निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने 26 फरवरी 2021 को एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि कोई व्यक्ति किसी गैर-रिश्तेदार को स्वेच्छा से किडनी दान करना चाहता है, तो अस्पताल को उसका आवेदन रोकने या अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है।
यह मामला दो व्यक्तियों द्वारा दाखिल याचिका से जुड़ा था —
एक व्यक्ति गंभीर किडनी रोग से पीड़ित था और नियमित डायलिसिस पर निर्भर था, जबकि दूसरा व्यक्ति उसका मित्र और शुभचिंतक था, जिसने स्वेच्छा से अपनी किडनी दान करने की इच्छा व्यक्त की थी।
दोनों ने Paras HMRI Hospital, Patna से चिकित्सा प्रक्रिया शुरू करने का अनुरोध किया था। लेकिन अस्पताल ने यह कहकर प्रक्रिया रोक दी कि दाता (Donor) और प्राप्तकर्ता (Recipient) आपसी रिश्तेदार नहीं हैं, और संभव है कि दान के पीछे कोई आर्थिक या व्यावसायिक कारण हो।
अस्पताल ने यह भी कहा कि दाता एक मंदिर में पुजारी है, जो उस मंदिर में कार्य करता है जिसे प्राप्तकर्ता ने स्थापित किया था। इसलिए, उसे संदेह है कि दान निस्वार्थ नहीं है।
इससे दोनों पक्षों को कोई रास्ता नहीं मिला — अस्पताल ने आगे की कार्रवाई से इनकार किया और राज्य प्राधिकरण (Authorization Committee) ने कहा कि बिना अस्पताल की अनुशंसा के वे कुछ नहीं कर सकते।
आखिरकार दोनों ने पटना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अनुरोध किया कि अदालत राज्य सरकार और अस्पताल को निर्देश दे कि उनका आवेदन Authorization Committee के पास भेजा जाए ताकि वह तय कर सके कि दान स्वेच्छिक है या नहीं।
कानूनी पृष्ठभूमि
भारत में Transplantation of Human Organs and Tissues Act, 1994 (THO&T Act) लागू है। इस कानून का उद्देश्य दो मुख्य बातों को सुनिश्चित करना है —
- मानव अंगों के प्रत्यारोपण (Transplantation) को विनियमित करना, और
- अंगों की खरीद-फरोख्त रोकना।
कानून के अनुसार, निकट संबंधी (Near Relatives) — जैसे माता-पिता, संतान, भाई-बहन, या जीवनसाथी — बिना किसी अतिरिक्त अनुमति के अंग दान कर सकते हैं।
लेकिन यदि कोई व्यक्ति गैर-रिश्तेदार (Non-relative) को अंग दान करना चाहता है, तो उसे पहले Authorization Committee की अनुमति लेनी होती है।
धारा 9(3) के अनुसार, गैर-रिश्तेदार दान तभी वैध है जब समिति यह सुनिश्चित करे कि —
- दान पूरी तरह स्वेच्छिक है,
- कोई आर्थिक लेनदेन नहीं हुआ है, और
- दाता ने स्नेह, ममता या नैतिक भावना से प्रेरित होकर दान किया है।
अदालत के समक्ष मुख्य विवाद
अस्पताल ने परीक्षणों के बाद पाया कि दाता और प्राप्तकर्ता का रक्त समूह और जैविक संगति (Compatibility) उपयुक्त है।
इसके बावजूद अस्पताल ने यह कहते हुए आगे की प्रक्रिया रोक दी कि मामला “संदिग्ध” है।
इससे एक विचित्र स्थिति बन गई —
- अस्पताल कह रहा था कि प्राधिकरण समिति की अनुमति के बिना आगे नहीं बढ़ सकते,
- जबकि समिति कह रही थी कि आवेदन अस्पताल के माध्यम से ही आना चाहिए।
इस दुविधा में मरीज की जान जोखिम में पड़ गई।
पटना हाई कोर्ट का विश्लेषण
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की एकल पीठ ने पूरे मामले की सुनवाई की और कहा कि अस्पताल का रवैया गैरकानूनी और अमानवीय था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि —
- कानून का उद्देश्य मानवता की रक्षा करना है।
THO&T Act का मकसद वैध प्रत्यारोपण को प्रोत्साहित करना है, न कि असली जरूरतमंद मरीजों को प्रक्रिया से रोकना। - अस्पताल की भूमिका सीमित है।
