निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने सुनील कुमार वर्मा बनाम राज्य बिहार एवं अन्य, सिविल रिट याचिका संख्या 8306/2020 में एक अहम फैसला सुनाया।
यह मामला इस सवाल से जुड़ा था कि क्या न्यायिक सेवा में कार्यरत व्यक्ति (Judicial Officer), जो पहले अधिवक्ता रहा हो, “बार से सीधी भर्ती (Direct from Bar)” के तहत जिला जज (प्रवेश स्तर) के पद पर नियुक्त हो सकता है या नहीं।
यह निर्णय 8 अप्रैल 2021 को माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय और माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने सुनाया। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय Dheeraj Mor v. High Court of Delhi [(2020) 7 SCC 401] की व्याख्या पर आधारित है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि —
“केवल वही व्यक्ति जिला जज (Direct from Bar) के लिए पात्र है जो आवेदन के समय और नियुक्ति के समय तक लगातार अधिवक्ता (practicing advocate) हो।”
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता मूल रूप से एक अधिवक्ता थे, जिन्होंने 5 दिसंबर 2007 को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में पंजीकरण कराया था। उन्होंने लगभग 9 साल तक वकालत की और फिर 16 जनवरी 2017 को उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में सिविल जज (कनिष्ठ वर्ग) के रूप में नियुक्ति ग्रहण की।
इस बीच, पटना हाई कोर्ट ने 22 अगस्त 2016 को जिला जज (प्रवेश स्तर) – Direct from Bar परीक्षा 2016 की अधिसूचना जारी की थी। इसमें स्पष्ट शर्त थी कि उम्मीदवार को कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता रहना चाहिए और यह योग्यता 16 सितंबर 2016 तक पूरी होनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने आवेदन किया, परीक्षा उत्तीर्ण की, साक्षात्कार दिया और अगस्त 2018 में बेगूसराय में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हो गए। उन्होंने इससे पहले उत्तर प्रदेश की नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया था।
लेकिन फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने Dheeraj Mor केस में निर्णय दिया कि जो व्यक्ति पहले से न्यायिक सेवा में है, वह “Direct from Bar” कोटे से नियुक्त नहीं हो सकता।
इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस भेजा और अंततः 17 दिसंबर 2020 को उसका नियुक्ति आदेश रद्द कर दिया। इस आदेश को उन्होंने पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी।
अदालत का विश्लेषण
खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या करते हुए कहा कि यह प्रावधान दो अलग-अलग स्रोतों से नियुक्ति का रास्ता देता है —
- न्यायिक सेवा से पदोन्नति के माध्यम से, और
- बार से सीधे भर्ती (Direct from Bar) के माध्यम से।
अनुच्छेद 233(2) कहता है:
“जो व्यक्ति पहले से राज्य या केंद्र की सेवा में नहीं है, वही जिला जज के रूप में नियुक्त हो सकता है, यदि वह कम से कम सात वर्षों तक अधिवक्ता या वकील रहा हो।”
इसका अर्थ यह है कि जो पहले से किसी सरकारी या न्यायिक सेवा में है, वह इस कोटे से नियुक्त नहीं हो सकता।
“Has been an Advocate” का अर्थ
कोर्ट ने कहा कि “has been an advocate” शब्द का अर्थ केवल यह नहीं है कि व्यक्ति कभी वकील रहा हो, बल्कि यह आवश्यक है कि वह लगातार वकालत कर रहा हो, और नियुक्ति के समय तक उसका अधिवक्ता होना जारी रहे।
इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने Dheeraj Mor के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि —
“एक व्यक्ति जो न्यायिक सेवा में शामिल हो गया है, वह अब अधिवक्ता नहीं माना जाएगा और इसलिए Direct from Bar की भर्ती में अयोग्य होगा।”
याचिकाकर्ता का तर्क और अदालत का उत्तर
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उन्होंने आवेदन करते समय (सितंबर 2016) तक वकालत की थी, इसलिए वह पात्र हैं।
