पटना हाई कोर्ट ने एक अहम निर्णय में एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जिस पर ज़मीन सौदे में धोखाधड़ी का आरोप था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह विवाद पूरी तरह से सिविल प्रकृति का है और आपराधिक मुकदमा चलाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला एक ज़मीन के सौदे से जुड़ा है। याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने शिकायतकर्ता से ₹12,00,000 लिए और ज़मीन बेचने का वादा किया, लेकिन बाद में वह ज़मीन किसी तीसरे व्यक्ति को बेच दी। शिकायतकर्ता ने जब पैसे वापस मांगे या रजिस्ट्री की मांग की, तो कोई कार्यवाही नहीं हुई।
याचिकाकर्ता का कहना था कि यह सौदा जबरदस्ती कराया गया था, और उसने पहले ही शिकायतकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत की थी। उसने यह भी बताया कि उसने वह ज़मीन ₹16,80,000 में किसी और को बेची, जो शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए पैसे से अधिक थी। इसके अलावा, एफआईआर दायर करने में लगभग 9 महीने की देरी हुई, जिससे संदेह उत्पन्न होता है।
हाई कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता पहले ही सिविल कोर्ट में विशिष्ट निष्पादन (specific performance) के लिए मुकदमा दायर कर चुका है और वह उसके पक्ष में निर्णयित हो चुका है। इस पर याचिकाकर्ता ने अपील दायर कर रखी है।
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ यह कह देने से कि पैसे लिए गए और ज़मीन ट्रांसफर नहीं हुई, आपराधिक मामला नहीं बनता। यदि विवाद अनुबंध से संबंधित हो, तो उसका समाधान सिविल कोर्ट में होना चाहिए, न कि आपराधिक आरोपों के माध्यम से।
कोर्ट ने State of Haryana v. Bhajan Lal मामले का हवाला देते हुए यह माना कि यह मामला उस श्रेणी में आता है जहाँ आपराधिक मुकदमा दुर्भावनापूर्ण होता है और निजी बदले की भावना से दायर किया जाता है।
अतः, कोर्ट ने इस मामले में दायर आपराधिक कार्यवाही और संज्ञान लेने के आदेश को पूरी तरह से रद्द कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उस महत्वपूर्ण सिद्धांत को दोहराता है कि आपराधिक कानून का उपयोग निजी सिविल विवादों को सुलझाने के लिए नहीं किया जा सकता। इससे उन लोगों को राहत मिलती है जो गलत तरीके से आपराधिक मुकदमों में फंसा दिए जाते हैं। साथ ही, यह आम जनता को यह समझने में मदद करता है कि यदि कोई अनुबंधिक विवाद हो, तो उसका हल सिविल कोर्ट में तलाशना चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ज़मीन से संबंधित यह विवाद आपराधिक प्रकृति का है?
→ नहीं। यह पूरी तरह से सिविल प्रकृति का विवाद है और आपराधिक कार्यवाही अनुचित है। - क्या एफआईआर दर्ज करने में देरी का प्रभाव पड़ता है?
→ हाँ। नौ महीने की अनावश्यक देरी से मामला संदिग्ध हो जाता है। - क्या IPC की धाराओं 420 और 406 के तहत कार्यवाही न्यायोचित थी?
→ नहीं। कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of Haryana v. Bhajan Lal, 1992 Supp (1) SCC 335
- State of Karnataka v. L. Muniswamy, (1977) 2 SCC 699
मामले का शीर्षक
Rang Bahadur Singh v. State of Bihar & Anr.
केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 50408 of 2014
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 514
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री बच्चन जी ओझा — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री अभय कुमार नंबर 1, APP — राज्य की ओर से
- श्री आलोक रंजन — विपक्षी पार्टी संख्या 2 की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM1MDQwOCMyMDE0IzEjTg==-o0MLwYR0gj8=
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