निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) और सत्र न्यायाधीश के उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें एक लाइसेंसी बंदूक की रिहाई से इनकार किया गया था। यह बंदूक 2018 में कोतवाली थाना कांड संख्या 148/2018 के दौरान एक वाहन जांच के समय जब्त की गई थी। न्यायालय ने कहा कि जब तक किसी व्यक्ति का शस्त्र लाइसेंस रद्द नहीं होता या शस्त्र जब्त कर ज़ब्ती की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक केवल मुकदमे के लंबित रहने या रद्द करने के प्रस्ताव भर पर बंदूक को वापस देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
यह मामला 11 मार्च 2018 की एक घटना से जुड़ा है। पुलिस ने उस दिन गश्ती के दौरान एक सफेद फॉर्च्यूनर वाहन को रोका, जिसमें पाँच लोग सवार थे। तलाशी लेने पर एक व्यक्ति के पास से राइफल और 10 जिंदा कारतूस बरामद हुए। पुलिस का कहना था कि यह समूह ज़मीन विवाद से जुड़े मामलों में डर फैलाने का काम करता था। मौके पर कोई भी व्यक्ति मूल लाइसेंस नहीं दिखा सका, इसलिए मामला दर्ज हुआ।
बाद में, जिस व्यक्ति के नाम पर शस्त्र था, उसने CJM, पटना के समक्ष धारा 451 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत आवेदन दिया कि शस्त्र और कारतूस उसे वापस दे दिए जाएँ। लेकिन CJM ने 7 नवंबर 2020 को आवेदन खारिज कर दिया। सत्र न्यायालय में अपील भी असफल रही (8 अप्रैल 2021)। अंततः मामला पटना उच्च न्यायालय पहुँचा।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि बंदूक लाइसेंस प्राप्त है, किसी भी आपराधिक मामले में उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, न ही शस्त्र की ज़ब्ती की प्रक्रिया चली है, और न ही अब तक लाइसेंस रद्द किया गया है। पुलिस ने सिर्फ़ “रद्द करने का प्रस्ताव” भेजा है, जो कानूनी रूप से लाइसेंस रद्द करने के बराबर नहीं है।
राज्य की ओर से दायर प्रत्युत्तर (काउंटर एफिडेविट) में भी यह नहीं कहा गया कि लाइसेंस अवैध है या रद्द हुआ है। ऐसे में अदालत ने पाया कि बंदूक वैध लाइसेंस पर है और व्यक्ति का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
याचिकाकर्ता ने अपने पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय Sunderbhai Ambalal Desai v. State of Gujarat (2002) 10 SCC 283 का हवाला दिया। उस निर्णय में कहा गया है कि जब्त की गई संपत्ति को अनावश्यक रूप से वर्षों तक थाने या न्यायालय में रखने से वह खराब हो जाती है। इसलिए धारा 451 CrPC के तहत उचित शर्तों के साथ जल्द से जल्द रिहाई दी जानी चाहिए।
पटना उच्च न्यायालय ने यही सिद्धांत अपनाते हुए कहा कि यह मामला “लाइसेंसी शस्त्र” से संबंधित है, इसलिए इसे सामान्य अपराध के तहत जब्त माल के समान नहीं माना जा सकता। अदालत ने दोनों निचली अदालतों के आदेशों को रद्द करते हुए शस्त्र की रिहाई की अनुमति दी, लेकिन कुछ सख्त शर्तों के साथ।
रिहाई के लिए शर्तें
- याचिकाकर्ता को ₹2,00,000 की व्यक्तिगत बांड और एक सक्षम ज़मानतदार देना होगा।
- रिहाई से पहले मूल लाइसेंस प्रस्तुत कराना होगा।
- केवल वही कारतूस लौटाए जाएँगे जो लाइसेंस के अनुरूप हों।
- याचिकाकर्ता को यह सुनिश्चित करना होगा कि अदालत या पुलिस जब भी बुलाएँ, वह शस्त्र और कारतूस प्रस्तुत करे।
- ट्रायल कोर्ट चाहे तो अतिरिक्त शर्तें भी लगा सकता है।
