निर्णय की सरल व्याख्या
इस केस में पटना हाई कोर्ट ने यह तय किया कि क्या हिंदू संयुक्त परिवार के एक कनिष्ठ सदस्य द्वारा की गई ज़मीन की बिक्री का अनुबंध वैध है या नहीं। यह मामला तब शुरू हुआ जब एक व्यक्ति (वादी) ने अदालत में याचिका दायर की कि प्रतिवादी ने उससे ज़मीन बेचने का अनुबंध किया था, लेकिन बाद में ज़मीन बेचने से इनकार कर दिया।
वादी का दावा था कि 15 जून 2005 को एक रजिस्टर्ड एग्रीमेंट हुआ था, जिसमें 80,000 रुपये की ज़मीन के बदले उसने एडवांस में 9,350 रुपये दिए थे। जब बार-बार अनुरोध करने और नोटिस भेजने के बावजूद प्रतिवादी ने रजिस्ट्री नहीं की, तो वादी ने विशेष निष्पादन (specific performance) और ज़मीन पर कब्ज़ा दिलाने की मांग करते हुए दीवानी मुकदमा (Title Suit) दायर किया।
प्रतिवादी ने अदालत में लिखा कि उसने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर तो किए थे, लेकिन यह दबाव में हुआ। उसने यह भी कहा कि ज़मीन संयुक्त परिवार की है और वह अकेले नहीं बेच सकता। साथ ही दावा किया कि वह मानसिक रूप से बीमार था।
निचली अदालत ने दोनों पक्षों की गवाही और दस्तावेजों की जांच कर वादी के पक्ष में फैसला दिया। अपीलीय अदालत ने भी इसे सही माना। तब प्रतिवादी ने पटना हाई कोर्ट में दूसरी अपील की।
हाई कोर्ट के सामने तीन मुख्य सवाल थे:
- क्या संयुक्त परिवार की ज़मीन को एक कनिष्ठ सदस्य अकेले बेच सकता है?
- क्या बिक्री अनुबंध उस समय अमान्य हो जाता है जब ज़मीन किसी अन्य मुकदमे (जैसे बंटवारे के मुकदमे) में विवादित हो?
- क्या निचली अदालत ने सभी दस्तावेज़ और गवाहियों को सही से देखा?
पटना हाई कोर्ट ने कहा:
- सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले (Gajara Vishnu Gosavi v. Prakash Nanasahed Kamle) के अनुसार, संयुक्त परिवार का कोई सदस्य अपने हिस्से की ज़मीन बेच सकता है, भले ही उसका हिस्सा अभी बांटा न गया हो।
- Lis pendens का सिद्धांत तब लागू होता है जब वही ज़मीन किसी अन्य मुकदमे में पहले से विवादित हो। इस केस में ऐसा नहीं था।
- सभी दस्तावेज़ और गवाहियां निचली अदालतों द्वारा सही से देखी गई थीं, इसलिए दोबारा सबूतों की जांच दूसरी अपील में नहीं हो सकती।
प्रतिवादी द्वारा मानसिक बीमारी का दावा भी कोर्ट ने खारिज कर दिया, क्योंकि उसके पास कोई मेडिकल प्रमाण नहीं था। उसने खुद यह स्वीकार किया कि अनुबंध पर हस्ताक्षर और अंगूठा निशान उसका ही है।
इसलिए कोर्ट ने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि इसमें कोई “गंभीर विधिक प्रश्न” नहीं बनता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन लोगों के लिए अहम है जो संयुक्त परिवार की ज़मीन से जुड़े विवादों में फंसे होते हैं। कोर्ट ने साफ किया कि कोई भी सह-हिस्सेदार (coparcener) अपनी साझी ज़मीन का हिस्सा बेच सकता है, जब तक कि वह बंटवारे में विवादित न हो। यह फैसला ज़मीन खरीदने वालों के लिए भी राहत लेकर आया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां ऐसी खरीद-फरोख्त अक्सर बिना बंटवारे के हो जाती है।
सरकार के लिए भी यह फैसला ज़मीन के रजिस्ट्रेशन और म्युटेशन की प्रक्रिया को स्पष्ट दिशा देता है कि सह-हिस्सेदारों के हिस्से की बिक्री वैध मानी जा सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या संयुक्त परिवार की ज़मीन को एक सदस्य बेच सकता है?
- हां, वह अपने हिस्से की बिक्री कर सकता है।
- क्या बिक्री अनुबंध किसी अन्य मुकदमे की वजह से अमान्य था?
- नहीं, क्योंकि वह ज़मीन उस मुकदमे में शामिल नहीं थी।
- क्या निचली अदालत ने साक्ष्य सही से नहीं देखा?
- नहीं, सभी साक्ष्य सही तरीके से परखे गए थे।
- क्या मानसिक बीमारी का दावा अनुबंध को अमान्य बनाता है?
- नहीं, क्योंकि इसका कोई प्रमाण नहीं था।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Nagu Bai Ammal v. B. Shama Rao, AIR 1956 SC 593
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Gajara Vishnu Gosavi v. Prakash Nanasahed Kamle, 2009 (4) PLJR 225 (SC)
मामले का शीर्षक
Second Appeal No. 383 of 2018
केस नंबर
Second Appeal No. 383 of 2018
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 657
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति सुधीर सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री उमेश प्रसाद सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री मिथिलेश कुमार राय, श्री लक्ष्मण लाल पांडेय, श्रीमती रुचि सिंह, श्री अभिषेक कुमार, और श्रीमती वंदना किशोर।
- प्रत्युत्तरकर्ता की ओर से: श्री चंद्रकांत और श्री नवीन कुमार।
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/OSMzODMjMjAxOCM2I04=-rHUyJ11ZMDk=
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