पत्नी की मामूली आमदनी होने पर भी अंतरिम भरण-पोषण पाने का अधिकार बरकरार: पटना हाई कोर्ट का फैसला

पत्नी की मामूली आमदनी होने पर भी अंतरिम भरण-पोषण पाने का अधिकार बरकरार: पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पति ने अपनी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने के आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट, नवादा ने पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत मुकदमा लंबित रहने के दौरान ₹5,000 प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण और ₹15,000 मुकदमे का खर्च देने का आदेश दिया था।

पति ने दलील दी कि वह अपनी पत्नी को सम्मानपूर्वक घर लाने के लिए तैयार है लेकिन पत्नी ही साथ नहीं रहना चाहती। उसने यह भी कहा कि पत्नी खुद कमाती है — कंप्यूटर टीचर के रूप में ₹10,000 प्रतिमाह — और इसलिए उसे भरण-पोषण की जरूरत नहीं है। साथ ही उसने यह भी कहा कि उसके पास खुद कोई आय नहीं है।

पत्नी ने पलटकर कहा कि शादी के बाद उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया। पंचायती के बाद उसके मायके वालों ने ₹2 लाख दिए, तब जाकर उसकी विदाई हुई। बेटी के जन्म के बाद फिर से ₹2 लाख की मांग शुरू हुई और जब उसके माता-पिता ने देने से इनकार किया, तो पति ने 2015 में उसे और बेटी को बस स्टैंड पर छोड़ दिया। तब से वह अपने 80 वर्ष के माता-पिता के साथ रह रही है और पति व उसके परिवार के खिलाफ धारा 498A के तहत केस भी दर्ज किया है।

पत्नी ने दावा किया कि उसके पास कोई स्वतंत्र आय नहीं है और पति की ज्वेलरी की दुकान है जिससे वह ₹1 लाख प्रतिमाह कमाता है, साथ ही किराये की भी आय है।

फैमिली कोर्ट ने पाया कि पति यह साबित नहीं कर सका कि पत्नी की कोई निश्चित आय है और उसने विवाह तथा बेटी के जन्म से भी इनकार नहीं किया। ऐसे में कोर्ट ने पत्नी को ₹5,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण और ₹15,000 मुकदमे का खर्च देने का आदेश दिया।

हाई कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा और कहा कि धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण का मकसद उस पक्ष को मदद देना है जिसके पास कोई आय नहीं है। यदि पत्नी की मामूली आमदनी भी हो, लेकिन वह खुद को और अपने बच्चे को सही से नहीं पाल सकती, तो उसे भरण-पोषण मिलना चाहिए।

कोर्ट ने सुनीता कच्छवाह बनाम अनिल कच्छवाह [(2014) 16 SCC 715] में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी थोड़ी बहुत कमाती है, उसका भरण-पोषण का दावा खारिज नहीं किया जा सकता।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला खासतौर पर उन महिलाओं के लिए राहत की बात है जो पति से अलग रहने के लिए मजबूर हैं और जिनकी आय आत्मनिर्भरता के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि:

  • मामूली कमाने वाली पत्नी भी भरण-पोषण की हकदार हो सकती है।
  • सिर्फ आरोप लगाकर कि पत्नी साथ नहीं रहना चाहती, पति भरण-पोषण की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता, खासकर जब पत्नी ने क्रूरता और दहेज के आरोप लगाए हों।
  • पति द्वारा पत्नी की आय साबित न कर पाने पर कोर्ट पत्नी को भरण-पोषण देने का आदेश दे सकती है।

इस फैसले से यह सिद्ध होता है कि कोर्ट, आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है, खासकर तब जब उसमें एक बच्चा भी शामिल हो।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • ❖ क्या मामूली कमाने वाली पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण मिल सकता है?
    ✔ हां, यदि उसकी आमदनी खुद को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है।
  • ❖ क्या पत्नी का matrimonial home लौटने से इनकार करना भरण-पोषण से वंचित कर सकता है?
    ❌ नहीं, खासकर जब क्रूरता और दहेज के आरोप हों।
  • ❖ क्या फैमिली कोर्ट का आदेश अवैध था?
    ❌ नहीं, हाई कोर्ट ने आदेश को वैध और उचित माना।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • सुनीता कच्छवाह व अन्य बनाम अनिल कच्छवाह, (2014) 16 SCC 715

मामले का शीर्षक
Pramod Kumar v. Sandhya Kumari Burnwal alias Sandhaya Deep

केस नंबर
Civil Misc. Jurisdiction No. 864 of 2018

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 100

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: डॉ. अंजनी प्रसाद सिंह, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी की ओर से: नाम आदेश में नहीं दिया गया है

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjODY0IzIwMTgjMSNO-zxesavApOVQ=

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Aditya Kumar

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