पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: सरकारी नौकरी में देर से ज्वाइनिंग स्वीकार नहीं

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: सरकारी नौकरी में देर से ज्वाइनिंग स्वीकार नहीं

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय (24 फरवरी 2021) में स्पष्ट किया कि किसी सरकारी नियुक्ति के बाद यदि अभ्यर्थी समय पर ज्वाइन नहीं करता, तो उसकी नियुक्ति स्वतः रद्द मानी जाएगी। बिहार सरकार के नियमों के अनुसार अधिकतम एक माह तक ही ज्वाइनिंग बढ़ाई जा सकती है। इसके बाद ज्वाइनिंग का कोई अधिकार नहीं रहता। यह मामला एक फायरमैन पद के लिए था, जिसमें अभ्यर्थी ने तीन साल से भी अधिक देर के बाद ज्वाइन करने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी।

इस मामले में याचिकाकर्ता ने 2012 की फायरमैन भर्ती परीक्षा में हिस्सा लिया था। उसने लिखित परीक्षा (15 दिसंबर 2013) पास की, फिर शारीरिक दक्षता और अन्य परीक्षणों में भी सफल रहा। सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसे 16 जुलाई 2015 को नियुक्ति पत्र मिला, जिसमें 17 जुलाई 2015 तक प्रशिक्षण संस्थान, बिहटा में रिपोर्ट करने का आदेश था।

याचिकाकर्ता ने बीमारी का हवाला देते हुए समय पर ज्वाइन नहीं किया। लगभग तीन साल बाद, नवंबर 2018 में उसने अधिकारियों को पत्र भेजा कि अब वह ज्वाइन करना चाहता है। विभाग ने उसका अनुरोध 7 फरवरी 2019 के पत्र (स्मारक संख्या 648) से यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि इतनी लंबी देरी स्वीकार्य नहीं है। विभाग ने “कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग का परिपत्र दिनांक 16.07.2007” का हवाला दिया, जिसके अनुच्छेद 3(15) के अनुसार, अधिकतम एक माह की ही छूट दी जा सकती है।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी और आग्रह किया कि उसका मामला “सहानुभूति” के आधार पर स्वीकार किया जाए। उसने कहा कि उसकी बीमारी के कारण देरी हुई थी और उसका चयन पहले ही हो चुका था, इसलिए उसे नियुक्ति से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

राज्य सरकार ने इसका विरोध किया। उसका तर्क था कि नियुक्ति पत्र में ज्वाइनिंग की अंतिम तारीख साफ लिखी थी। नियमों के अनुसार, केवल एक माह की ही बढ़ोतरी संभव थी। नवंबर 2018 में ज्वाइनिंग की मांग नियमों के बिल्कुल बाहर थी।

अदालत ने विभाग के तर्क को स्वीकार किया। न्यायालय ने यह कहा कि:

  • नियम बहुत स्पष्ट हैं — चयन के बाद ज्वाइन करने के लिए केवल एक माह की मोहलत दी जा सकती है।
  • याचिकाकर्ता ने उस समय कोई आवेदन भी नहीं किया कि उसे अतिरिक्त समय चाहिए।
  • तीन साल बाद ज्वाइनिंग स्वीकार करना न केवल प्रशासनिक व्यवस्था को बिगाड़ देगा बल्कि अन्य अभ्यर्थियों के साथ भी अन्याय होगा जिन्होंने समय पर नियमों का पालन किया।

न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में अदालत की अधिकारिता (धारा 226) “विवेकाधीन” होती है। यदि कोई व्यक्ति अपने अधिकारों को समय पर नहीं मांगता, तो अदालत उसे राहत नहीं दे सकती। अदालत ने कहा कि इस तरह की देर से ज्वाइनिंग की अनुमति देने से “अराजकता, सार्वजनिक असुविधा और अनुशासनहीनता” बढ़ेगी। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।

इस निर्णय का स्पष्ट संदेश है कि सरकारी सेवा में अनुशासन और समयबद्धता सर्वोपरि है। चयनित उम्मीदवारों को अपने नियुक्ति पत्र में दी गई समय सीमा का पालन करना ही होगा। अगर किसी कारणवश समय पर ज्वाइन नहीं किया जा सकता, तो विभाग को तुरंत सूचित करना चाहिए और अधिकतम एक माह की छूट माँगनी चाहिए। वर्षों बाद आवेदन करने का कोई औचित्य नहीं बनता।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • यह फैसला सरकारी नियुक्तियों की पारदर्शिता और अनुशासन बनाए रखने में सहायक है।
  • सरकार के लिए यह निर्णय एक मिसाल है कि नियमों से बाहर कोई भी छूट देना भविष्य में अव्यवस्था पैदा कर सकता है।
  • आम जनता के लिए यह समझना जरूरी है कि नियुक्ति पत्र में दी गई तारीखें केवल औपचारिक नहीं, बल्कि कानूनी रूप से बाध्यकारी होती हैं।
  • यह निर्णय उन सभी अभ्यर्थियों को सतर्क करता है जो लापरवाही या असावधानी से समयसीमा चूक जाते हैं।
  • इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि अदालतें “सहानुभूति” के आधार पर नियमों को नहीं तोड़ सकतीं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या नियुक्त व्यक्ति तीन वर्ष बाद ज्वाइनिंग कर सकता है?
    — नहीं। नियम 3(15) के अनुसार, अधिकतम एक माह की ही बढ़ोतरी दी जा सकती है।
  • क्या बीमारी का बहाना तीन साल की देरी को माफ कर सकता है?
    — नहीं। यदि बीमारी थी तो तत्काल आवेदन करना चाहिए था। बाद में किया गया आवेदन नियमों के अनुरूप नहीं है।
  • क्या देर से ज्वाइनिंग स्वीकार करने से प्रशासनिक असुविधा होती है?
    — हाँ। इससे प्रशिक्षण, नियुक्ति और अन्य अभ्यर्थियों के अधिकार प्रभावित होते हैं।

मामले का शीर्षक
Babool Kumar v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 9862 of 2019

उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 390

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह (एकल पीठ, मौखिक निर्णय दिनांक 24-02-2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रमोद कुमार सिंह, अधिवक्ता
  • राज्य सरकार की ओर से: श्री सरोज शर्मा, ए.सी. टू ए.ए.जी.-3
  • केंद्रीय चयन पर्षद (कॉन्स्टेबल भर्ती) की ओर से: श्री संजय पांडेय, श्री बिनोद कुमार मिश्रा, श्री विवेक आनंद अमृतेश, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक
MTUjOTg2MiMyMDE5IzEjTg==-NQhf1rZcSvA=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News