पटना हाईकोर्ट ने मकान बिक्री विवाद में दर्ज आपराधिक मामला रद्द किया, कहा - यह नागरिक विवाद है

पटना हाईकोर्ट ने मकान बिक्री विवाद में दर्ज आपराधिक मामला रद्द किया, कहा – यह नागरिक विवाद है

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक ऐसे आपराधिक मामले को रद्द कर दिया जिसमें एक व्यक्ति पर “विश्वासघात” (धारा 406 आईपीसी) का आरोप लगाया गया था। यह मामला एक जमीन और मकान के सौदे से जुड़ा था, जहाँ शिकायतकर्ता का आरोप था कि उसने ₹25 लाख में मकान खरीदने का सौदा किया और ₹23.5 लाख पहले ही दे चुका था, लेकिन न तो रजिस्ट्री हुई और न ही पैसे लौटाए गए।

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि जब वह पैसे मांगने गया तो उसे गाली दी गई और मारपीट की धमकी भी दी गई। इसके बाद उसने अदालत में आपराधिक मामला दायर कर दिया।

लेकिन आरोपी (याचिकाकर्ता) ने हाईकोर्ट से अपील की कि यह पूरा मामला आपराधिक नहीं बल्कि एक नागरिक (सिविल) विवाद है। उसका कहना था कि दोनों पक्षों के बीच कोई वैध रजिस्टर्ड एग्रीमेंट नहीं हुआ था और शिकायतकर्ता का उपाय सिविल अदालत में वाद दाखिल करना था, न कि आपराधिक केस करना।

हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि यह विवाद एक सिविल प्रकृति का है, और इसमें कोई आपराधिक भरोसे का उल्लंघन नहीं दिखता, मुकदमा को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि केवल गाली देने और मारने की धमकी देने जैसे सामान्य आरोप आपराधिक मामला चलाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो जमीन-जायदाद के सौदों में उलझते हैं। यह स्पष्ट करता है कि अगर कोई व्यक्ति सौदे में पीछे हट जाए, तो वह जरूरी नहीं कि अपराध कर रहा हो—बल्कि यह एक सिविल विवाद होता है जिसे सिविल अदालत में सुलझाना होता है।

सरकारी तंत्र और पुलिस के लिए भी यह संदेश है कि हर वित्तीय विवाद को अपराध का रंग न दिया जाए। इससे न्याय प्रणाली पर अनावश्यक बोझ नहीं पड़ेगा और असली अपराधों की जांच पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा।

सार्वजनिक रूप से यह निर्णय लोगों को सावधानी बरतने की सलाह देता है कि सभी सौदे कानूनी रूप से दर्ज (registered) हों और दस्तावेज पूरे व सही तरीके से बनाए जाएं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या संपत्ति सौदे में विफलता आपराधिक विश्वासघात मानी जा सकती है?
    • नहीं। यह सिविल प्रकृति का विवाद है, आपराधिक नहीं।
  • क्या बिना रजिस्ट्री और पूरी तरह हस्ताक्षरित दस्तावेज को वैध ‘एग्रीमेंट’ माना जा सकता है?
    • नहीं। ऐसा दस्तावेज कानूनन लागू नहीं होता।
  • क्या शिकायतकर्ता के आरोपों में अपराध की कोई ठोस बात है?
    • नहीं। गाली-गलौज और धमकी जैसे आरोप मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त नहीं।
  • क्या यह मुकदमा न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग था?
    • हाँ। यह मुकदमा परेशान करने और दबाव बनाने के उद्देश्य से किया गया था।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Anand Kumar Mohatta vs. State (2019) 1 PLJR (SC) 215
  • Indian Oil Corpn. v. NEPC India Ltd., (2006) 6 SCC 736
  • State of Haryana v. Bhajan Lal, 1992 Supp (1) SCC 335
  • State of Karnataka v. L. Muniswamy, (1977) 2 SCC 699

मामले का शीर्षक

Shyam Babu Yadav vs. The State of Bihar & Anr.

केस नंबर

Criminal Miscellaneous No. 3396 of 2015

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 460

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री बिजेन्द्र प्रसाद सिन्हा एवं श्री अंजनी कुमार सिन्हा – याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री जितेन्द्र प्रसाद सिंह एवं श्री अरविंद कुमार पांडे – विरोधी पक्ष संख्या 2 की ओर से
  • श्री झारखंडी उपाध्याय, एपीपी – राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMzMzk2IzIwMTUjMSNO-d2VSdWGkhoc=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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