निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि जब खनन पट्टा समाप्त हो जाए और पट्टेदार के द्वारा पहले से निकाला गया खनिज (जैसे पत्थर के टुकड़े) स्थल पर पड़ा रह जाए, तो प्रशासन को उचित समय-सीमा के भीतर उसे उठाने की अनुमति देनी चाहिए। न्यायालय ने यह भी सुनिश्चित किया कि राज्य सरकार का राजस्व — विशेष रूप से रॉयल्टी और जीएसटी — सुरक्षित रहे।
मामला एक ठेकेदार से जुड़ा था जिसने बिहार सरकार के सड़क निर्माण परियोजना के लिए दो खनिज ब्लॉकों में काम किया था। ब्लॉक-3 का पट्टा 30 दिसंबर 2020 और ब्लॉक-6 का पट्टा 14 जनवरी 2021 को समाप्त हुआ। कोविड-19 महामारी के कारण काम में काफी देरी हुई और पट्टा समाप्त होने के बाद भी कुछ पत्थर के टुकड़े (broken stones) खदान में रह गए। प्रशासन ने 2 जून 2021 को संयुक्त निरीक्षण किया और पाया कि लगभग 13,45,400 घन फीट खनिज वहाँ मौजूद है। इसके बाद सहायक निदेशक (खनन) ने 6 महीने की अवधि (4 जून 2021 से 3 दिसंबर 2021 तक) में खनिज और मशीनें हटाने की अनुमति दी।
बाद में 10 अगस्त 2021 को एक और निरीक्षण में 13,12,960.99 घन फीट पत्थर पाया गया। प्रारंभ में जिला पदाधिकारी ने ठेकेदार को 20 अगस्त 2021 से 19 फरवरी 2022 तक खनिज और मशीन हटाने की अनुमति दी थी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद, 31 अगस्त 2021 को विभाग की ओर से नया पत्र जारी कर केवल मशीन हटाने की अनुमति दी गई, खनिज हटाने की नहीं। इसके बाद निदेशक, खान विभाग ने आदेश दिया कि जो भी सामग्री छह महीने से अधिक समय तक खदान में रह जाए, उसे जब्त कर लिया जाए। ठेकेदार ने इस मनमाने आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि यदि ठेकेदार को खनिज हटाने की अनुमति दी गई तो वह जीएसटी का भुगतान करने से बच सकता है, इसलिए अनुमति देने से पहले जीएसटी की वसूली सुनिश्चित की जाए। ठेकेदार की ओर से कहा गया कि रॉयल्टी पहले ही जमा की जा चुकी है और वह एक प्रकार का टैक्स ही है। इसलिए जीएसटी के नाम पर रोका जाना अनुचित है।
न्यायालय ने संविधान की संबंधित प्रविष्टियों और कई सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों (जैसे India Cement, Kesoram Industries, और Mineral Area Development Authority बनाम SAIL) का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया कि रॉयल्टी को लेकर टैक्स की प्रकृति पर बहस अभी नौ-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लंबित है। फिर भी, इस मामले में मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि रॉयल्टी टैक्स है या नहीं, बल्कि यह है कि राज्य का राजस्व नुकसान न हो।
न्यायालय ने यह पाया कि बिहार माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स, 1972 के अनुसार खनन पट्टा देने या बढ़ाने का अधिकार केवल जिलाधिकारी के पास है। निदेशक या सहायक निदेशक को जिलाधिकारी के आदेश में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। इसलिए 31 अगस्त 2021 को जारी पत्र, जिसमें अनुमति वापस ली गई, विधिक अधिकार से परे था। यह प्रशासनिक मनमानी का उदाहरण था।
अंततः न्यायालय ने आदेश दिया कि:
- ठेकेदार को दोनों ब्लॉकों (ब्लॉक-3 और ब्लॉक-6) से पहले से निर्धारित मात्रा में खनिज दो महीने के भीतर हटाने की अनुमति दी जाए।
- यदि पुनः माप-जोख की आवश्यकता हो, तो वह एक सप्ताह के भीतर की जाए और ठेकेदार का प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।
- ठेकेदार को इस दो महीने की अवधि में रॉयल्टी और जीएसटी का भुगतान भी पूरा करना होगा।
