पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: कारपी (अरवल) तिहरे हत्याकांड में आजीवन कारावास पाए अभियुक्त की बरी — 2021

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: कारपी (अरवल) तिहरे हत्याकांड में आजीवन कारावास पाए अभियुक्त की बरी — 2021

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 5 अप्रैल 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें कारपी थाना क्षेत्र (अरवल) के 2006 के चर्चित तिहरे हत्याकांड मामले में सत्र न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा पाए अभियुक्त को बरी कर दिया गया।

यह मामला Criminal Appeal (DB) No. 820 of 2015 के तहत सुनवाई में आया था। अभियुक्त को सत्र न्यायालय ने धारा 147, 148, 302/149 भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दोषी ठहराया था, जबकि उसे धारा 27 शस्त्र अधिनियम और धारा 379 IPC से बरी किया गया था।

उच्च न्यायालय की खंडपीठ — माननीय न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह और माननीय न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव — ने पाया कि सत्र न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय विश्वसनीय साक्ष्यों पर आधारित नहीं था और अभियोजन की कहानी में गंभीर विरोधाभास हैं। परिणामस्वरूप, अदालत ने अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए निर्दोष घोषित किया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला कारपी थाना कांड संख्या 33/2006 से संबंधित है, जो कि शारदा देवी के बयान पर दर्ज हुआ था। उन्होंने बताया कि उनके भाई पुटुन शर्मा और उसके दो मित्र एक ग्रामीण के घर की छत पर सोए हुए थे, तभी रात में कुछ लोगों ने गोलियां चलाईं, जिससे तीनों की मौत हो गई।

एफआईआर में उन्होंने अभियुक्त और दो अन्य व्यक्तियों का नाम लेते हुए कहा कि पुरानी रंजिश के कारण हत्या की गई।

पुलिस ने घटना की जांच शुरू की और धारा 147, 148, 149, 379, 302 IPC एवं धारा 27 शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया। बाद में केवल इसी अभियुक्त के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई, जबकि अन्य के खिलाफ जांच जारी रखी गई।

सत्र न्यायालय ने अभियुक्त को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा दी।

मुख्य साक्ष्य और ट्रायल का परिणाम

  • मुकदमे में अभियोजन पक्ष ने 11 गवाहों की गवाही कराई।
  • इनमें से 5 गवाह (PW-3, 4, 7, 8, और 9) शत्रुतापूर्ण (hostile) हो गए।
  • PW-2 और PW-10 औपचारिक गवाह थे जिन्होंने सिर्फ दस्तावेजों की पहचान की।
  • अभियोजन ने मुख्य रूप से PW-1 शारदा देवी (सूचना देने वाली) और PW-5 श्री निवास शर्मा (उनके पति) की गवाही पर भरोसा किया।
  • PW-11 (चिकित्सक) ने तीनों शवों का पोस्टमॉर्टम किया और बताया कि सभी की मृत्यु गोलियों से हुए घावों के कारण अत्यधिक रक्तस्राव और शॉक से हुई।

सत्र न्यायालय ने PW-1 और PW-5 की गवाही को विश्वसनीय मानते हुए अभियुक्त को दोषी ठहराया।

अपीलकर्ता (अभियुक्त) का पक्ष

रक्षा पक्ष ने उच्च न्यायालय में सत्र न्यायालय के फैसले को चुनौती दी और कहा कि:

  1. जांच अधिकारी का बयान नहीं हुआ:
    जिस पुलिस अधिकारी ने एफआईआर दर्ज की और जांच की, उसे अदालत में पेश नहीं किया गया। इससे बचाव पक्ष को जांच की सच्चाई पर सवाल उठाने का मौका नहीं मिला।
  2. गवाहों की अविश्वसनीयता:
    अधिकांश गवाहों ने या तो कुछ नहीं देखा या अपनी गवाही से मुकर गए।
  3. गवाही में विरोधाभास:
    FIR में कहा गया कि शारदा देवी ने “गोलियों की आवाज़ सुनी”, लेकिन ट्रायल में उन्होंने कहा कि उन्होंने “अपनी आँखों से गोली चलाते देखा”। यह बड़ा विरोधाभास है।
  4. PW-5 की उपस्थिति संदिग्ध:
    क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन में PW-5 ने स्वीकार किया कि वे घटना स्थल पर नहीं गए और संभवतः घटना के समय दक्षिण भारत में थे।
  5. गवाहों का अप्राकृतिक व्यवहार:
    यदि उन्होंने वास्तव में गोलीबारी देखी थी, तो उन्होंने न तो घायल को अस्पताल पहुँचाया और न ही तुरंत पुलिस को सूचित किया — जो स्वाभाविक मानव व्यवहार के विपरीत है।
  6. मृतक का आपराधिक इतिहास:
    बचाव पक्ष ने कहा कि मृतक पुटुन शर्मा का आपराधिक इतिहास था और संभवतः किसी पुराने झगड़े में प्रतिशोध में मारा गया।

