पटना हाईकोर्ट: नाबालिग को जमानत से इनकार केवल गंभीर आरोप के आधार पर नहीं किया जा सकता (2020)

पटना हाईकोर्ट: नाबालिग को जमानत से इनकार केवल गंभीर आरोप के आधार पर नहीं किया जा सकता (2020)

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक ऐसे नाबालिग (यानी “बालक/पेटीशनर”) से जुड़ा था जिसे “कानून के साथ संघर्षरत बालक” घोषित किया गया था। घटना के समय उसकी उम्र लगभग 16 साल 5 महीने थी। उस पर आरोप था कि वह कुछ वयस्कों के साथ मिलकर एक गोलीकांड में शामिल था जिसमें मौत हुई।

जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB), गया और बाद में चिल्ड्रेन कोर्ट, गया ने उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। इसके बाद मामला पटना हाईकोर्ट में पहुँचा।

मुख्य कानूनी प्रावधान:
जुवेनाइल जस्टिस (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 12 कहती है कि कोई भी बालक किसी भी अपराध—चाहे वह जमानती हो या गैर-जमानती, गंभीर हो या घृणित—में पकड़ा जाता है तो उसे सामान्य रूप से जमानत मिलनी चाहिए। जमानत केवल तीन हालात में ही रोकी जा सकती है:

  1. अगर उसे छोड़ने से वह अपराधियों की संगति में आ जाएगा,
  2. अगर उसे छोड़ने से उसे नैतिक, शारीरिक या मानसिक खतरा होगा, या
  3. अगर उसकी रिहाई से न्याय के उद्देश्य विफल होंगे।

यहाँ नाबालिग का पक्ष था कि उस पर लगाए गए आरोप केवल सामान्य और समूह-आधारित थे, कोई ठोस सबूत नहीं था और दुश्मनी के कारण उसका नाम घसीटा गया। साथ ही, सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट (SIR) में भी यही कहा गया कि मृतक का आपराधिक रिकॉर्ड था और यह नाबालिग निर्दोष प्रतीत होता है। इसके बावजूद JJB और चिल्ड्रेन कोर्ट ने केवल आरोप की गंभीरता को देखते हुए जमानत नहीं दी।

हाईकोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ गंभीर अपराध का आरोप लगना जमानत खारिज करने का कारण नहीं बन सकता। जब तक उपरोक्त तीन परिस्थितियों में से कोई साबित न हो, नाबालिग को जमानत दी जानी चाहिए।

अदालत ने लालू कुमार बनाम बिहार राज्य, 2019(4) PLJR 833 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नाबालिगों के मामले में “सर्वोत्तम हित,” “पुनर्वास” और “पुनर्स्थापन” की सोच को अपनाना चाहिए। संस्थागत हिरासत (Observation Home) को अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल करना चाहिए।

इस आधार पर, पटना हाईकोर्ट ने 19.12.2019 को JJB गया का आदेश और 13.02.2020 को चिल्ड्रेन कोर्ट गया का आदेश दोनों रद्द कर दिए और नाबालिग को 10,000 रुपये के निजी मुचलके और दो जमानतदारों पर जमानत देने का निर्देश दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला आम जनता के लिए यह संदेश देता है कि नाबालिग की स्वतंत्रता को केवल आरोप की गंभीरता के आधार पर छीनना कानून के खिलाफ है।

  • परिवारों के लिए: यह राहत है कि उनके बच्चों को केवल आरोपों के आधार पर लंबे समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
  • सरकार और JJB के लिए: यह निर्णय याद दिलाता है कि जमानत अस्वीकार करते समय धारा 12 की तीन विशेष परिस्थितियों को ही देखा जाए।
  • व्यवहारिक असर: सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट की अहमियत और बढ़ गई है। अदालतों को बच्चे के वातावरण, जोखिम और पुनर्वास की संभावनाओं को ध्यान में रखना होगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या गंभीर आरोप अकेले जमानत खारिज करने का आधार हो सकता है?
    • अदालत का निर्णय: नहीं। धारा 12 में केवल तीन हालात बताए गए हैं जिनमें जमानत रोकी जा सकती है।
  • क्या JJB और चिल्ड्रेन कोर्ट ने धारा 12 का सही इस्तेमाल किया?
    • अदालत का निर्णय: नहीं। दोनों ने केवल आरोप की गंभीरता को आधार बनाया, जबकि किसी भी तीन परिस्थितियों का उल्लेख नहीं किया।
  • उपयुक्त राहत क्या है?
    • अदालत का निर्णय: नाबालिग को जमानत पर रिहा किया जाए।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • लालू कुमार बनाम बिहार राज्य, 2019(4) PLJR 833

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • लालू कुमार बनाम बिहार राज्य, 2019(4) PLJR 833 (डिवीजन बेंच, पटना हाईकोर्ट)

मामले का शीर्षक

X7 (नाबालिग) बनाम बिहार राज्य

केस नंबर

Criminal Revision No. 365 of 2020; arising out of Delha P.S. Case No. 193 of 2019 (Gaya)

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 40

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह (मौखिक निर्णय दिनांक 11-11-2020)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मनीष कुमार नं. 2, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्रीमती रीता वर्मा, ए.पी.पी.

निर्णय का लिंक

NyMzNjUjMjAyMCMxI04=-8JBahA9TqTA=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News