- राज्य के खनन और कर विभागों को भविष्य में यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी खनिज की ढोक बिना राजस्व वसूली के न हो।
इस तरह न्यायालय ने ठेकेदार के वैधानिक अधिकार और राज्य के राजस्व हित दोनों के बीच संतुलन बनाया और प्रशासनिक भ्रम को समाप्त किया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय न केवल ठेकेदारों के लिए बल्कि सरकार और आम जनता के लिए भी उपयोगी है —
- यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई खनिज पट्टा समाप्त हो गया है और खनिज पहले से निकाला जा चुका है, तो उचित निरीक्षण के बाद उसे हटाने की अनुमति दी जा सकती है। इससे खनिज का नुकसान नहीं होगा और सरकारी परियोजनाएं समय पर पूरी होंगी।
- यह प्रशासनिक जवाबदेही को सुदृढ़ करता है। अब निदेशक या सहायक निदेशक बिना अधिकार के जिलाधिकारी के आदेश को रद्द नहीं कर सकते।
- यह निर्णय दिखाता है कि जीएसटी और रॉयल्टी की वसूली के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों को भी रुकना नहीं चाहिए।
- आम जनता के लिए इसका मतलब है कि सड़क व अन्य निर्माण कार्य अनावश्यक प्रशासनिक अड़चनों के कारण नहीं रुकेंगे।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पट्टा समाप्त होने के बाद भी पहले से निकाले गए खनिज को हटाने की अनुमति दी जा सकती है?
✅ हाँ, न्यायालय ने दो महीने की अवधि में हटाने की अनुमति दी। - क्या निदेशक या सहायक निदेशक जिलाधिकारी के आदेश में हस्तक्षेप कर सकते हैं?
❌ नहीं, बिहार माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स, 1972 के अनुसार यह अधिकार केवल जिलाधिकारी के पास है। - राज्य के राजस्व (रॉयल्टी/जीएसटी) की सुरक्षा कैसे होगी?
✅ ठेकेदार को दो महीने के भीतर रॉयल्टी और जीएसटी दोनों का भुगतान करना होगा, और विभागों को निगरानी रखनी होगी। - क्या प्रशासनिक मनमानी को न्यायालय सुधार सकता है?
✅ हाँ, अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय मनमाने और गैर-अधिकृत आदेशों को रद्द कर सकता है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- India Cement Ltd. v. State of Tamil Nadu, 1990 AIR 85
- State of West Bengal v. Kesoram Industries Ltd., AIR 2005 SC 1646
- Bharat Sanchar Nigam Ltd. v. Union of India, (2006) 3 SCC 1
- Gannon Dunkerley & Co. v. State of Rajasthan, (1993) 1 SCC 364
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of U.P. v. Mohd. Nooh, 1958 SC 86
- Pratap Singh v. State of Punjab, AIR 1964 SC 72
- E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu, AIR 1974 SC 555
- R.D. Shetty v. International Airport Authority, 1979 (3) SCC 489
- Ajay Hasia v. Khalid Mujib, 1981 (1) SCC 722
- Maneka Gandhi v. Union of India, 1978 (1) SCC 248
- Shri Sitaram Sugar Co. Ltd. v. Union of India, 1990 (3) SCC 223
- State (NCT of Delhi) v. Sanjeev @ Bittoo, 2005 (5) SCC 181
मामले का शीर्षक
एम/एस बी.एस.सी.पी.एल. इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 12414 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पुर्नेंदु सिंह (निर्णय दिनांक 30-11-2023)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री उमेश प्रसाद सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री नरेश दीक्षित, श्री उत्तरव आनंद, श्री बृज बिहारी तिवारी — खान विभाग की ओर से
- श्री विकास कुमार, एससी-11 और श्री ज्ञान प्रकाश ओझा, जीए-7 — राज्य सरकार की ओर से
निर्णय का लिंक
MTUjMTI0MTQjMjAyMyMxI04=-tRKCxccgse4=
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