पटना हाई कोर्ट का फैसला: मेरिट सूची में पहले स्थान पर रहे अभ्यर्थी को नियुक्ति देना उचित

पटना हाई कोर्ट का फैसला: मेरिट सूची में पहले स्थान पर रहे अभ्यर्थी को नियुक्ति देना उचित

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने ग्राम कचहरी सचिव पद पर नियुक्ति से जुड़े एक विवाद में अहम फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता द्वारा अपनी नियुक्ति को रद्द किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने उच्च मेरिट वाले अभ्यर्थी को नियुक्त करना उचित ठहराया।

यह मामला पूर्णिया जिले के धामदाहा प्रखंड के रंगपुरा साउथ ग्राम पंचायत का है। वर्ष 2007 में ग्राम कचहरी सचिव की नियुक्ति हेतु चयन प्रक्रिया शुरू हुई थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि काउंसलिंग के दिन पहले और दूसरे नंबर पर रहे अभ्यर्थी अनुपस्थित थे, इसलिए उन्हें तीसरे स्थान से चयनित किया गया। उन्हें 30 सितंबर 2007 को नियुक्ति पत्र मिला और 1 अक्टूबर को उन्होंने योगदान भी दे दिया।

बाद में मेरिट सूची में पहले स्थान पर रहे अभ्यर्थी (प्रतिवादी संख्या 6) ने शिकायत दर्ज कराई कि उन्होंने काउंसलिंग में भाग लिया था और जानबूझकर उन्हें नजरअंदाज किया गया। यह मामला उपविभागीय पदाधिकारी (SDO) के पास पहुंचा, जिन्होंने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला दिया और मेरिट सूची के अनुसार चयन करने का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता ने पहले जिला पदाधिकारी और फिर पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने पहले 2010 में SDO को निर्देश दिया था कि वे दोनों पक्षों की सुनवाई कर निष्पक्ष रूप से यह तय करें कि प्रतिवादी संख्या 6 ने काउंसलिंग में भाग लिया था या नहीं।

पुनः सुनवाई के बाद SDO और फिर जिला पदाधिकारी ने यह माना कि दोनों पक्ष काउंसलिंग में भाग लेने या नहीं लेने का ठोस प्रमाण नहीं दे पाए। ऐसे में उच्च मेरिट को प्राथमिकता दी गई और प्रतिवादी संख्या 6 को नियुक्ति दी गई।

पटना हाई कोर्ट ने वर्तमान याचिका में स्पष्ट किया कि जब प्रतिवादी संख्या 6 के काउंसलिंग में भाग न लेने की कोई पुष्टि नहीं है और वो मेरिट सूची में प्रथम स्थान पर है, तो नियुक्ति प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनता।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय स्थानीय निकायों में पारदर्शी और मेरिट-आधारित नियुक्तियों के महत्व को रेखांकित करता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि चयन प्रक्रिया में साक्ष्य की अनुपस्थिति में मेरिट सूची को ही निर्णायक माना जाएगा। इससे यह संदेश जाता है कि नियुक्ति में केवल उपस्थिति या मौखिक दावों से नहीं, बल्कि प्रलेखित और सत्यापित तथ्यों से ही निर्णय होना चाहिए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या काउंसलिंग में भाग लेने का स्पष्ट प्रमाण न होने पर शीर्ष मेरिट वाले अभ्यर्थी को नियुक्त किया जा सकता है?
    • न्यायालय का निर्णय: हां, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि उन्होंने भाग नहीं लिया, तब तक मेरिट के आधार पर नियुक्ति वैध है।
  • क्या हाई कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देशों का पालन अधिकारियों ने सही से किया?
    • न्यायालय का निर्णय: हां, दोनों पक्षों की सुनवाई कर कारणयुक्त आदेश पारित किया गया।
  • क्या शिकायत में देरी नियुक्ति को अमान्य कर सकती है?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं, यह मुद्दा पहले ही कोर्ट द्वारा निपटाया जा चुका है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • CWJC No. 16463 of 2009 (पटना हाई कोर्ट, दिनांक 11.01.2010)

मामले का शीर्षक
Madan Kumar बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 17814 of 2019

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 206

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री बिनय कुमार सिंह, श्रीमती स्वेता राज, श्री कुमार भारत — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री कुमार आलोक (SC-7) — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTc4MTQjMjAxOSMxI04=-6nNSSxg4caE=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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