अदालत की टिप्पणियाँ

खंडपीठ ने साक्ष्यों का विश्लेषण करते हुए पाया:

  • जांच में गंभीर खामियाँ:
    जांच अधिकारी और FIR दर्ज करने वाले पुलिसकर्मी का अदालत में बयान नहीं हुआ, जिससे पूरी कहानी संदिग्ध हो गई।
  • गवाही में विरोधाभास:
    • FIR में कहा गया कि गवाह ने “आवाज़ सुनी”, परंतु ट्रायल में कहा गया कि “देखा”।
    • FIR में कुछ अभियुक्तों के नाम नहीं थे, जिन्हें बाद में गवाही में जोड़ा गया।
    • FIR सुबह 7 बजे दर्ज हुई, जबकि शारदा देवी ने कहा कि पुलिस 4 बजे ही पहुंच गई थी।
  • गवाहों का अप्राकृतिक आचरण:
    किसी ने शव को अस्पताल नहीं पहुँचाया और न ही मदद के लिए पुकारा — यह व्यवहार अविश्वसनीय लगा।
  • चिकित्सीय साक्ष्य में विरोधाभास:
    पोस्टमॉर्टम में पाए गए गोली के घावों की संख्या गवाहों की बात से मेल नहीं खाती।
  • संदेह का लाभ:
    अदालत ने कहा कि यदि साक्ष्य से दो व्याख्याएँ संभव हों, तो आरोपी के पक्ष में निर्णय देना चाहिए।

अदालत का निर्णय

  • अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि अभियुक्त दोषी है
  • मुख्य गवाहों की गवाही विरोधाभासी और अविश्वसनीय पाई गई।
  • जांच अधिकारी की अनुपस्थिति से अभियुक्त को गंभीर नुकसान पहुँचा।
  • इसलिए, अदालत ने सत्र न्यायालय का निर्णय रद्द किया और अभियुक्त को निर्दोष घोषित कर दिया।

अभियुक्त को जेल से तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया, यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्ष जांच का महत्व:
    अदालत ने दोहराया कि निष्पक्ष जांच और ठोस साक्ष्य के बिना किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
  • गलत सजा से सुरक्षा:
    अदालत ने कहा कि न्याय व्यवस्था का उद्देश्य यह नहीं कि निर्दोष व्यक्ति सजा पाए; बल्कि संदेह का लाभ हमेशा आरोपी को मिलना चाहिए।
  • जांच अधिकारियों की जिम्मेदारी:
    यह निर्णय पुलिस और अभियोजन को याद दिलाता है कि जांच अधिकारी की गवाही और केस डायरी का पूरा रिकॉर्ड आवश्यक है।
  • निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शन:
    केवल रिश्तेदार या असंगत गवाहों के बयान पर दोषसिद्धि नहीं की जानी चाहिए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या विरोधाभासी गवाहों के आधार पर सजा दी जा सकती है?
    ❌ नहीं, विरोधाभास और असंगति होने पर दोषसिद्धि अस्वीकार्य है।
  • क्या जांच अधिकारी का बयान आवश्यक है?
    ✅ हाँ, उसकी अनुपस्थिति से मामले की साख खत्म हो जाती है।
  • क्या चिकित्सीय और प्रत्यक्ष साक्ष्य मेल खाते थे?
    ❌ नहीं, दोनों में अंतर पाया गया।
  • अंतिम निर्णय:
    अभियुक्त बरी (Acquitted) किया गया।

मामले का शीर्षक

अपीलकर्ता बनाम बिहार राज्य
(सत्र वाद सं. 165/2008, कारपी थाना कांड सं. 33/2006 से संबंधित)

केस नंबर

Criminal Appeal (DB) No. 820 of 2015

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 601

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह
एवं
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव

(निर्णय दिनांक: 5 अप्रैल 2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री विक्रमदेव सिंह एवं श्री पारस नाथ — अपीलकर्ता की ओर से
  • श्री सत्य नारायण प्रसाद, एपीपी — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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