निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला आयकर विभाग द्वारा की गई “सर्च एंड सीज़र” (छापेमारी और जब्ती) कार्रवाई से जुड़ा है। विभाग ने 27 अक्टूबर 2008 को एक वारंट जारी किया था, जिसके आधार पर 7 नवंबर 2008 को कई जगहों पर छापा मारा गया। इसमें एक बैंक लॉकर भी शामिल था, जिसे याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी ने संयुक्त रूप से संचालित किया था। इस लॉकर से नकदी, आभूषण और कई दस्तावेज जब्त किए गए।
विभाग का कहना था कि जब्त दस्तावेज़ों से यह संकेत मिला कि याचिकाकर्ता और उनके जुड़े कारोबारी समूह बड़े पैमाने पर अघोषित लेन-देन कर रहे थे। याचिकाकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर कर इस छापे को रद्द करने की मांग की। उनका तर्क था कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 में जो शर्तें तय की गई हैं, वे इस मामले में पूरी नहीं हुई थीं।
याचिका में मुख्य सवाल यह था:
- क्या आयकर विभाग द्वारा जारी किया गया छापे का वारंट गैर-कानूनी था?
- क्या उच्च न्यायालय रिट अधिकार क्षेत्र में जाकर यह देख सकता है कि विभाग के पास छापे के लिए “पर्याप्त” कारण थे या नहीं?
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने उस कंपनी से कई साल पहले इस्तीफ़ा दे दिया था, जिसके आधार पर विभाग ने कार्रवाई की। लेकिन विभाग ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ (ROC) के रिकॉर्ड दिखाए, जिनमें याचिकाकर्ता को उस समय भी निदेशक बताया गया था।
न्यायालय ने पहले धारा 132 का कानूनी ढांचा समझाया। इस प्रावधान के तहत, अगर विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के पास यह “विश्वास करने का कारण” है कि किसी व्यक्ति के पास अघोषित नकदी, गहने या संपत्ति है, तो वह छापा मारने का अधिकार दे सकता है। यह अधिकार बहुत गंभीर है क्योंकि इसमें किसी के घर, दफ्तर या लॉकर तक की तलाशी ली जा सकती है।
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों का हवाला दिया। उसमें कहा गया कि:
- अदालत यह जांच सकती है कि “कारण” दर्ज किए गए हैं और वे प्रासंगिक हैं या नहीं।
- लेकिन अदालत यह नहीं देख सकती कि वे कारण “काफी” हैं या नहीं।
- गोपनीयता के अधिकार (Right to Privacy) को भी ध्यान में रखते हुए, यह जरूरी है कि ऐसे मामलों में लिखित कारण मौजूद हों और विभाग की कार्रवाई मनमानी न हो।
पटना उच्च न्यायालय ने विभाग की “सैटिस्फैक्शन नोट” (संतुष्टि टिप्पणी) को देखा, जिसमें याचिकाकर्ता की भूमिका और उनसे जुड़े व्यवसायिक समूहों का विवरण था। अदालत ने माना कि यह पर्याप्त रूप से प्रासंगिक कारण थे। इसलिए छापा गैर-कानूनी नहीं कहा जा सकता।
जहां तक याचिकाकर्ता के इस्तीफ़े का सवाल था, अदालत ने कहा कि यह एक विवादित तथ्य है, जिसे रिट याचिका में तय नहीं किया जा सकता। ऐसे मुद्दे आयकर विभाग के समक्ष आकलन की कार्यवाही (Assessment Proceedings) में उठाए जा सकते हैं।
अंत में, अदालत ने माना कि:
- विभाग की कार्रवाई न तो अवैध थी और न ही मनमानी।
- अदालत छापे के कारणों की “पर्याप्तता” की जांच नहीं कर सकती।
इसलिए याचिका को खारिज कर दिया गया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला स्पष्ट करता है कि आयकर छापे को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि प्रभावित व्यक्ति मानता है कि कारण “कमज़ोर” थे। जब तक विभाग ने प्रासंगिक कारण लिखित रूप से दर्ज किए हैं, तब तक छापा वैध रहेगा।
आम नागरिकों के लिए यह संदेश है कि आयकर विभाग की ऐसी कार्रवाई को सीधे अदालत में चुनौती देना आसान नहीं है। उन्हें पहले विभागीय प्रक्रिया का पालन करना होगा और अपने तर्क वहीं पेश करने होंगे।
सरकार और विभाग के लिए यह फैसला याद दिलाता है कि छापा मारने से पहले हर बार ठोस दस्तावेज़ी कारण दर्ज करना अनिवार्य है। यह न केवल गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करता है बल्कि अदालत में विभाग की कार्रवाई को मजबूत भी बनाता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- छापे के वारंट की वैधता: विभाग द्वारा जारी वारंट वैध था। अदालत ने पाया कि प्रासंगिक कारण दर्ज किए गए थे।
- रिट अधिकार क्षेत्र की सीमा: अदालत केवल यह देख सकती है कि कारण “प्रासंगिक” थे, लेकिन उनकी “पर्याप्तता” की जांच नहीं कर सकती।
- विवादित तथ्य: जैसे कि निदेशक पद से इस्तीफ़ा देना—ऐसे मुद्दे रिट याचिका में तय नहीं हो सकते।
- गोपनीयता और कानूनी सुरक्षा: तलाशी गोपनीयता पर गंभीर असर डालती है, इसलिए विभाग को कानून की शर्तों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- ITO v. Seth Bros., (1969) 2 SCC 324
- Pooran Mal v. Director of Inspection (Investigation), (1974) 1 SCC 345
- Director General of Income Tax (Investigation) v. Spacewood Furnishers Pvt. Ltd., (2015) 12 SCC 179
- Union of India v. Agarwal Iron Industries, (2014) 15 SCC 215
- K.S. Puttaswamy v. Union of India, (2017) 10 SCC 1
- District Registrar & Collector v. Canara Bank, (2005) 1 SCC 496
- P.R. Metrani v. CIT, (2007) 1 SCC 789
मामले का शीर्षक
Ajay Kumar Singh v. Director General of Investigation, Income Tax & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3792 of 2009 (Patna High Court)
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 415
माननीय न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री कृष्ण मोहन मिश्रा — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्रीमती अर्चना सिन्हा — आयकर विभाग की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMzc5MiMyMDA5IzEjTg==-FIozaeZPtMI=
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