अस्पताल का काम आवेदन लेना, चिकित्सकीय रिपोर्ट तैयार करना और उसे समिति को भेजना है। यह तय करना कि दान स्वेच्छिक है या नहीं, समिति का अधिकार क्षेत्र है, अस्पताल का नहीं। - दान पर संदेह जताना पर्याप्त कारण नहीं।
केवल इसलिए कि दाता गरीब है या प्राप्तकर्ता संपन्न है, यह नहीं माना जा सकता कि दान व्यापारिक उद्देश्य से किया गया है। - Authorization Committee की भूमिका सर्वोपरि है।
समिति को यह जांच करनी होती है कि दान स्वेच्छिक, निःस्वार्थ और सुरक्षित है। उसे दोनों पक्षों से पूछताछ करनी होती है और निर्णय लिखित रूप में देना होता है। - राज्य सरकार की जिम्मेदारी।
बिहार में यह अधिनियम राज्य विधानमंडल के संकल्प के बाद लागू हुआ है। इसलिए राज्य को चाहिए कि वह समिति के कार्य को पारदर्शी और शीघ्र बनाए।
अदालत ने कहा कि अस्पताल ने अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया और एक ज़रूरतमंद मरीज को मौत की कगार पर छोड़ दिया, जो कि असंवेदनशील और अनुचित है।
अदालत का आदेश
पटना हाई कोर्ट ने अस्पताल और राज्य प्राधिकरण को निर्देश दिया कि —
- मरीज और दाता का आवेदन तुरंत समिति के पास भेजा जाए,
- समिति 15 दिनों के भीतर निर्णय ले,
- यदि दान को स्वीकृति दी जाती है, तो प्रत्यारोपण की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाए।
अदालत ने यह भी कहा कि “कानून को तकनीकी जटिलताओं के बजाय मानवता के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।”
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है।
1. मरीजों के लिए
अब यह स्पष्ट हो गया कि यदि कोई गैर-रिश्तेदार भी सच्ची भावना से अंग दान करना चाहता है, तो अस्पताल उसे रोक नहीं सकता। जीवन बचाना सर्वोपरि है।
2. अस्पतालों के लिए
अस्पताल अब यह बहाना नहीं बना सकते कि “यह रिश्ता संदिग्ध है।” उन्हें आवेदन लेकर प्राधिकरण समिति को भेजना अनिवार्य है। यह उनका कानूनी कर्तव्य है।
3. सरकार और प्रशासन के लिए
राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि Authorization Committee नियमित रूप से कार्य करे, ताकि मरीजों को अनावश्यक देरी न झेलनी पड़े।
4. सामाजिक दृष्टिकोण से
यह निर्णय समाज को यह संदेश देता है कि दान करना अपराध नहीं है, बशर्ते यह बिना लालच और निःस्वार्थ भाव से किया जाए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अस्पताल गैर-रिश्तेदार के मामले को समिति तक भेजने से इंकार कर सकता है?
❌ नहीं। अस्पताल को आवेदन समिति को भेजना ही होगा। - क्या गैर-रिश्तेदार दान वैध है?
✅ हाँ, यदि यह स्वेच्छा से, बिना आर्थिक लाभ के किया गया हो और समिति इसकी पुष्टि करे। - क्या कानून दान पर रोक लगाता है?
❌ नहीं। कानून केवल व्यापारिक उद्देश्यों को रोकता है, स्वेच्छा दान की अनुमति देता है। - किसका अंतिम निर्णय मान्य होगा?
✅ Authorization Committee का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होगा।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए सिद्धांत
अदालत ने THO&T Act, 1994 और इसके 2014 के नियमों की व्याख्या करते हुए कहा कि कानून का उद्देश्य “जीवन की रक्षा के साथ नैतिकता बनाए रखना” है।
मामले का शीर्षक
Proposed Donor and Recipient v. State of Bihar & Ors. (गोपनीयता हेतु नाम नहीं दर्शाए गए)
केस नंबर
CWJC No. 14947 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 523
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री कृष्णकांत सिंह, श्री अनिल कुमार सिन्हा
- राज्य की ओर से: श्री एस.डी. यादव (ए.ए.जी.-9), श्रीमती शमा सिन्हा
- निजी अस्पताल की ओर से: श्री संदीप कुमार, श्री आलोक कुमार @ आलोक कुमार शाही
निर्णय का लिंक
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