निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 13 मई 2025 को एक अहम फैसला सुनाते हुए इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (IOCL) द्वारा एक कांट्रेक्टर को ब्लैकलिस्ट किए जाने के आदेश को रद्द कर दिया। मामला गया (बिहार) के एक कांट्रेक्टर से जुड़ा था जिसे आईओसीएल ने “हॉलीडे लिस्ट” (यानि नए ठेके से प्रतिबंध) में दो साल के लिए डाल दिया था। आरोप था कि कांट्रेक्टर ने गुवाहाटी स्थित एक पेट्रोल पंप पर तूफान से क्षतिग्रस्त कैनोपी का निरीक्षण नहीं किया।
याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने न तो कैनोपी लगाई थी और न ही उसके निरीक्षण की जिम्मेदारी दी गई थी। यह कार्य किसी और कंपनी ने किया था। बावजूद इसके, मई 2024 में नोटिस जारी किया गया और अगस्त 2024 में ब्लैकलिस्ट करने का आदेश पारित कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह आदेश मनमाना है और बिना तथ्यों की जांच के पारित किया गया है। इसके अलावा नोटिस और आदेश गया (बिहार) स्थित कार्यालय पर सर्व किया गया था, इसलिए पटना हाईकोर्ट को इस मामले की सुनवाई का अधिकार है।
आईओसीएल ने आपत्ति उठाई कि घटना असम में हुई है, इसलिए बिहार में याचिका नहीं चलनी चाहिए। लेकिन कोर्ट ने Kusum Ingots & Alloys Ltd. v. Union of India (2004) और Nawal Kishore Sharma v. Union of India (2014) जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए कहा कि यदि आंशिक कारण बिहार में उत्पन्न हुआ (जैसे नोटिस की सेवा), तो यहां भी याचिका दायर की जा सकती है।
कोर्ट ने पाया कि आईओसीएल यह साबित करने में विफल रहा कि कांट्रेक्टर को कैनोपी निर्माण या निरीक्षण की जिम्मेदारी दी गई थी। कंपनी ने याचिकाकर्ता के जवाब को भी उचित तरीके से नहीं देखा। आदेश स्पष्ट रूप से ‘non-application of mind’ (बिना उचित विचार) का उदाहरण था।
नतीजतन, हाईकोर्ट ने 22 अगस्त 2024 का ब्लैकलिस्टिंग आदेश रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने आईओसीएल को यह छूट दी कि वह चाहे तो नया नोटिस जारी करे। निर्देश दिया गया कि आईओसीएल का महाप्रबंधक (इंजीनियरिंग), गुवाहाटी नया नोटिस जारी करें, याचिकाकर्ता का जवाब लें और 90 दिनों के भीतर एक कारणयुक्त आदेश पारित करें।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला कांट्रेक्टर और सरकारी कंपनियों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है:
- कांट्रेक्टरों के लिए: यह सुनिश्चित करता है कि ब्लैकलिस्टिंग केवल ठोस सबूत और स्पष्ट जिम्मेदारी के आधार पर ही हो सकती है।
- सरकारी कंपनियों के लिए: आईओसीएल जैसी संस्थाओं को याद दिलाता है कि निर्णय पारदर्शी और न्यायसंगत होना चाहिए।
- न्यायिक समीक्षा के लिए: कोर्ट ने दोहराया कि मनमाने या बिना आधार वाले प्रशासनिक आदेशों को रद्द किया जा सकता है।
- बिहार के कारोबारियों के लिए: यह स्थापित करता है कि नोटिस बिहार में सर्व होने पर पटना हाईकोर्ट में भी मामला उठाया जा सकता है।
यह फैसला बताता है कि ब्लैकलिस्टिंग जैसी कठोर कार्रवाई के लिए निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या पटना हाईकोर्ट के पास इस मामले में अधिकार-क्षेत्र था?
- निर्णय: हाँ।
- कारण: नोटिस और आदेश बिहार में सर्व हुए, जिससे आंशिक कारण-कार्रवाई यहीं उत्पन्न हुई।
- क्या आईओसीएल का ब्लैकलिस्टिंग आदेश वैध था?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: कंपनी ने कांट्रेक्टर की जिम्मेदारी साबित नहीं की और उसके जवाब पर उचित विचार नहीं किया।
- कोर्ट का अंतिम आदेश क्या था?
- निर्णय: 22 अगस्त 2024 का आदेश रद्द।
- निर्देश: आईओसीएल नया नोटिस जारी कर सकता है और 90 दिनों में कारणयुक्त आदेश पारित करना होगा।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Kusum Ingots & Alloys Ltd. v. Union of India, (2004) 6 SCC 254
- New India Assurance Co. Ltd. v. Union of India, AIR 2010 Delhi 43 (FB)
- Sterling Agro Industries Ltd. v. Union of India, ILR (2011) VI Delhi 729
- Vishnu Security Services v. RPFC, 2012 (129) DRJ 661 (DB)
- Nawal Kishore Sharma v. Union of India, (2014) 9 SCC 329
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- वही (मुख्य रूप से अधिकार-क्षेत्र तय करने के लिए)
मामले का शीर्षक
M/s ARD Associates बनाम Union of India एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 273 of 2025.
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार
- माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथि
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: सुश्री रिया गिरि, श्री शशांक शेखर दुबे
- प्रत्युत्तर पक्ष की ओर से: श्री अंकित कटियार, श्री अर्जुन कुमार (केंद्रीय सरकार अधिवक्ता)
निर्णय का लिंक
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