निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें कई कंपनियों ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) पाने का हक मांगा था। इन कंपनियों का कहना था कि उन्होंने सप्लायर से सामान खरीदा और GST भी अदा किया, लेकिन टैक्स विभाग ने ITC इसलिए रोक दिया क्योंकि सामान उनके रजिस्टर्ड ऑफिस पर नहीं आया था, बल्कि सीधे अंतिम ग्राहक (end consumer) को भेज दिया गया था।
मामले का मुख्य उदाहरण CWJC No. 17914 of 2023 था, जिसमें याचिकाकर्ता एक ऐसी ट्रेडिंग कंपनी थी जो इलेक्ट्रॉनिक सामान, होम अप्लायंसेस, लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स और अन्य उपभोक्ता वस्तुएं बेचती थी। कंपनी का बिज़नेस मॉडल यह था कि सामान खरीदने के बाद वह सप्लायर को निर्देश देती थी कि सामान सीधे अंतिम ग्राहक को पहुंचा दिया जाए, बजाय इसके कि पहले वह कंपनी के गोदाम या ऑफिस में आए। इससे ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और समय दोनों बचते थे।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि CGST/BGST एक्ट की धारा 16(2)(b) के अनुसार, यदि सामान किसी तीसरे व्यक्ति को खरीदार के निर्देश पर भेजा जाता है, तो माना जाता है कि खरीदार ने सामान “प्राप्त” कर लिया है। इसलिए, भले ही फिजिकल डिलीवरी उनके ऑफिस पर न हुई हो, वे ITC लेने के पात्र हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सप्लायर ने सरकार को पूरा GST जमा किया है और सभी बिल व दस्तावेज नियमों के अनुसार उपलब्ध हैं।
वहीं, राज्य के टैक्स अधिकारियों का कहना था कि GST कानून के तहत ITC तभी मिलेगा जब सामान डीलर के पास फिजिकली पहुंचे। उन्होंने State of Karnataka vs. M/s Ecom Gill Trading Pvt. Ltd. जैसे फैसलों का हवाला दिया और कहा कि इस केस में “बिल-टू शिप-टू” जैसी कानूनी व्यवस्था लागू नहीं होती क्योंकि कोई औपचारिक वर्क कॉन्ट्रैक्ट या समझौता मौजूद नहीं था।
हाई कोर्ट ने CGST एक्ट की धारा 16 (ITC की पात्रता), धारा 31 (टैक्स इनवॉइस), धारा 35 (रिकॉर्ड रखने के नियम) और धारा 155 (प्रूफ का भार) का विस्तार से अध्ययन किया। कोर्ट ने पाया कि धारा 16(2)(b) की व्याख्या में साफ तौर पर लिखा है कि अगर सामान खरीदार के निर्देश पर किसी तीसरे को भेजा जाता है, तो उसे भी “सामान प्राप्त” माना जाएगा।
कोर्ट ने माना कि इस केस में सामान सीधे सप्लायर से ग्राहक तक भेजा गया, सभी टैक्स इनवॉइस सही हैं, GST का भुगतान सप्लायर ने कर दिया है और यह बात टैक्स विभाग ने भी नहीं नकारी। इसलिए केवल इस आधार पर कि सामान डीलर के ऑफिस में नहीं आया, ITC रोकना उचित नहीं है।
नतीजा: कोर्ट ने याचिकाएं मंजूर कीं, ITC खारिज करने के आदेश रद्द किए और टैक्स अधिकारियों को ITC प्रोसेस करने का निर्देश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश के व्यापारियों और ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि:
- यदि सामान सप्लायर से सीधे ग्राहक को भेजा जाता है, तो भी ITC का दावा किया जा सकता है।
- “बिल-टू शिप-टू” मॉडल GST कानून के तहत वैध है और आधुनिक बिज़नेस मॉडल को समर्थन देता है।
- जब तक GST का भुगतान सरकार को हो चुका है और सभी कागजात सही हैं, ITC रोका नहीं जा सकता।
यह निर्णय खासकर उन व्यवसायों के लिए राहतभरा है जो मल्टी-लोकेशन डिलीवरी या ड्रॉप-शिपिंग मॉडल पर काम करते हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या ITC के लिए डीलर को सामान का फिजिकल रिसीव होना अनिवार्य है?
निर्णय: नहीं, यदि सामान खरीदार के निर्देश पर किसी तीसरे को भेजा गया है, तो भी ITC मिलेगा। - मुद्दा: क्या GST भुगतान होने पर भी केवल डिलीवरी पते के आधार पर ITC रोका जा सकता है?
निर्णय: नहीं, ऐसा करना अनुचित है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Aastha Enterprises vs. State of Bihar, CWJC No. 10359 of 2023
- State of Karnataka vs. M/s Ecom Gill Trading Pvt. Ltd., 2023 SCC OnLine SC 248
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of Karnataka vs. M/s Ecom Gill Trading Pvt. Ltd., 2023 SCC OnLine SC 248
- SAJ Food Products Pvt. Ltd. vs. State of Bihar, CWJC No. 15465 of 2022
मामले का शीर्षक
M/s Utkrisht Trade Solutions Pvt. Ltd. & Ors. vs. State of Bihar & Ors. (संबद्ध मामलों सहित)
केस नंबर
CWJC No. 17914 of 2023 एवं अन्य संबद्ध मामले (जैसे CWJC No. 470 of 2024 इत्यादि)
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री तरुण गुलाटी, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री मृगांक मौली, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री बृस्केतु शरण पांडेय, अधिवक्ता; श्री अभिषेक कुमार, अधिवक्ता; श्री मदन कुमार, अधिवक्ता एवं अन्य।
राज्य की ओर से: श्री पी. के. शाही, महाधिवक्ता; श्री विकास कुमार, स्थायी अधिवक्ता 11; श्री विवेक प्रसाद, जी.पी. 7; एवं अन्य।
भारत सरकार की ओर से: डॉ. के. एन. सिंह, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल; श्री अंशुमान सिंह, अधिवक्ता।
निर्णय का लिंक
a4fc5437-e835-42f8-8585-c4d33c0d4bb9.pdf
“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”