निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 7 नवंबर 2022 को एक अहम फैसला सुनाया, जो धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति पर सरकारी निर्माण कार्य से जुड़ा था। यह मामला बिहार के सीवान जिले के एक मठ (Math) की ज़मीन से संबंधित था, जिस पर सरकार ने कई वर्ष पहले एक पक्की सड़क बनवा दी थी।
मठ के महंथ (मुख्य पुजारी) ने दावा किया कि यह सड़क उनकी मठ की ज़मीन पर बनाई गई है, बिना उनकी अनुमति के, और इसलिए उन्हें मुआवज़ा या पुनर्स्थापन (restitution) मिलना चाहिए।
लेकिन अदालत ने पाया कि इस ज़मीन की मालिकाना स्थिति (ownership) ही अभी तक तय नहीं हुई है और यह मामला पहले से ही दीवानी अदालत में लंबित है। इसके अलावा, सड़क करीब 17–18 साल पहले बनाई गई थी और उस समय या उसके बाद भी मठ की ओर से कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई थी। इसलिए अदालत ने महंथ की अपील को खारिज कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
महंथ ने अदालत में यह शिकायत की कि उनके मठ की एक बड़ी ज़मीन, जो एक तालाब के चारों ओर स्थित थी, उस पर सरकार ने लोक निर्माण विभाग के तहत एक पक्की सड़क बना दी। यह सड़क अब आम जनता द्वारा इस्तेमाल की जा रही है।
उन्होंने दावा किया कि सड़क के निर्माण से पहले मठ की सहमति नहीं ली गई। उन्होंने कई बार जिला और संभागीय अधिकारियों से शिकायत की, जिनमें शामिल थे:
- सारण संभाग के आयुक्त (Commissioner),
- जिला जन शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (District Grievance Redressal Cell),
- और लोक शिकायत विभाग के सचिव।
आयुक्त ने स्थानीय अंचल अधिकारी (Circle Officer) को निर्देश दिया था कि वह जांच करें कि सड़क मठ की ज़मीन पर बनी है या नहीं, और अगर बनी है तो क्या मठ से अनुमति ली गई थी। लेकिन यह जांच पूरी नहीं की गई।
महंथ ने फिर सिविल रिट याचिका (C.W.J.C. No. 12003 of 2019) दाखिल की, जिसमें उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि प्रशासन को आदेश दिया जाए कि वह इस जांच को पूरा करे और उन्हें उचित मुआवज़ा दे।
एकल पीठ का निर्णय
मामला पहले माननीय एकल पीठ के समक्ष आया। अदालत ने पाया कि:
- ज़मीन की मालिकाना स्थिति विवादित है।
इस पर पहले से ही Title Suit No. 243/1987 चल रहा था, जिसमें महंथ के गुरु ने दावा किया था कि ज़मीन मठ की है। लेकिन दीवानी अदालत ने फैसला दिया कि यह ज़मीन बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड (Bihar State Board of Religious Trusts) की संपत्ति है, न कि मठ की। - उक्त निर्णय के खिलाफ अपील लंबित है।
- यह सड़क लगभग 17–18 वर्ष पहले बनाई गई थी और इतने लंबे समय में मठ की ओर से कोई लिखित आपत्ति नहीं आई।
इसलिए अदालत ने माना कि —
- जब ज़मीन की मालिकाना स्थिति ही तय नहीं हुई है, तो मुआवज़े की माँग असमय है।
- इतनी लंबी अवधि के बाद मुआवज़े की माँग करना न्यायिक दृष्टि से उचित नहीं है।
इस आधार पर एकल पीठ ने याचिका खारिज कर दी।
महंथ की अपील (Letters Patent Appeal No. 1 of 2020)
महंथ ने इस फैसले के खिलाफ खंडपीठ (Division Bench) में अपील की।
उनके वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजेन्द्र नारायण का तर्क था कि:
- एकल पीठ ने गलत तरीके से यह मान लिया कि महंथ ने सहमति दी थी।
- मुख्य मुद्दा “सहमति” का नहीं, बल्कि यह था कि प्रशासन ने आयुक्त के आदेश का पालन ही नहीं किया।
- यह ज़मीन मठ की है, इसलिए सरकार को पहले अनुमति लेनी चाहिए थी।
- अदालत को प्रशासन को जांच पूरी करने और मुआवज़ा तय करने का निर्देश देना चाहिए था।
दूसरी ओर, बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गणपति त्रिवेदी और राज्य सरकार की ओर से श्री संजय प्रसाद ने कहा:
- यह ज़मीन धार्मिक न्यास बोर्ड की संपत्ति है, मठ की नहीं।
- जब मालिकाना हक़ पर ही मुकदमा लंबित है, तो मुआवज़ा नहीं दिया जा सकता।
- सड़क करीब 20 साल पहले बनी थी, और तब कोई आपत्ति नहीं की गई।