इस प्रकार न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि केवल किसी एफआईआर या प्रस्ताव के आधार पर वैध लाइसेंसधारी से उसका शस्त्र छीनकर रखने का कोई औचित्य नहीं है। कानून का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को सुरक्षित रखना है, न कि नागरिक के वैध अधिकार को अनावश्यक रूप से सीमित करना।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला आम नागरिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। बहुत बार ऐसा होता है कि किसी घटना में नाम आने पर या महज़ पुलिस जांच के कारण लोगों की लाइसेंसी बंदूकें जब्त कर ली जाती हैं। फिर वर्षों तक वे वापस नहीं मिलतीं, भले ही कोई अपराध साबित न हुआ हो। अब यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि यदि लाइसेंस वैध है और व्यक्ति का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, तो धारा 451 CrPC के तहत शस्त्र को वापस पाना संभव है।
प्रशासन और पुलिस के लिए भी यह निर्णय मार्गदर्शक है। इससे स्पष्ट होता है कि पुलिस या अदालत को जांच के दौरान जब्त संपत्ति को उचित समय पर लौटाने की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे “मालखाना” (जहाँ जब्त वस्तुएँ रखी जाती हैं) का बोझ कम होगा और न्यायिक प्रक्रिया अधिक प्रभावी होगी।
इसके अलावा, यह निर्णय कानून के उस मूल सिद्धांत को दोहराता है कि जब तक किसी व्यक्ति के अधिकार को विधिवत समाप्त नहीं किया जाता, तब तक प्रशासन उसे मनमाने ढंग से सीमित नहीं कर सकता।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या लाइसेंस रद्द किए बिना धारा 451 CrPC के तहत शस्त्र की रिहाई रोकी जा सकती है?
➤ नहीं। जब तक लाइसेंस रद्द नहीं हुआ है या शस्त्र ज़ब्त नहीं किया गया है, रिहाई से इनकार नहीं किया जा सकता। - क्या सिर्फ़ FIR में नाम आने या प्रस्ताव भेजने भर से व्यक्ति शस्त्र वापस नहीं पा सकता?
➤ नहीं। अदालत ने कहा कि प्रस्ताव या आरोप पर्याप्त नहीं हैं। जब तक कोई ठोस आदेश नहीं होता, व्यक्ति अपने वैध अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। - रिहाई के समय किन शर्तों का पालन आवश्यक है?
➤ ₹2 लाख की बांड, मूल लाइसेंस की जांच, लाइसेंस के अनुरूप कारतूस की पुष्टि, और जब भी अदालत बुलाए तो शस्त्र पेश करने की बाध्यता। - क्या निचली अदालतों के आदेश सही थे?
➤ नहीं। न्यायालय ने कहा कि CJM और सत्र न्यायाधीश ने सही तथ्यों और कानून के सिद्धांतों पर ध्यान नहीं दिया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Sunderbhai Ambalal Desai v. State of Gujarat, (2002) 10 SCC 283 — यह निर्णय बताया गया कि जब्त संपत्ति को अनावश्यक रूप से लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Sunderbhai Ambalal Desai v. State of Gujarat, (2002) 10 SCC 283 — उच्च न्यायालय ने इसी निर्णय के सिद्धांतों पर भरोसा करते हुए आदेश पारित किया।
मामले का शीर्षक
Dinesh Kumar v. State of Bihar
केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 64946 of 2021; arising out of Kotwali P.S. Case No. 148 of 2018 (G.R. No. 1623/2018)
उद्धरण (Citation)
2025 (1) PLJR 893
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति चंद्र शेखर झा (दिनांक 06.02.2025, मौखिक आदेश)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री रुद्रांक शिवम सिंह — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री सत्येन्द्र प्रसाद, APP — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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