पटना हाईकोर्ट ने 4 जनवरी 2019 को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में, जहानाबाद जिले के 2010 के चर्चित मेला हत्या कांड में चार दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। सभी चार अभियुक्तों की अपील खारिज कर दी गई, और ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया गया।
निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला 2 अप्रैल 2010 को जहानाबाद के गांधी मैदान में लगे एक मेले से जुड़ा है। पीड़ित और उसका भाई (सूचक) रात करीब 8 बजे मेला घूमने गए थे। अचानक एक बम विस्फोट और अफरातफरी के बाद, वे बाहर निकलने लगे। तभी मेले के प्रबंधक द्वारा रखे गए लगभग 30–35 लोगों ने लोहे की रॉड, डंडों, लाठी, पिस्तौल आदि से हमला कर दिया।
इस हमले में पीड़ित को सिर पर गंभीर चोटें आईं। उसे तुरंत जहानाबाद सदर अस्पताल ले जाया गया और फिर पटना के राजेश्वर अस्पताल रेफर किया गया, जहां 9 अप्रैल को उसकी मृत्यु हो गई।
पीड़ित के भाई ने घटना की जानकारी पुलिस को दी, लेकिन एफआईआर दर्ज कराने में देरी हुई क्योंकि परिवार का पूरा ध्यान इलाज पर था। पुलिस ने जांच के बाद चार लोगों को दोषी माना—राज कुमार यादव, टीजू यादव, मुन्ना यादव और सत्यनारायण प्रसाद। इन पर हत्या, लूट और गैरकानूनी भीड़ में शामिल होने के आरोप साबित हुए। ट्रायल कोर्ट ने चारों को उम्रकैद और 10,000 रुपये जुर्माने की सजा दी थी।
अपील में अभियुक्तों ने एफआईआर में देरी, गवाहों के बयान में अंतर, और मेडिकल रिपोर्ट में विसंगति जैसे तर्क दिए। लेकिन कोर्ट ने पाया कि चश्मदीद गवाहों और डॉक्टरों के बयान पूरी तरह से मेल खाते हैं और घटनास्थल पर मौजूद होने की बात साफ है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह हमला अचानक नहीं बल्कि सोच-समझकर किया गया था, क्योंकि इससे पहले मेले में महिलाओं से बदतमीजी को लेकर स्थानीय युवकों ने विरोध किया था।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला इस बात को स्पष्ट करता है कि अगर किसी घटना में इलाज या दूसरी वैध वजहों से एफआईआर में देरी होती है, तो भी अगर गवाह और मेडिकल सबूत मजबूत हों, तो आरोपी को सजा मिल सकती है। यह संदेश भी जाता है कि भीड़ के रूप में किसी पर हमला करना गंभीर अपराध है और सभी शामिल व्यक्तियों को समान दंड भुगतना पड़ सकता है।
सरकार और पुलिस के लिए यह फैसला एक सीख है कि वे समय रहते जांच पूरी करें और साक्ष्यों को सुरक्षित रखें। जनता के लिए यह उम्मीद की किरण है कि न्याय भले देर से मिले, पर मिलता जरूर है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या एफआईआर और गवाहों के बयान में देरी से मामला कमजोर होता है?
➤ नहीं, देरी का कारण वैध था और गवाह विश्वसनीय थे। - क्या यह हमला अचानक हुआ था या पहले से सोचा-समझा था?
➤ कोर्ट ने पाया कि हमला पूर्व नियोजित था। - क्या हत्या की धारा 302 लगती है या 304 (दूसरा भाग) लगती है?
➤ कोर्ट ने 302 IPC को सही ठहराया, क्योंकि जान लेने की मंशा साफ थी। - क्या मेडिकल सबूत गवाहों के बयानों से मेल खाते हैं?
➤ हाँ, मेडिकल रिपोर्ट्स ने गवाही की पुष्टि की।
मामले का शीर्षक
राज कुमार यादव व अन्य बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
Criminal Appeal (DB) No. 651 of 2013
(एक साथ सुने गए अपील संख्याएँ: 585, 725, 811 of 2013)
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 729
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राकेश कुमार
माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रकाश चंद्र जैसवाल
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अभियुक्तों की ओर से:
श्री विक्रमदेव सिंह, श्री अशोक कुमार सिन्हा, श्रीमती मीना सिंह, श्री पारस नाथ - राज्य की ओर से:
श्री अजय मिश्रा, श्री एस. एन. प्रसाद - सूचक की ओर से:
श्री रामाकांत शर्मा (वरिष्ठ अधिवक्ता), डॉ. अमरेन्द्र कुमार
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSM2NTEjMjAxMyMxI04=-Wd37lLdeMac=
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