उच्च न्यायालय का विश्लेषण
माननीय न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार और नवनीत कुमार पांडेय की खंडपीठ ने विस्तार से सुनवाई की और एकल पीठ के आदेश को सही ठहराया।
अदालत ने कहा:
- ज़मीन की मालिकाना स्थिति स्पष्ट नहीं है।
- न तो रिट याचिका मठ की ओर से दाखिल की गई थी, न ही यह साबित हुआ कि महंथ व्यक्तिगत रूप से उस ज़मीन के मालिक हैं।
- जब तक Title Appeal का निर्णय नहीं होता, यह दावा अधूरा है।
- लगभग 20 वर्ष की देरी।
- सड़क दो दशक पहले बनी और तब कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई।
- अब जाकर मुआवज़ा माँगना “लाचेस” (laches – undue delay) की श्रेणी में आता है।
- सहमति का प्रश्न:
- अदालत ने यह माना कि धार्मिक संपत्ति के उपयोग के लिए लिखित सहमति जरूरी होती है।
- लेकिन जब इतने साल तक कोई विरोध दर्ज नहीं हुआ, तो यह निहित सहमति (implied consent) मानी जा सकती है।
- टाइटल अपील का परिणाम प्रतीक्षित।
- जब तक दीवानी अपील में स्पष्ट रूप से तय न हो जाए कि ज़मीन किसकी है, तब तक अदालत मुआवज़े या स्वामित्व पर फैसला नहीं दे सकती।
अंतिम निर्णय
अदालत ने कहा:
“हम एकल पीठ के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। यदि टाइटल अपील मठ के पक्ष में जाती है, तो महंथ भविष्य में उचित मंच पर अपना दावा प्रस्तुत कर सकते हैं।”
इस प्रकार, Letters Patent Appeal No. 1 of 2020 को खारिज कर दिया गया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति के अधिकारों की स्पष्टता:
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि किसी महंथ को व्यक्तिगत रूप से मठ की संपत्ति पर अधिकार नहीं है जब तक कि कानून या न्यायालय ऐसा घोषित न करे। - विलंबित मुआवज़े की माँग अस्वीकार्य:
जब कोई सार्वजनिक निर्माण लंबे समय पहले हो चुका हो और जनता उससे लाभ उठा रही हो, तो वर्षों बाद मुआवज़ा माँगना उचित नहीं है। - लिखित अनुमति का महत्व:
अदालत ने माना कि धार्मिक न्यास या मठ की ज़मीन के प्रयोग के लिए लिखित सहमति आवश्यक है, ताकि भविष्य में विवाद न हो। - भविष्य के दावे के लिए खुला रास्ता:
यदि आगे चलकर टाइटल अपील में मठ की जीत होती है, तो महंथ या मठ संबंधित अधिकारियों के समक्ष मुआवज़े की माँग कर सकते हैं। - सरकारी एजेंसियों के लिए सबक:
यह निर्णय सरकारी अधिकारियों को याद दिलाता है कि धार्मिक या ट्रस्ट की संपत्ति का उपयोग करने से पहले कानूनी सत्यापन और लिखित अनुमति लेना अनिवार्य है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या महंथ को मठ की ज़मीन पर सड़क निर्माण के लिए मुआवज़ा मिल सकता है?
❌ नहीं। क्योंकि ज़मीन का स्वामित्व विवादित है और दावा बहुत देर से किया गया। - क्या मौखिक सहमति मान्य है?
⚖️ नहीं। धार्मिक संपत्ति के लिए लिखित सहमति आवश्यक है, लेकिन इतने वर्षों तक आपत्ति न करना निहित सहमति माना जा सकता है। - क्या अदालत लंबित दीवानी अपील के दौरान हस्तक्षेप कर सकती है?
❌ नहीं। अदालत ने कहा कि पहले स्वामित्व तय हो, उसके बाद ही मुआवज़े पर विचार किया जा सकता है।
मामले का शीर्षक
महंथ बनाम बिहार राज्य एवं अन्य — सीवान जिले की मठ भूमि पर सड़क निर्माण से संबंधित मामला।
केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 1 of 2020
arising from C.W.J.C. No. 12003 of 2019
उद्धरण (Citation)
2023 (1) PLJR 9
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार
- माननीय श्री न्यायमूर्ति नवनीत कुमार पांडेय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री राजेन्द्र नारायण (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री दिनेश्वर प्रसाद सिंह
- बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड की ओर से: श्री गणपति त्रिवेदी (वरिष्ठ अधिवक्ता)
- राज्य की ओर से: श्री संजय प्रसाद
निर्णय का लिंक
MyMxIzIwMjAjMSNO-Ouiq–ak1–ylr5jg=
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