निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने डीआरटी द्वारा लोक अदालत के पुराने समझौते को रद्द करने के आदेश को चुनौती दी थी। यह मामला एक उधारकर्ता से जुड़ा था, जिसने बैंक से लिए गए कर्ज को समय पर चुकता नहीं किया।
बैंक ने ₹34 लाख से अधिक की राशि की वसूली के लिए कार्रवाई शुरू की थी और ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) से वसूली प्रमाणपत्र प्राप्त किया। हालांकि, याचिकाकर्ता ने 2010 में लोक अदालत के माध्यम से ₹27 लाख के समझौते की पेशकश की, पर वह उसका भुगतान भी नहीं कर पाया।
इसके बाद, 2014 में एक “मेगा लोक अदालत” में याचिकाकर्ता ने झूठा दावा किया कि उस पर सिर्फ ₹96,134 बाकी है और ₹20,000 अतिरिक्त देकर मामला समाप्त करने की पेशकश की। बैंक को यह सूचना बाद में मिली कि कुल बकाया ₹52 लाख से अधिक था। बैंक ने इसे धोखा मानते हुए लोक अदालत के आदेश को रद्द करने के लिए DRT में अर्जी दी।
DRT ने बैंक की याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि 2014 का समझौता गलत जानकारी के आधार पर हुआ था। इसलिए वसूली की कार्रवाई फिर से शुरू होनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि लोक अदालत में हुआ समझौता अंतिम और बाध्यकारी होता है। लेकिन कोर्ट ने माना कि जब समझौता धोखे से हुआ हो, तो उसे रद्द किया जा सकता है, और DRT के पास ऐसा करने का अधिकार है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सभी के लिए एक सख्त संदेश है जो बैंक या न्यायालय को गुमराह कर समझौते का लाभ उठाना चाहते हैं। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई समझौता झूठी जानकारी या धोखे के आधार पर होता है, तो वह टिकाऊ नहीं होता।
बैंकों और सरकारी संस्थाओं के लिए भी यह निर्णय राहतकारी है क्योंकि इससे उनके द्वारा सार्वजनिक धन की रक्षा को प्राथमिकता दी गई है। यह बताया गया है कि लोक अदालत में समझौता केवल तभी वैध होता है जब वह सही जानकारी और पारदर्शिता के साथ किया गया हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या लोक अदालत में हुआ समझौता गलत जानकारी के आधार पर रद्द किया जा सकता है?
❖ हां। DRT ऐसे मामलों में आदेश को वापस ले सकता है। - क्या DRT को ऐसे समझौते को मान लेना चाहिए जो सही रिकॉर्ड पर आधारित न हो?
❖ नहीं। समझौता तभी वैध माना जाएगा जब वह तथ्यात्मक रूप से सही हो। - क्या पहले से जारी वसूली प्रमाणपत्र को नजरअंदाज कर फिर से समझौता किया जा सकता है?
❖ नहीं। वसूली प्रमाणपत्र जब तक चुनौती नहीं दी जाती, वैध रहता है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Tarsem Singh v. Sukhminder Singh, AIR 1998 SC 1400
- State of Punjab v. Jalour Singh, (2008) 2 SCC 660
- P.T. Thomas v. Thomas Job, (2005) 4 SCC 46
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Indian Bank v. Blue Jaggers Estates Ltd., (2010) 8 SCC 129
- Bharvagi Constructions v. Kothakapu Muthyam Reddy, AIR 2017 SC 4428
- Rajeev Kumar Singh v. Chairman, Indian Bank, 2017 (3) BLJ PHC 268
- Dr. Shashi Prateek v. Charan Singh Verma, AIR 2009 All 109
मामले का शीर्षक
[Name Redacted] बनाम सहायक महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 19502 of 2016
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 128
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री अरविंद कुमार झा — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री संजीव कुमार — प्रतिवादियों की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTk1MDIjMjAxNiMxI04=-iPsavojWEeY=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।