पटना उच्च न्यायालय का फैसला: बैंक द्वारा मकान नीलामी और कर्ज़दार की असफलता — 2021

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: बैंक द्वारा मकान नीलामी और कर्ज़दार की असफलता – 2021

निर्णय की सरल व्याख्या

फरवरी 2021 में पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मामला सुना, जिसमें दो व्यक्तियों ने बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा उनके मकान की नीलामी रोकने की मांग की। यह मकान उनका एकमात्र आवासीय घर था।

याचिकाकर्ताओं ने बैंक से टर्म लोन लिया था, लेकिन दिसंबर 2019 से वे किश्तें नहीं चुका पाए। उनका कहना था कि बाढ़ और कोविड-19 लॉकडाउन के कारण उनका व्यवसाय ठप हो गया और वे आर्थिक संकट में आ गए। इसी वजह से किस्तें नहीं भर पाए।

याचिका में उन्होंने यह राहत मांगी:

  1. 11.06.2020 को जारी कब्ज़ा नोटिस रद्द किया जाए, जो बैंक ने SARFAESI अधिनियम के तहत जारी किया था।
  2. बैंक को मकान की नीलामी से रोका जाए, क्योंकि यह उनका एकमात्र आवास है।
  3. कोविड-19 महामारी के दौरान बकाया पर अतिरिक्त ब्याज और चार्ज माफ़ किए जाएं

03.12.2020 को जब मामला अदालत में आया, तो याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे 31.12.2020 तक सभी बकाया किस्तें चुका देंगे और जनवरी 2021 में 6 लाख रुपये अग्रिम किश्त के रूप में जमा करेंगे। अदालत ने उनकी बात मान ली और नीलामी पर रोक लगा दी। बैंक ने भी सहयोग दिखाया और इस व्यवस्था को स्वीकार किया।

लेकिन 08.02.2021 को जब अदालत ने प्रगति की समीक्षा की, तो स्थिति अलग थी। तय 9.53 लाख रुपये की जगह याचिकाकर्ताओं ने सिर्फ़ 1 लाख रुपये (31 दिसंबर 2020 को) और फिर केवल 19 हज़ार रुपये (जनवरी 2021 में) जमा किए। बैंक ने बताया कि याचिकाकर्ता अपनी ही प्रतिबद्धता पूरी नहीं कर पाए।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने दूसरी संपत्ति बेचने का समझौता किया है, लेकिन भुगतान अभी नहीं मिला है, इसलिए समय चाहिए। अदालत ने इसे मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने “बुरी तरह असफल” होकर अपने ही वादे तोड़े हैं और इसलिए अब उन्हें अनुच्छेद 226 के तहत किसी भी राहत का हकदार नहीं माना जा सकता।

इसलिए याचिका खारिज कर दी गई। बैंक को यह छूट दी गई कि वह कानून के अनुसार बकाया राशि की वसूली के लिए मकान की नीलामी सहित कोई भी कार्रवाई कर सकता है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला उन सभी कर्ज़दारों के लिए सीख है जो अदालत से बार-बार राहत चाहते हैं लेकिन अपने वादे पूरे नहीं करते। अदालत ने साफ़ कर दिया कि अगर कोई व्यक्ति अदालत में की गई प्रतिबद्धता निभाने में असफल रहता है, तो उसे बार-बार राहत नहीं मिलेगी।

बैंकों के लिए यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके अधिकारों की पुष्टि करता है कि वे SARFAESI अधिनियम के तहत बकाया राशि वसूल सकते हैं, भले ही संपत्ति उधारकर्ता का एकमात्र घर क्यों न हो।

उधारकर्ताओं के लिए यह एक चेतावनी है कि अदालतें केवल असाधारण हालात (जैसे कोविड-19 महामारी) को देखते हुए अस्थायी राहत देती हैं। लेकिन अंत में ऋण अनुबंध और भुगतान की जिम्मेदारी पूरी करनी ही होगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या कोविड-19 संकट के कारण SARFAESI अधिनियम के तहत जारी कब्ज़ा और नीलामी नोटिस को रद्द किया जा सकता है?
    ❌ नहीं। अदालत ने कहा कि एक बार राहत दी गई थी, लेकिन जब याचिकाकर्ता वादा पूरा नहीं कर पाए, तो अब राहत नहीं दी जा सकती।
  • क्या बैंक ने एकमात्र आवासीय मकान नीलाम करके अनुचित कार्य किया?
    ❌ नहीं। बैंक ने कानून के अनुसार कार्य किया और पहले ही एक मौका दिया था।
  • क्या याचिकाकर्ताओं को और समय दिया जा सकता था?
    ❌ नहीं। अदालत ने कहा कि जब कोई व्यक्ति अदालत के सामने दिए गए वादे निभाने में असफल हो, तो उसे दोबारा राहत देने का कोई आधार नहीं।

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता बनाम बैंक ऑफ बड़ौदा एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 8883 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 782

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
(मौखिक निर्णय दिनांक 08.02.2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ताओं की ओर से: अधिवक्ता अजीत कुमार सिंह
  • बैंक की ओर से: अधिवक्ता मनीष किशोर

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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