पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: औद्योगिक नीति 2006 के तहत एंट्री टैक्स की वापसी पर बड़ा फैसला (2020)

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: औद्योगिक नीति 2006 के तहत एंट्री टैक्स की वापसी पर बड़ा फैसला (2020)

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला बिहार की औद्योगिक प्रोत्साहन नीति, 2006 (Industrial Incentive Policy, 2006) से जुड़ा है, जिसमें राज्य सरकार ने नए उद्योगों को आकर्षित करने के लिए टैक्स में छूट और सब्सिडी देने का वादा किया था।

एक औद्योगिक इकाई, जो स्टील उत्पादों और औद्योगिक ऑक्सीजन गैस का निर्माण करती थी, ने यह याचिका दायर की। उसने कहा कि उसने सरकार की योजना के अनुसार बिहार वैट (VAT), बिहार एंट्री टैक्स और केंद्रीय बिक्री कर (CST) के तहत नियमित रूप से कर जमा किया है। फिर भी, सरकार ने वादा की गई सब्सिडी या टैक्स वापसी (reimbursement) की राशि का भुगतान नहीं किया।

सरकार ने केवल VAT के आधार पर सब्सिडी देने की बात कही और Entry Tax को पूरी तरह से बाहर कर दिया। याचिकाकर्ता ने इसे अनुचित और गैरकानूनी बताया, क्योंकि नीति और उसके संलग्नक (Annexures) में स्पष्ट रूप से लिखा है कि “Admitted VAT” में Entry Tax भी शामिल है।

नीति की पृष्ठभूमि

बिहार औद्योगिक प्रोत्साहन नीति, 2006 को राज्य सरकार ने 25 जुलाई 2006 को राजपत्र में प्रकाशित किया था। इसका उद्देश्य था — निवेश बढ़ाना और बिहार में उद्योगों को प्रोत्साहित करना।

इस नीति के क्लॉज़ 2(vi) के तहत यह प्रावधान था कि नया उद्योग अपने जमा किए गए “admitted VAT” का 80% तक रिइम्बर्समेंट (वापसी) प्राप्त कर सकेगा, जिसकी अधिकतम सीमा पूंजी निवेश के 300% तक होगी।

नीति के साथ जुड़े Annexure III (परिशिष्ट-3) में सरकार ने एक पासबुक फॉर्मेट दिया था, जिसमें उद्योगों द्वारा दिए गए करों का विवरण भरा जाता था। इस फॉर्मेट में तीनों करों — बिहार वैट, सेंट्रल सेल्स टैक्स और बिहार एंट्री टैक्स — का उल्लेख किया गया था। इससे यह स्पष्ट था कि “admitted VAT” में Entry Tax भी शामिल है।

विवाद की शुरुआत

वर्ष 2007 में वाणिज्य कर आयुक्त (Commissioner of Commercial Taxes) ने एक प्रशासनिक पत्र (Memo No. 188 दिनांक 31.09.2007) जारी कर पासबुक का फॉर्मेट बदल दिया और उसमें Entry Tax से जुड़ा कॉलम हटा दिया। यह बदलाव बिना मंत्रिपरिषद की मंजूरी और राजपत्र में प्रकाशन के किया गया था।

इस बदलाव से उद्योगों का बड़ा नुकसान हुआ क्योंकि अब Entry Tax की राशि पर कोई सब्सिडी नहीं दी जा रही थी। याचिकाकर्ता ने इस कार्रवाई को अदालत में चुनौती दी।

उसने यह दलील दी कि—

  • औद्योगिक नीति राज्य मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत नीति है, जिसे कोई अधिकारी अपने स्तर पर नहीं बदल सकता।
  • नीति में “admitted VAT” शब्द का अर्थ व्यापक है, जिसमें Entry Tax भी शामिल है।
  • बिना मंत्रिमंडल की स्वीकृति के नीति में संशोधन संवैधानिक रूप से अवैध है।
  • सरकार ने जो वादा किया था, उसके आधार पर उद्योगों ने करोड़ों रुपये का निवेश किया। अब लाभ से वंचित करना promissory estoppel (वचनबद्धता का उल्लंघन) का मामला है।

सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि VAT और Entry Tax अलग-अलग कर हैं, इसलिए नीति का लाभ केवल VAT पर मिलेगा।

न्यायालय की विश्लेषणात्मक टिप्पणी

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनकर नीति दस्तावेज़, उसके परिशिष्ट और पुराने न्यायिक निर्णयों का गहराई से अध्ययन किया।

