस्ट में रखा गया, जबकि दो अन्य डॉक्टरों की नियुक्ति नियमित रूप से कर दी गई। याचिकाकर्ता का आरोप था कि चयन समिति ने मूल्यांकन के दौरान अंकों का वितरण नियमों से हटकर किया और कुछ उम्मीदवारों को जानबूझकर अधिक अंक दिए।
याचिकाकर्ता के तर्क
- चयन समिति ने उत्तरदाताओं (Respondents) को अनुभव और शोध प्रकाशन के लिए निर्धारित सीमा से अधिक अंक दे दिए।
- एक उम्मीदवार को ऐसे प्रशिक्षण और अनुभव के लिए अंक दिए गए जो आवेदन की अंतिम तिथि के बाद प्राप्त हुआ था, जो नियमों के विरुद्ध है।
- शोध प्रकाशन (research publications) के अंक गलत तरीके से बढ़ाए गए और वास्तविक प्रमाण नहीं थे।
- पूरी चयन प्रक्रिया अपारदर्शी (opaque) थी और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया।
उत्तरदाताओं (संस्थान और चयनित उम्मीदवारों) का पक्ष
- IGIMS की ओर से कहा गया कि संस्थान ने AIIMS, नई दिल्ली की भर्ती नीति का पालन किया।
- चयन समिति में आठ विशेषज्ञ शामिल थे, जिन्होंने उम्मीदवारों की गुणवत्ता के आधार पर अंक दिए।
- याचिकाकर्ता ने बिना आपत्ति जताए साक्षात्कार में भाग लिया, इसलिए अब वह प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठा सकते।
- विशेषज्ञ समिति द्वारा दिए गए अंकों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती — यह विशेषज्ञों का अधिकार क्षेत्र है।
न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष
माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार झा ने पूरे अभिलेखों और मूल्यांकन सूची (Annexure-B) का विस्तार से अध्ययन किया और पाया कि चयन प्रक्रिया में कई गंभीर त्रुटियाँ थीं।
(1) उत्तरदाता संख्या 3 के मामले में:
- केवल 3 वर्ष का शिक्षण अनुभव था, परंतु उसे 2 अंक दे दिए गए जबकि नियम के अनुसार 1 अंक ही मिलना चाहिए था।
- शोध प्रकाशन (Research Publication) के लिए 15 अंक दिए गए जबकि उसके प्रमाण केवल 12 अंकों के योग्य थे।
- कुल अंक 51 होने चाहिए थे लेकिन 55 दर्ज किए गए।
(2) उत्तरदाता संख्या 4 के मामले में:
- DNB डिग्री को मान्यता मिली, पर शिक्षण अनुभव अधूरा था।
- कुछ अनुभव और प्रशिक्षण आवेदन की अंतिम तिथि के बाद प्राप्त हुए, फिर भी उनके लिए अंक दिए गए।
- शोध पत्रों के लिए 15 अंक दे दिए गए जबकि केवल 6 अंक मिलना उचित था।
- पेपर प्रस्तुति और प्रशिक्षण के लिए भी गलत अंक जोड़े गए।
- इस तरह उत्तरदाता 4 को वास्तविक 46 अंकों के बजाय 62 अंक दे दिए गए, जो पूरी तरह गलत था।
(3) याचिकाकर्ता के मामले में:
- 4 वर्ष से अधिक का अनुभव था, इसलिए 2 अंक मिलने चाहिए थे, पर केवल 1 अंक दिया गया।
- शोध पत्रों के लिए 15 अंक मिलने चाहिए थे, लेकिन केवल 11 दिए गए।
- सही गणना के अनुसार याचिकाकर्ता को कुल 57 अंक मिलने चाहिए थे — जो चयनित उम्मीदवारों से अधिक थे।
न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी उम्मीदवार की पात्रता का आकलन आवेदन की अंतिम तिथि तक ही किया जाना चाहिए। बाद में प्राप्त डिग्री या प्रशिक्षण को ध्यान में नहीं लिया जा सकता।
साथ ही, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि DNB और MS डिग्री को समान माना जाता है, लेकिन शिक्षण पदों पर MS डिग्री धारक को प्राथमिकता दी जा सकती है।
न्यायालय का निर्णय
- न्यायालय ने माना कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों का पालन नहीं हुआ।
