पटना हाईकोर्ट 2020: गंभीर आरोपों वाले किशोर को भी ज़मानत देने का आदेश

पटना हाईकोर्ट 2020: गंभीर आरोपों वाले किशोर को भी ज़मानत देने का आदेश

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act) के तहत ज़मानत (Bail) ही सामान्य नियम है और किसी भी बच्चे को केवल इसलिए संस्थागत हिरासत (Observation Home) में नहीं रखा जा सकता क्योंकि उस पर गंभीर अपराध का आरोप है।

इस मामले में एक नाबालिग पर अपहरण और हत्या (IPC की धारा 363, 365, 302/34) का आरोप लगाया गया था। उसे अगस्त 2019 से किशोर गृह (Observation Home) में रखा गया था। उसकी ज़मानत की अर्जी पहले जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB), बक्सर ने 06.11.2019 को खारिज कर दी और फिर अपील में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-सह-विशेष न्यायाधीश, बक्सर ने भी 12.12.2019 को खारिज कर दी।

दोनों अदालतों ने यह कहते हुए ज़मानत से इनकार किया कि अपराध “गंभीर प्रकृति” का है और ज़मानत मिलने पर समाज में अशांति हो सकती है या किशोर को नैतिक और मानसिक खतरा होगा।

लेकिन पटना हाईकोर्ट ने कहा कि—

  • अपराध की गंभीरता ज़मानत रोकने का आधार नहीं हो सकती।
  • ज़मानत केवल तीन परिस्थितियों में ही रोकी जा सकती है:
    1. यदि किशोर किसी अपराधी के संपर्क में आने का खतरा हो।
    2. यदि उसकी रिहाई से उसे नैतिक या मानसिक खतरा हो।
    3. यदि उसकी रिहाई से न्याय के उद्देश्य विफल हो जाएं।
  • इस मामले में न तो निचली अदालतों ने कोई ठोस कारण बताया और न ही कोई सबूत दिया।
  • इसी मामले के एक अन्य किशोर सह-आरोपी को पहले ही ज़मानत मिल चुकी थी।

इस आधार पर हाईकोर्ट ने दोनों आदेश रद्द कर दिए और किशोर को ₹10,000 के जमानती बांड और दो ज़मानतदारों पर रिहा करने का आदेश दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • किशोर अपराध मामलों में: यह फैसला बताता है कि नाबालिगों के लिए ज़मानत ही मुख्य नियम है। गंभीर आरोप लगने से ही ज़मानत नहीं रोकी जा सकती।
  • परिवारों के लिए: बच्चों को केवल आरोपों के आधार पर संस्थागत हिरासत में लंबे समय तक रखना उचित नहीं है।
  • न्याय व्यवस्था के लिए: यह निर्णय दोहराता है कि किशोर न्याय अधिनियम का उद्देश्य दंड नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या केवल गंभीर अपराध होने के आधार पर किशोर को ज़मानत से वंचित किया जा सकता है?
    ❌ नहीं। अधिनियम के तहत अपराध की गंभीरता अप्रासंगिक है।
  • किन परिस्थितियों में ज़मानत रोकी जा सकती है?
    ✔️ केवल तभी जब रिहाई से अपराधियों से संपर्क, नैतिक/मानसिक खतरा या न्याय की विफलता का खतरा हो।
  • क्या निचली अदालतों ने सही निर्णय दिया था?
    ❌ नहीं। उन्होंने ठोस कारण या सबूत दिए बिना ज़मानत से इनकार किया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • लालू कुमार एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, 2019 (4) PLJR 833
  • सह-आरोपी को दी गई ज़मानत (Criminal Revision No. 1569/2019, आदेश दिनांक 15.06.2020)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • लालू कुमार एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (डिवीजन बेंच)

मामले का शीर्षक

XX (नाम गुप्त, धारा 74 JJ Act के अनुसार) बनाम State of Bihar

केस नंबर

Criminal Revision No. 50 of 2020
(उत्पन्न: थाना- दुमरांव, पी.एस. केस नं. 289/2019, जिला बक्सर)

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 667

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री शिवेन्द्र कुमार सिन्हा — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री दिलीप कुमार नं. 1, एपीपी — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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