पटना उच्च न्यायालय 2020 : 1814 किलो गांजा मामले में किशोर को ज़मानत से इंकार

पटना उच्च न्यायालय 2020 : 1814 किलो गांजा मामले में किशोर को ज़मानत से इंकार

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक 17 वर्षीय किशोर से जुड़ा है जिसे गांजा की तस्करी के आरोप में पकड़ा गया। पटना में राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने एक ट्रक से 1814.70 किलो गांजा बरामद किया। इस ट्रक में किशोर बतौर खलासी (सहायक) मौजूद था और उसे मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया (जनवरी 2017)।

बाद में किशोर ने दावा किया कि वह अपराध की तारीख पर अवयस्क था। किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) ने उसकी उम्र 16 साल 9 महीने और 21 दिन आंकी और उसे “कानून से संघर्षरत बालक” (Child in Conflict with Law) घोषित किया। लेकिन चूंकि वह 16 साल से अधिक था और अपराध “गंभीर श्रेणी (heinous offence)” में आता था, इसलिए बोर्ड ने प्राथमिक आकलन के बाद उसे वयस्क की तरह बच्चों की अदालत (Children’s Court) में मुकदमा चलाने का आदेश दिया।

किशोर ने ज़मानत की अर्जी डाली, जिसे बच्चों की अदालत ने अगस्त 2019 में खारिज कर दिया। इसके खिलाफ वह पटना उच्च न्यायालय में अपील लेकर आया।

याचिकाकर्ता (किशोर) के तर्क

  • वह निर्दोष है और उसे झूठा फँसाया गया है।
  • उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
  • उसे ट्रक में गांजा होने की जानकारी नहीं थी।
  • गांजा उसकी “सचेत कब्ज़े” (conscious possession) से बरामद नहीं हुआ।
  • किशोर घोषित होने के नाते, उसकी जमानत किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 12 के अनुसार होनी चाहिए, जिसमें सामान्यतः ज़मानत का प्रावधान है।

प्रतिवादी (भारत सरकार/DRI) के तर्क

  • गांजे की बरामदगी बहुत बड़ी मात्रा (व्यावसायिक मात्रा) में हुई।
  • ज़मानत पर फैसला NDPS अधिनियम, 1985 की धारा 37 के आधार पर होना चाहिए, जिसमें बहुत सख्त शर्तें हैं।
  • किशोर चालक और अन्य लोगों के साथ गांजा ढोने के काम में शामिल था।
  • उसकी रिहाई न्याय के हितों के खिलाफ होगी।

कानूनी प्रश्न

क्या NDPS अधिनियम की धारा 37, किशोर मामलों में भी लागू होगी या फिर जमानत केवल किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 12 के तहत ही तय होगी?

न्यायालय का विचार

माननीय न्यायमूर्ति सुधीर सिंह ने विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का अध्ययन किया:

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट (Praveen Kumar Maurya v. State of U.P., 2011) और उड़ीसा हाईकोर्ट (Sumanta Bindhani v. State of Orissa, 2017; Ranjit Paika v. State of Orissa, 2018) ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12, NDPS अधिनियम की धारा 37 पर हावी होती है, क्योंकि इसमें लिखा है “कोई अन्य कानून” भी लागू नहीं होगा।
  • इस आधार पर, किशोर मामलों में जमानत का निर्णय केवल किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 12 के अनुसार होगा।

लेकिन अदालत ने यह भी देखा:

  • किशोर को बोर्ड और बच्चों की अदालत पहले ही वयस्क की तरह मुकदमे का सामना करने का आदेश दे चुके थे।
  • वह ट्रक में गांजा ले जाने के दौरान चालक और अन्य लोगों के साथ पकड़ा गया।
  • अगर उसे रिहा किया गया तो वह दोबारा तस्करों के संपर्क में आ सकता है।
  • इससे न्याय के उद्देश्य विफल होंगे।

न्यायालय का फैसला

  • अदालत ने स्पष्ट किया कि किशोरों की जमानत धारा 12, किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत ही तय होगी, NDPS अधिनियम की धारा 37 लागू नहीं होगी।
  • लेकिन इस मामले में, रिहाई से आरोपी गलत संगति में पड़ सकता है और न्याय बाधित होगा।
  • इसलिए जमानत खारिज कर दी गई
  • साथ ही, अदालत ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि मुकदमा जल्द से जल्द निपटाया जाए, अधिमानतः 6 महीने के भीतर

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • किशोरों के अधिकार: यह फैसला स्पष्ट करता है कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत बच्चों को विशेष सुरक्षा प्राप्त है। NDPS जैसी कठोर धारा भी किशोर मामलों में सीधे लागू नहीं होती।
  • सार्वजनिक नीति: यह दिखाता है कि अदालतें बच्चों की सुरक्षा और पुनर्वास को प्राथमिकता देती हैं, लेकिन साथ ही गंभीर अपराधों में न्याय से समझौता भी नहीं करतीं।
  • समाज पर प्रभाव: यह संतुलन स्थापित करता है — बच्चों को सुरक्षा मिले, पर नशा तस्करी जैसी संगठित अपराधों से निपटने में ढिलाई न बरती जाए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या NDPS अधिनियम की धारा 37 किशोरों पर लागू होगी?
    → नहीं, किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 लागू होगी।
  • क्या इस किशोर को ज़मानत मिलनी चाहिए थी?
    → नहीं, क्योंकि उसकी रिहाई अपराधियों के संपर्क में डाल सकती थी और न्याय बाधित होता।
  • क्या कोई अतिरिक्त निर्देश दिए गए?
    → हाँ, निचली अदालत को 6 महीने में मुकदमा पूरा करने का निर्देश।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Antaryami Patra v. State of Orissa, 1993 Cri. L.J. 1908 (Orissa HC)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Praveen Kumar Maurya v. State of U.P., 2011 Cr. L.J. 200 (Allahabad HC)
  • Sumanta Bindhani v. State of Orissa, 2017 (I) OLR 1137 (Orissa HC)
  • Ranjit Paika v. State of Orissa, 2018 (II) OLR 13 (Orissa HC)
  • Solidaire India Ltd. v. Fairgrowth Financial Services Ltd., JT 2001 (2) SC 639
  • Sarwan Singh v. Kasturi Lal, AIR 1977 SC 265
  • Union of India v. Ranjeet Kumar Sinha, (2019) 7 SCC 505
  • Satpal Singh v. State of Punjab, (2018) 12 SCC 813
  • State of Kerala v. Rajesh, Criminal Appeal Nos. 154–157/2020 (SC)

मामले का शीर्षक

Anamul Haque बनाम Union of India (DRI)

केस नंबर

Criminal Appeal (SJ) No. 84 of 2020 (Criminal Misc. No. 73385 of 2019 से उत्पन्न)

उद्धरण (Citation)

2021(1)PLJR 444

माननीय न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति सुधीर सिंह

वकीलों के नाम और पेशी

  • श्री तेज प्रताप सिंह — अपीलकर्ता की ओर से
  • डॉ. के.एन. सिंह (एडिशनल सॉलिसिटर जनरल) एवं श्री अवधेश कुमार पांडे (सी.जी.सी.) — प्रतिवादी की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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