- उत्तरदाता संख्या 4 की नियुक्ति रद्द कर दी गई क्योंकि उन्हें अनुचित रूप से अधिक अंक दिए गए थे।
- IGIMS को निर्देश दिया गया कि वह तीन माह के भीतर याचिकाकर्ता के नियमित नियुक्ति के लिए विचार करे।
- उत्तरदाता संख्या 3 की नियुक्ति को वैध माना गया क्योंकि एक पद वैध रूप से भरा गया था।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला सरकारी और शैक्षणिक संस्थानों में भर्ती प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने वाला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि—
- मूल्यांकन के मानदंड (evaluation criteria) का पालन सख्ती से होना चाहिए।
- विशेषज्ञ समिति मनमाने तरीके से अंक नहीं बाँट सकती।
- अदालतें चयन प्रक्रिया में तभी हस्तक्षेप करेंगी जब स्पष्ट अनियमितता या भेदभाव साबित हो।
यह निर्णय सरकारी भर्ती करने वाली एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है कि वे चयन के दौरान तय नियमों से विचलित न हों। वहीं उम्मीदवारों के लिए यह भरोसा देता है कि यदि मूल्यांकन में अन्याय हुआ है, तो न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या IGIMS की चयन प्रक्रिया विज्ञापन में बताए गए नियमों के अनुरूप थी?
➤ नहीं। चयन समिति ने तय अंकों की प्रणाली से भिन्न तरीके अपनाए। - क्या आवेदन की अंतिम तिथि के बाद प्राप्त योग्यता को माना जा सकता है?
➤ नहीं। पात्रता केवल अंतिम तिथि तक देखी जानी चाहिए। - क्या DNB और MS डिग्री शिक्षण पदों के लिए समान हैं?
➤ हाँ, पर MS डिग्री को प्राथमिकता दी जा सकती है। - अंतिम निर्णय:
➤ उत्तरदाता संख्या 4 की नियुक्ति रद्द, याचिकाकर्ता को नियुक्ति का अवसर देने का निर्देश।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Madan Lal v. State of J&K, AIR 1995 SC 1088
- D. Saroj Kumari v. R. Helen Thikaka, (2017) 9 SCC 478
- Manish Kumar Sahi v. State of Bihar, (2010) 12 SCC 576
- Ramesh Chandra Sah v. Anil Joshi, (2013) 11 SCC 309
- Dr. Basavaiah v. Dr. H.L. Ramesh, (2010) 3 PLJR SC 190
- Madras Institute of Development Studies v. Dr. Anandi, (2015) 4 PLJR 45 SC
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- University of Mysore v. C.D. Govinda Rao, AIR 1965 SC 491
- Dr. Basavaiah v. Dr. H.L. Ramesh, (2010) 8 SCC 372
- Madras Institute of Development Studies v. Dr. Sivasubramaniyam, (2015) 4 PLJR 45 (SC)
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case (CWJC) No. 20694 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 335
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार झा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री उमेश प्रसाद सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री राकेश कुमार, श्री अभिमन्यु वत्स, श्री रजनीकांत सिंह, श्री समीर सवरन
- उत्तरदाता संख्या 1 और 2 (IGIMS) की ओर से: श्री पी. के. शाही (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री सुनील कुमार सिंह
- उत्तरदाता संख्या 3 की ओर से: श्री मिथिलेश कुमार राय
- उत्तरदाता संख्या 4 की ओर से: श्री अंकित कटियार
निर्णय का लिंक
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