पटना हाईकोर्ट ने दुष्कर्म की कोशिश के आरोप को किया कम, केवल शीलभंग का दोषी ठहराया

पटना हाईकोर्ट ने दुष्कर्म की कोशिश के आरोप को किया कम, केवल शीलभंग का दोषी ठहराया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को आंशिक रूप से रद्द कर दिया गया। पहले आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376/511 (दुष्कर्म की कोशिश) के तहत दोषी ठहराया गया था और 5 साल की सजा दी गई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने सबूतों की बारीकी से जांच के बाद पाया कि आरोपी पर यह गंभीर आरोप नहीं टिकता है। कोर्ट ने आरोपी को IPC की धारा 354 (स्त्री की लज्जा भंग करना) के तहत दोषी ठहराया और 1 साल की सजा सुनाई।

यह घटना अगस्त 2013 में बिहार के पश्चिम चंपारण जिले की है। रात के समय, एक 18 वर्षीया युवती जब घर में अकेली सो रही थी, तब आरोपी कथित रूप से जबरन घर में घुसा और उसके साथ छेड़छाड़ की। युवती के चिल्लाने पर परिजन आए, लेकिन तब तक आरोपी भाग चुका था।

मामले में 5 गवाहों की गवाही हुई, जिनमें पीड़िता, उसके माता-पिता और भाई शामिल थे। हालांकि, जांच अधिकारी (IO) की गवाही नहीं हो सकी, जिससे बचाव पक्ष को आरोपों में अंतर को उजागर करने का मौका नहीं मिला।

कोर्ट ने माना कि आरोपी ने युवती की गरिमा को ठेस पहुँचाई, लेकिन न ही कोई कपड़े उतारे गए और न ही शारीरिक संपर्क (penetration) का कोई प्रमाण था, जो कि दुष्कर्म की कोशिश साबित करने के लिए जरूरी होता है। इसीलिए न्यायालय ने कहा कि धारा 376/511 के तहत सजा उचित नहीं है। लेकिन आरोपी का कृत्य IPC की धारा 354 के अंतर्गत आता है, क्योंकि उसने युवती की लज्जा भंग करने की कोशिश की थी।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले तर्केश्वर साहू बनाम बिहार राज्य (2006) 8 SCC 560 का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति को गंभीर अपराध के तहत आरोपित किया गया हो लेकिन सबूत उस अपराध को सिद्ध नहीं करते, तब भी यदि कोई हल्का अपराध सिद्ध होता है तो सजा दी जा सकती है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला यह दर्शाता है कि न्यायालय केवल आरोपों पर नहीं, बल्कि सबूतों के आधार पर निर्णय देता है। यह आम जनता के लिए भी एक संकेत है कि महिलाओं की गरिमा भंग करने वाले अपराधों को भी गंभीरता से लिया जाएगा, भले ही वह दुष्कर्म की सीमा तक न पहुंचे हों।

यह निर्णय कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अभियोजन पक्ष को यह सिखाता है कि जांच और साक्ष्य की पूरी तैयारी जरूरी है। जांच अधिकारी की अनुपस्थिति से अभियोजन पक्ष को नुकसान होता है। साथ ही, यह अदालतों की संवेदनशीलता और संतुलन का भी परिचायक है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या आरोपी को धारा 376/511 के तहत दोषी ठहराना उचित था?
    • निर्णय: नहीं, इस अपराध के लिए आवश्यक तत्व (जैसे शारीरिक संपर्क) नहीं थे।
  • क्या आरोपी को IPC की धारा 354 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है?
    • निर्णय: हाँ, युवती की लज्जा भंग करने की कोशिश स्पष्ट रूप से सिद्ध है।
  • क्या IPC धारा 354 के तहत सजा पर्याप्त है?
    • निर्णय: हाँ, एक वर्ष की सश्रम कारावास उचित सजा है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • तर्केश्वर साहू बनाम बिहार राज्य (अब झारखंड), (2006) 8 SCC 560

मामले का शीर्षक

Criminal Appeal (SJ) No. 716 of 2019

केस नंबर

CRIMINAL APPEAL (SJ) No.716 of 2019

उद्धरण (Citation)- 2025 (1) PLJR 143

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति संदीप कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ता की ओर से: श्री बिमलेश कुमार पांडेय और श्री अशोक कुमार सिंह, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्रीमती अभा सिंह, APP

निर्णय का लिंक

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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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