निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS), पटना और एक तमिलनाडु स्थित ठेकेदार के बीच हुए समझौते को स्वीकृति दी है। यह फैसला उस विवाद को समाप्त करता है जिसमें पहले ठेकेदार का अनुबंध रद्द कर दिया गया था और उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था।
मामला अस्पताल के अतिरिक्त ब्लॉक के निर्माण से जुड़ा है। निर्माण में देरी के कारण IGIMS प्रशासन ने ठेकेदार को काम से हटा दिया और ब्लैकलिस्ट कर दिया। इसके बाद ठेकेदार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
21 मार्च 2024 को कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुझाव दिया कि वे आपसी बातचीत से ऐसा हल निकालें जिससे अस्पताल का निर्माण कार्य जल्दी पूरा हो सके। इसके अनुसार एक नया समझौता (Annexure-J) तैयार हुआ जिसे कोर्ट में पेश किया गया।
इस नए समझौते के अनुसार:
- ब्लॉक A और D को 4 महीनों में पूरा करना होगा।
- बाकी का सारा कार्य अगले 4 महीनों में पूरा किया जाएगा।
- 2 महीने का समय ठेकेदार को तैयारी (mobilization) के लिए दिया गया है, क्योंकि पहले उसने अपना स्टाफ और मशीनरी साइट से हटा लिया था।
- ठेकेदार एक नया कार्य कार्यक्रम (Revised Work Schedule) सौंपेगा, जिसमें विस्तृत समय-सीमा होगी।
ठेकेदार की ओर से यह भी निवेदन किया गया कि उसे कार्य की निरंतरता बनाए रखने के लिए भुगतान (running bills) किया जाए। IGIMS प्रशासन ने कहा कि भुगतान सरकार द्वारा फंड जारी होने पर ही संभव होगा। राज्य सरकार ने आश्वासन दिया कि फंड की मांग आने पर शीघ्र कार्यवाही की जाएगी।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:
- पहले लिया गया अनुबंध रद्द करने और ब्लैकलिस्ट करने का निर्णय अब समाप्त होगा।
- यदि ठेकेदार द्वारा विलंब के कारण उचित स्पष्टीकरण दिया जाता है, तो जुर्माना भी माफ किया जा सकता है।
कोर्ट ने मामले की निगरानी करना जरूरी नहीं समझा, लेकिन दोनों पक्षों को यह स्वतंत्रता दी कि भविष्य में आवश्यकता होने पर वे याचिका पुनर्जीवित कर सकते हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय दोहरे महत्व का है:
- जनहित के लिए: यह फैसला सुनिश्चित करता है कि IGIMS जैसे प्रमुख अस्पताल की निर्माण योजना बिना किसी और विलंब के फिर से शुरू हो सके।
- ठेकेदारों और सरकारी विभागों के लिए: यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायालय व्यावहारिक समाधान को प्राथमिकता देता है, खासकर जब मामला सार्वजनिक सुविधा से जुड़ा हो।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि अगर ठेकेदार और सरकारी विभाग ईमानदारी से समझौते की ओर बढ़ें, तो कोर्ट पूर्व में हुए ब्लैकलिस्टिंग और अनुबंध रद्द करने जैसे निर्णयों को भी रद्द कर सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ब्लैकलिस्टिंग और अनुबंध रद्द करने का आदेश बरकरार रखा गया?
❌ नहीं। कोर्ट ने आपसी समझौते के बाद इन्हें रद्द कर दिया। - क्या कोर्ट द्वारा निगरानी की आवश्यकता है?
❌ नहीं। दोनों पक्ष स्वतंत्र रूप से कार्य करेंगे। जरूरत पर याचिका पुनर्जीवित की जा सकती है। - क्या ठेकेदार जुर्माने की माफी का हकदार है?
✅ हां, यदि वह कारण समझाने में सफल होता है, तो IGIMS जुर्माना माफ कर सकता है। - क्या तैयारी के लिए समय देना जरूरी था?
✅ हां। क्योंकि पहले सभी संसाधन हटा लिए गए थे, कोर्ट ने 2 महीने का समय देना उचित समझा।
मामले का शीर्षक
M/s PSK Engineering Construction and Co. v. The State of Bihar & Others
केस नंबर
CWJC No. 17498 of 2023 and CWJC No. 354 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री विकास कुमार, श्री रूद्रांक शिवम सिंह, श्री प्रवीण कुमार
- राज्य की ओर से: श्री सर्वेश कुमार (GP 24), श्री आलोक रंजन (AC to AAG-5)
- IGIMS की ओर से: श्री सुनील कुमार सिंह
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