अदालत ने पाया कि—

  • औद्योगिक नीति और उसके संलग्नक (Annexures) एक ही दस्तावेज़ का हिस्सा हैं। इन्हें अलग-अलग नहीं पढ़ा जा सकता।
  • Annexure III में तीनों करों — VAT, CST और Entry Tax — को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।
  • “admitted VAT” शब्द को व्यापक अर्थ में इस्तेमाल किया गया है, जिसमें Entry Tax भी आता है।
  • पासबुक फॉर्मेट में संशोधन बिना मंत्रिमंडल की स्वीकृति के अवैध है। किसी विभाग को नीति में बदलाव करने का अधिकार नहीं है।
  • याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए वैट और एंट्री टैक्स के आंकड़े RT-I और RT-III फॉर्म में एक ही कर मद (admitted VAT) के रूप में दर्ज होते हैं। इसलिए Entry Tax को बाहर नहीं किया जा सकता।

न्यायालय का निर्णय

अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को Entry Tax सहित सब्सिडी का पूरा लाभ मिलना चाहिए।

राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता द्वारा जमा किए गए करों का विवरण जांचकर योग्य सब्सिडी की राशि जारी करे और उसे वाणिज्य कर विभाग के माध्यम से भुगतान करे।

अदालत ने यह भी कहा कि जब कोई नीति मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत और राजपत्र में प्रकाशित हो जाती है, तो उसे केवल प्रशासनिक आदेश से नहीं बदला जा सकता। नीति में बदलाव के लिए वही प्रक्रिया अपनानी होगी जो उसकी स्वीकृति के समय अपनाई गई थी।

अदालत ने यह दोहराया कि औद्योगिक नीतियों की व्याख्या उदार (liberal) तरीके से की जानी चाहिए ताकि निवेशक और उद्योग राज्य में भरोसा बनाए रखें।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला न केवल संबंधित औद्योगिक इकाई के लिए बल्कि पूरे बिहार के औद्योगिक जगत के लिए महत्वपूर्ण है।

  1. सरकारी नीति की पारदर्शिता पर बल: अदालत ने साफ किया कि नीति में बदलाव केवल कैबिनेट स्तर पर ही संभव है। इससे प्रशासनिक पारदर्शिता बनी रहती है।
  2. निवेशकों का भरोसा: यह फैसला बताता है कि सरकार अपने वादों से पीछे नहीं हट सकती। यदि किसी नीति में लाभ का आश्वासन दिया गया है, तो उसका पालन अनिवार्य है।
  3. प्रोत्साहन नीतियों की उदार व्याख्या: अदालत ने नीति को संकीर्ण अर्थ में नहीं बल्कि उसके उद्देश्य — उद्योगों को बढ़ावा देने — के संदर्भ में पढ़ा।
  4. राज्य सरकार के लिए संदेश: बिना उचित स्वीकृति और राजपत्र प्रकाशन के कोई नीति संशोधित नहीं की जा सकती।
  5. औद्योगिक विकास को बढ़ावा: इस निर्णय से बिहार में निवेशकों का विश्वास मजबूत हुआ और भविष्य में उद्योग लगाने की संभावनाएँ बढ़ीं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या “admitted VAT” में Entry Tax भी शामिल है?
    ✔ हाँ। अदालत ने कहा कि नीति के Annexure III में तीनों करों का उल्लेख है, इसलिए Entry Tax भी उसका हिस्सा है।
  • क्या विभागीय अधिकारी पासबुक फॉर्मेट में बदलाव कर सकते हैं?
    ❌ नहीं। ऐसा केवल मंत्रिमंडल की स्वीकृति और राजपत्र में प्रकाशन के बाद ही किया जा सकता है।
  • क्या याचिकाकर्ता Entry Tax की वापसी का हकदार है?
    ✔ हाँ। अदालत ने राज्य सरकार को Entry Tax सहित पूरी सब्सिडी जारी करने का आदेश दिया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • M/s Suprabhat Steel Ltd. v. State of Bihar, 1995 (2) PLJR 536 — जिसमें यह कहा गया कि सरकार की नीतियों की व्याख्या निवेश प्रोत्साहन की भावना से की जानी चाहिए।
  • अन्य उच्च न्यायालयों के निर्णय जिनमें टैक्स रिइम्बर्समेंट से जुड़ी नीति व्याख्या की गई।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Suprabhat Steel Ltd. v. State of Bihar — यह सिद्ध करने के लिए कि प्रशासनिक आदेश नीति के प्रावधानों को बदल नहीं सकता।
  • उच्चतम न्यायालय के निर्णय — जिनमें promissory estoppel और नीति की व्याख्या के सिद्धांतों को स्पष्ट किया गया।

मामले का शीर्षक

औद्योगिक इकाई बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 2726 of 2015

उद्धरण (Citation)

2021(3) PLJR 73

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से: श्री एस. डी. संजय, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री मोहित अग्रवाल, श्रीमती प्रिया गुप्ता, श्री आलोक कुमार अग्रवाल, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्री श्रीराम कृष्ण, अधिवक्ता; श्री कुमार सौरव, ए.सी. टू एस.सी.-11

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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