निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि बीमा कंपनियाँ यदि तय समय पर दावा राशि नहीं चुकाती हैं, तो उन्हें ब्याज देना अनिवार्य है। यह मामला एक ठेकेदार से जुड़ा था, जिसने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के अंतर्गत सड़कों का निर्माण कार्य किया था। कार्य पूर्ण होने के बाद, सड़क को क्षति पहुँची और उसका नुकसान बीमा पॉलिसी के तहत कवर किया गया था।
बीमा कंपनी को पहले ही सर्वेयर की रिपोर्ट मिल चुकी थी, जिसमें नुकसान का आकलन भी किया गया था। इसके बावजूद, बीमा कंपनी ने लगभग आठ वर्षों तक दावा राशि नहीं दी। इसके खिलाफ ठेकेदार को कई बार कोर्ट का सहारा लेना पड़ा—कई रिट याचिकाएँ, अवमानना याचिकाएँ, और अपीलों के बाद अंततः कंपनी ने 2016 में दावा राशि चुकाई।
अब प्रश्न उठा कि क्या इस आठ साल की देरी पर कंपनी को ब्याज भी देना चाहिए। याचिकाकर्ता ने बीमा नियामक प्राधिकरण (IRDA) की 2002 की नीति का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट है कि यदि बीमा दावा समय पर नहीं चुकाया गया, तो बीमा कंपनी को “बैंक रेट + 2%” के हिसाब से ब्याज देना होगा।
लेकिन असली विवाद इस बात को लेकर था कि “बैंक रेट” का अर्थ क्या हो। याचिकाकर्ता का तर्क था कि बैंक रेट का मतलब आम आदमी की समझ के अनुसार बचत खाता या फिक्स्ड डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज होना चाहिए। वहीं बीमा कंपनी ने कहा कि “बैंक रेट” का मतलब वही है जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 49 में बताया गया है—यानी वह दर जिस पर RBI वाणिज्यिक बिलों की छूट करता है।
कोर्ट ने बीमा कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि “बैंक रेट” का अर्थ कानून में जो दिया गया है, वही मान्य होगा। चूंकि बीमा कंपनी ने RBI द्वारा घोषित बैंक रेट + 2% के हिसाब से ब्याज चुकाया है, इसलिए कोई अतिरिक्त भुगतान करने की जरूरत नहीं है।
हालाँकि कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को ब्याज की गणना कैसे की गई, इसका विवरण माँगने का अधिकार है। बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया कि यदि याचिकाकर्ता 30 दिनों के भीतर आवेदन करे, तो कंपनी अगले 30 दिनों में ब्याज गणना का चार्ट उपलब्ध कराए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उन सभी नागरिकों, ठेकेदारों और लाभार्थियों के लिए मार्गदर्शक है जो सरकारी बीमा योजनाओं या सार्वजनिक परियोजनाओं से जुड़े हैं। यह स्पष्ट करता है कि:
- बीमा दावा समय पर नहीं मिलने पर ब्याज पाने का अधिकार होता है।
- लेकिन “बैंक रेट” की परिभाषा कानून से ही तय होगी, न कि आम धारणाओं से।
- यह फैसला बीमा कंपनियों को चेतावनी देता है कि वे समय पर दावा निपटान करें, अन्यथा उन्हें ब्याज देना पड़ेगा।
- साथ ही, उपभोक्ताओं को भी बताता है कि वे ब्याज की गणना को समझने का अधिकार रखते हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बीमा कंपनी देरी से भुगतान पर ब्याज देने की जिम्मेदार है?
✔ हाँ, IRDA की 2002 की नीति के अनुसार बैंक रेट + 2% ब्याज देना अनिवार्य है। - “बैंक रेट” का अर्थ क्या है?
✔ कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका अर्थ RBI अधिनियम की धारा 49 में दिया गया है, न कि बैंक खाता ब्याज या फिक्स्ड डिपॉजिट दर। - क्या याचिकाकर्ता को अधिक ब्याज पाने का हक है?
❌ नहीं, क्योंकि बीमा कंपनी ने सही दर से भुगतान कर दिया है। - क्या याचिकाकर्ता ब्याज की गणना का विवरण माँग सकता है?
✔ हाँ, और बीमा कंपनी को उसे 30 दिनों के भीतर यह विवरण देना होगा।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- CWJC No. 17027/2008
- CWJC No. 6395/2010
- LPA No. 455/2012
- CWJC No. 6065/2010
- LPA No. 468/2012
- MJC No. 2399/2015
- MJC No. 3095/2016
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (धारा 49)
- बीमा विनियमन (IRDA) नियम, 2002
- बीमा विनियमन नियम, 2017
मामले का शीर्षक
M/s Surendra Prasad Singh v. Union of India & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 11083 of 2016
CWJC No. 10667 of 2016
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 93
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति श्री राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री आदित्य नारायण सिंह – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री दुर्गेश कुमार सिंह – बीमा कंपनी की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTEwODMjMjAxNiMxI04=-w9ExVgO7B2I=
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