परंतु अदालत ने कहा कि पात्रता केवल आवेदन की तारीख तक सीमित नहीं है; यह नियुक्ति तक जारी रहनी चाहिए।
जब याचिकाकर्ता 16 जनवरी 2017 को न्यायिक सेवा में शामिल हुए, तो उन्होंने वकालत छोड़ दी और उनकी अधिवक्ता स्थिति स्वतः समाप्त हो गई। इसलिए वह 2018 में जिला जज के रूप में नियुक्त होने के समय “practicing advocate” नहीं थ
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव
पटना हाई कोर्ट ने कहा कि Dheeraj Mor का फैसला घोषणात्मक (declaratory) है, इसलिए यह सभी मामलों पर लागू होगा, चाहे नियुक्ति पुरानी हो या नई।
इसका उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 233(2) की सही व्याख्या करना है।
इसलिए याचिकाकर्ता की नियुक्ति को रद्द करना पूरी तरह वैधानिक और उचित था।
कोर्ट का निष्कर्ष
- याचिकाकर्ता ने 16 जनवरी 2017 को न्यायिक सेवा जॉइन की थी।
- वह उस समय वकालत छोड़ चुके थे और किसी अदालत में प्रैक्टिस नहीं कर रहे थे।
- इसलिए वह “Direct from Bar” कोटे के लिए अयोग्य थे।
- पटना हाई कोर्ट प्रशासन द्वारा उनकी नियुक्ति रद्द करना पूर्णतः वैधानिक है।
अंततः, याचिका खारिज कर दी गई।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला बिहार समेत पूरे देश के न्यायिक भर्ती प्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके प्रमुख प्रभाव हैं:
- योग्यता की स्पष्टता:
अब स्पष्ट है कि जिला जज (Direct from Bar) पद के लिए वही पात्र हैं जो आवेदन से लेकर नियुक्ति तक लगातार अधिवक्ता बने रहें। - दोहरी राह नहीं:
न्यायिक सेवा में आ चुके अधिकारी “बार कोटे” से नहीं आ सकते। उनका प्रमोशन केवल सेवा के भीतर होगा। - समानता और पारदर्शिता:
यह फैसला पूरे देश में एकरूपता लाता है ताकि हर राज्य की उच्च न्यायालय भर्ती प्रक्रिया समान मानकों पर चले। - प्रशासन के लिए मार्गदर्शन:
हाई कोर्टों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उम्मीदवार की अधिवक्ता स्थिति नियुक्ति के समय तक बनी रहे। - आकांक्षी वकीलों के लिए सबक:
जो अधिवक्ता “Direct from Bar” परीक्षा में भाग ले रहे हैं, उन्हें नियुक्ति से पहले किसी सरकारी या न्यायिक सेवा में शामिल नहीं होना चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बिंदुवार)
- क्या न्यायिक सेवा में शामिल व्यक्ति “Direct from Bar” कोटे से जिला जज बन सकता है?
❌ नहीं, क्योंकि वह अब अधिवक्ता नहीं है। - क्या पात्रता केवल आवेदन की तारीख तक देखी जाएगी?
❌ नहीं, पात्रता नियुक्ति तक बनी रहनी चाहिए। - क्या सुप्रीम कोर्ट का Dheeraj Mor निर्णय पुराने मामलों पर भी लागू होगा?
✅ हां, यह घोषणा स्वरूप (declaratory) निर्णय है और सभी पर लागू होता है। - क्या न्यायिक अधिकारी प्रमोशन के अलावा अन्य रास्ते से जिला जज बन सकते हैं?
❌ नहीं, उनके लिए केवल सेवा-आधारित पदोन्नति का मार्ग खुला है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Dheeraj Mor v. High Court of Delhi, (2020) 7 SCC 401
- Rameshwar Dayal v. State of Punjab, AIR 1961 SC 816
- Chandra Mohan v. High Court of Allahabad, AIR 1966 SC 1987
- Kalpana Mehta v. Union of India, (2018) 7 SCC 1
- R.C. Poudyal v. Union of India, 1994 Supp (1) SCC 324
मामले का शीर्षक
Sunil Kumar Verma v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 8306 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 626
न्यायमूर्ति गण
माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संदीप कुमार, अधिवक्ता; श्री आलोक कुमार शाही, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री पी.के. वर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री आनंद कुमार, ए.सी. टू ए.ए.जी.-3
- उच्च न्यायालय की ओर से: श्री पीयूष लाल, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
MTUjODMwNiMyMDIwIzEjTg==-6kRU9SvI1MM=
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