डॉक्टरों के खिलाफ मेडिकल लापरवाही का केस बिना सबूत के नहीं चल सकता: पटना हाईकोर्ट का अहम फैसला

डॉक्टरों के खिलाफ मेडिकल लापरवाही का केस बिना सबूत के नहीं चल सकता: पटना हाईकोर्ट का अहम फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए डॉक्टरों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमा खारिज कर दिया। यह मामला मेडिकल लापरवाही (धारा 304A और 120B आईपीसी) का था, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसके पिता की मृत्यु एक निजी अस्पताल में गलत सर्जरी की वजह से हुई थी।

शिकायत के अनुसार, मरीज को ऑपरेशन के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था और यह भरोसा दिया गया था कि ऑपरेशन एक अनुभवी डॉक्टर करेंगे। लेकिन बाद में ऑपरेशन किसी अन्य डॉक्टर ने किया, जिससे मरीज की हालत बिगड़ गई और मृत्यु हो गई।

पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि:

  • मरीज का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था, जिससे मृत्यु के असली कारण का पता नहीं चल सका।
  • शिकायत केवल संदेह और अनुमान पर आधारित थी, कोई ठोस प्रमाण नहीं था।
  • किसी स्वतंत्र डॉक्टर या मेडिकल बोर्ड से विशेषज्ञ राय नहीं ली गई थी।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, किसी डॉक्टर के खिलाफ मेडिकल लापरवाही के मामले में सीधे कोर्ट द्वारा संज्ञान नहीं लिया जा सकता, जब तक कि पहले एक विशेषज्ञ डॉक्टर या मेडिकल कमेटी से राय न ले ली जाए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि बिना ठोस मेडिकल रिपोर्ट या पोस्टमार्टम के, डॉक्टरों को मुकदमे में घसीटना न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि इससे चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों को मानसिक पीड़ा और सामाजिक बदनामी का सामना करना पड़ता है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला डॉक्टरों के लिए राहत भरा है, जो अक्सर बिना पर्याप्त जांच के लापरवाही के आरोपों का सामना करते हैं। यह स्पष्ट करता है कि मेडिकल पेशे से जुड़े मामलों में सामान्य लोगों की आशंका या आरोपों के आधार पर आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती।

यह निर्णय आम जनता को यह समझाने में भी मदद करता है कि मेडिकल लापरवाही साबित करने के लिए विशेषज्ञ राय जरूरी है और कानून केवल ठोस साक्ष्य पर ही कार्रवाई करता है। इससे झूठे या जल्दबाज़ी में किए गए मामलों पर रोक लगेगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा: क्या डॉक्टरों के खिलाफ बिना पोस्टमार्टम और विशेषज्ञ राय के आपराधिक संज्ञान लिया जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं; यह कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है।
  • मुद्दा: क्या केवल संदेह के आधार पर डॉक्टरों को आपराधिक मुकदमे में घसीटना उचित है?
    • निर्णय: नहीं; सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Jacob Mathew बनाम पंजाब राज्य, (2005) 6 SCC 1
  • Martin F. D’Souza बनाम मोहम्मद इश्फ़ाक, (2009) 3 SCC 1
  • Dr. Ashok Kumar Singh बनाम बिहार राज्य, Cr. Misc. Case No. 40712 of 2012

मामले का शीर्षक
Dr. Rabindra Narayan Singh & Ors. बनाम राज्य बिहार एवं अन्य

केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 22984 of 2016

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 67

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति शैलेन्द्र सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री साकेत तिवारी, अधिवक्ता (याचिकाकर्ताओं की ओर से)
  • श्री अनीमेश गुप्ता, अधिवक्ता (याचिकाकर्ताओं की ओर से)
  • श्री शिवम गुप्ता, अधिवक्ता (याचिकाकर्ताओं की ओर से)
  • श्री अमृत्य राज, अधिवक्ता (याचिकाकर्ताओं की ओर से)
  • श्री बिनोद कुमार नं. 3, सहायक लोक अभियोजक (राज्य की ओर से)
  • प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से कोई पेश नहीं हुआ।

निर्णय का लिंक
NiMyMjk4NCMyMDE2IzE2I04=-NaQsn5–ak1–f0Dw=

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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