पटना हाईकोर्ट ने झूठे आरक्षण दावे पर सेवा समाप्ति को सही ठहराया — 2020

पटना हाईकोर्ट ने झूठे आरक्षण दावे पर सेवा समाप्ति को सही ठहराया — 2020

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक ऐसे सरकारी कर्मचारी की याचिका खारिज कर दी जिसने नौकरी पाने के लिए खुद को अनुसूचित जाति (SC) वर्ग का बताकर चयन करवा लिया था, जबकि बाद में उसने अपनी सेवा रिकॉर्ड में स्पष्ट लिखा कि वह SC/ST से नहीं है। अदालत ने कहा कि यह “धोखाधड़ी और भ्रामक आचरण” है, जो सरकारी भर्ती प्रक्रिया की सच्चाई और पारदर्शिता को नुकसान पहुँचाता है।

यह मामला 1987 की एक भर्ती से जुड़ा था जिसे स्टाफ सिलेक्शन कमीशन (SSC) ने जारी किया था। इस भर्ती में ऑडिटर, जूनियर एकाउंटेंट और अपर डिवीजन क्लर्क जैसे पद शामिल थे। उम्मीदवार (याचिकाकर्ता) का नाम एससी वर्ग की सूची में पहले स्थान पर था। नियुक्ति पत्र में साफ लिखा था कि यह “अस्थायी नियुक्ति” है और प्रमाण पत्रों की जाँच के बाद ही अंतिम मानी जाएगी।

लेकिन जब उसने सेवा ज्वॉइन की और सत्यापन हेतु “एटेस्टेशन फॉर्म” भरा, तो उसने खुद लिखा — “क्या आप अनुसूचित जाति/जनजाति से हैं?” — उसका उत्तर था “नहीं।” यानि उसने वही बात स्वीकार की जो उसकी नियुक्ति के आधार से बिल्कुल उलट थी। इसके बाद SSC ने उसकी सिफारिश वापस ले ली और विभाग ने 1993 में उसकी सेवा समाप्त कर दी।

कर्मचारी ने यह आदेश सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) में चुनौती दी। ट्रिब्यूनल ने कहा कि बिना विभागीय जांच के “सरल सेवा समाप्ति” ठीक नहीं है। फिर विभाग ने अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की, जिसमें दो आरोप तय हुए —

  1. उसने खुद को झूठा SC बताकर धोखे से नौकरी हासिल की।
  2. ज्वाइन करते समय एटेस्टेशन फॉर्म में गलत जानकारी दी।

जांच के बाद विभाग ने 1998 में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया, और अपील में भी फैसला उसके खिलाफ ही गया।

बाद में ट्रिब्यूनल ने यह मामला फिर से जांच रिपोर्ट की प्रतिलिपि उपलब्ध कराने के लिए वापस भेजा, लेकिन दोबारा जांच के बाद भी वही निष्कर्ष निकला कि उसने धोखे से नियुक्ति पाई थी।

अदालत ने रिकॉर्ड देखकर पाया कि आवेदन पत्र में “SC” लिखा था, परीक्षा शुल्क नहीं भरा गया था (क्योंकि SC उम्मीदवारों से शुल्क नहीं लिया जाता था) और “SC” लिखा स्लिप चिपकाई गई थी। यहाँ तक कि उसने “पासवान (Pasi)” नामक जाति का प्रमाण पत्र भी लगाया था, लेकिन उसके पिता का नाम प्रमाणपत्र में अलग दिखा। जबकि बाद में भरे एटेस्टेशन फॉर्म में उसने खुद “No” लिखा था।

अदालत ने यह भी देखा कि यदि उसे सामान्य (General) वर्ग में माना जाए, तब भी उसका चयन नहीं हो सकता था क्योंकि उसके अंक बहुत कम थे। सामान्य वर्ग के अंतिम चयनित उम्मीदवार के 236 अंक थे, जबकि याचिकाकर्ता के केवल 153।

इसलिए कोर्ट ने कहा कि उसने न केवल गलत श्रेणी में आवेदन किया बल्कि कम अंकों के बावजूद धोखे से आरक्षण का लाभ लिया। इस तरह की नियुक्ति “धोखाधड़ी” के बराबर है, जो किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं हो सकती।

अंत में कोर्ट ने कहा कि विभाग ने नियमों के अनुसार जांच की, नोटिस दिया, रिपोर्ट दी और फिर आदेश पारित किया। इसलिए यह सेवा समाप्ति पूरी तरह वैध है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

  1. ईमानदारी से श्रेणी बताना जरूरी है — अगर कोई उम्मीदवार झूठी जाति का प्रमाणपत्र देता है या बाद में अपनी जानकारी बदलता है, तो विभाग उसे निकाल सकता है।
  2. अंक और योग्यता का महत्व — कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि उम्मीदवार सामान्य वर्ग में चयन के योग्य नहीं था, तो उसे किसी भी सहानुभूति के आधार पर नहीं रखा जा सकता।
  3. धोखाधड़ी सब कुछ रद्द कर देती है — अदालत ने दोहराया कि “Fraud vitiates everything”, यानी धोखा किसी भी कानूनी अधिकार को नष्ट कर देता है।

यह फैसला न केवल सरकारी विभागों बल्कि आम नागरिकों के लिए भी एक सबक है कि किसी भी लाभ के लिए गलत जानकारी देना अंततः कानूनी मुसीबत का कारण बन सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या याचिकाकर्ता ने खुद को SC दिखाकर नियुक्ति ली थी?
    ✔ हाँ, रिकॉर्ड से साफ साबित हुआ कि उसने आवेदन में SC लिखा था और शुल्क नहीं भरा था।
  • क्या वह सामान्य वर्ग में चयन के योग्य था?
    ✘ नहीं, उसके अंक सामान्य वर्ग की मेरिट सूची से काफी कम थे।
  • क्या विभागीय जांच उचित थी?
    ✔ हाँ, पूरी जांच और अपील प्रक्रिया अपनाई गई थी।
  • क्या न्यायालय से राहत मिल सकती थी?
    ✘ नहीं, क्योंकि धोखाधड़ी साबित होने पर कोई भी न्यायिक राहत नहीं दी जा सकती।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Shri Krishan v. The Kurukshetra University, AIR 1976 SC 376
  • B.H. Khawas v. Union of India & Ors., (2016) 8 SCC 715
  • Bhaurao Dagdu Paralkar v. State of Maharashtra & Ors., (2005) 7 SCC 605
  • Union of India v. M. Bhaskaran, 1995 Supp (4) SCC 100
  • Rakesh Kumar Sharma v. Govt. of NCT of Delhi & Ors., (2013) 11 SCC 58

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

उपरोक्त ही निर्णयों का उल्लेख न्यायालय ने किया और यह माना कि “धोखा किसी भी कानूनी अधिकार की नींव को हिला देता है।”

मामले का शीर्षक

Manoj Kumar v. Union of India & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 15799 of 2013

उद्धरण (Citation)

2021(3) PLJR 36

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति अंजनि कुमार शरण

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से — श्री पुष्कर नारायण शाही (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री संजीत कुमार सिंह, सुश्री दीक्षा सिंह
  • संघ सरकार की ओर से — श्री एस. डी. संजय (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल), श्री अंशय बहादुर माथुर
  • स्टाफ सिलेक्शन कमीशन की ओर से — श्री राजेश कुमार वर्मा (एएसजी)

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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