निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 30 नवंबर 2023 को एक अहम फैसला दिया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि अगर खनन पट्टा (mining lease) खत्म होने के बाद भी साइट पर पहले से निकाला गया पत्थर या खनिज सामग्री बची रह जाती है, तो उसे उचित शर्तों के साथ उठाया जा सकता है। यह मामला एक निर्माण कंपनी से जुड़ा था जो राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) परियोजना के लिए पत्थर की आपूर्ति कर रही थी। कंपनी के दो खनन ब्लॉक नवादा ज़िले में थे। पट्टे की अवधि दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में समाप्त हो गई थी, लेकिन कोविड-19 की वजह से काफी मात्रा में निकाला गया पत्थर साइट पर पड़ा रह गया।
पट्टा समाप्त होने के बाद स्थानीय अधिकारियों ने पहले कंपनी को कुछ समय के लिए पत्थर उठाने की अनुमति दी थी, लेकिन बाद में अचानक पत्र भेजकर कहा गया कि अब केवल मशीनें और उपकरण ही हटाए जा सकते हैं, पत्थर नहीं। इस असंगत आदेश से निर्माण कार्य रुक गया और राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना अधर में पड़ गई। कंपनी ने हाईकोर्ट से न्याय मांगा ताकि उसे बचे हुए पत्थर हटाने की अनुमति दी जाए और साथ ही उसे ई-चालान (e-challan) उपलब्ध कराया जाए ताकि सरकारी रॉयल्टी और टैक्स का भुगतान किया जा सके।
राज्य सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि बिना उचित भुगतान के अगर कंपनी को माल उठाने की छूट मिल गई तो सरकारी राजस्व को नुकसान हो सकता है। इसलिए अदालत को सुनिश्चित करना चाहिए कि कंपनी रॉयल्टी और जीएसटी (GST) दोनों का भुगतान करे।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद एक संतुलित रास्ता निकाला। अदालत ने माना कि कंपनी ने जो पत्थर पहले ही निकाल लिया था, वह राज्य की संपत्ति नहीं है क्योंकि उसका उत्खनन पट्टा वैध रहते समय किया गया था। लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि बिना टैक्स और रॉयल्टी चुकाए पत्थर नहीं उठाया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी देखा कि बिहार माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स, 1972 के अनुसार खनन पट्टा देने, नवीनीकरण करने या किसी तरह की शर्त लगाने का अधिकार केवल जिला पदाधिकारी (Collector) को है। निदेशक या सहायक निदेशक (Assistant Director) को यह अधिकार नहीं है कि वे पट्टे के मामलों में Collector के आदेश को बदल दें या रोक दें। इसलिए बिना कारण बताए जो आदेश जारी किए गए, वे अधिकार क्षेत्र से बाहर और मनमाने थे।
अदालत ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी एक बार अनुमति देने के बाद अचानक बिना कारण मनाही नहीं कर सकते। यह न केवल अनुचित है बल्कि इससे जनता के कार्य, जैसे सड़कों का निर्माण, भी बाधित होता है।
इसलिए हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि कंपनी को बचे हुए पत्थर को उठाने की अनुमति दी जाए। अगर ज़रूरत हो तो एक सप्ताह के अंदर पत्थर की मात्रा का दोबारा माप (re-measurement) किया जाए, और दो महीने के भीतर सारा पत्थर हटा लिया जाए। साथ ही कंपनी को रॉयल्टी और जीएसटी का भुगतान भी उसी अवधि में करना होगा।
कोर्ट ने सरकार को भी यह निर्देश दिया कि भविष्य में ऐसे मामलों में प्रशासन सतर्क रहे और यह सुनिश्चित करे कि कोई भी सामग्री बिना उचित भुगतान के साइट से न हटाई जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बहुत व्यावहारिक और संतुलित है। एक ओर यह ठेकेदारों और कंपनियों को राहत देता है जो सरकारी परियोजनाओं पर काम करते समय प्रशासनिक अड़चनों में फंस जाते हैं, वहीं दूसरी ओर यह सरकार के राजस्व हितों की रक्षा भी करता है।
आम जनता के लिए यह निर्णय महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इससे यह संदेश गया कि यदि सरकारी अधिकारी बिना कारण अनुमति रोकते हैं और उससे सार्वजनिक काम में देरी होती है, तो अदालत हस्तक्षेप करेगी। इससे भविष्य में सड़क निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में रुकावट कम होगी।
सरकारी विभागों के लिए यह फैसला एक तरह की गाइडलाइन है। कोर्ट ने साफ कहा कि बिहार माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स, 1972 के तहत केवल कलेक्टर ही अधिकृत अधिकारी हैं। उच्च स्तर के अफसरों को बिना कारण स्थानीय अनुमति को रद्द करने का अधिकार नहीं है। साथ ही, रॉयल्टी और जीएसटी की सुरक्षा के लिए अदालत ने एक ठोस व्यवस्था दी—काम की अनुमति दी जाएगी, लेकिन भुगतान सुनिश्चित होगा।
कुल मिलाकर यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता, जवाबदेही और कानून के पालन की दिशा में एक अहम कदम है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पट्टा समाप्त होने के बाद पहले से निकाले गए पत्थर को हटाने की अनुमति रोकी जा सकती है?
❖ निर्णय: नहीं। कोर्ट ने कहा कि ऐसी मनाही अधिकार का दुरुपयोग है, खासकर जब पहले अनुमति दी जा चुकी थी। - बिहार माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स, 1972 के तहत अधिकार किसे है?
❖ निर्णय: केवल जिला पदाधिकारी (Collector) को। निदेशक या सहायक निदेशक को पट्टा रोकने या नवीनीकरण से मना करने का अधिकार नहीं है। - क्या पत्थर हटाते समय सरकारी राजस्व की सुरक्षा की जा सकती है?
❖ निर्णय: हाँ। कोर्ट ने कहा कि कंपनी दो महीने में सारा पत्थर हटा सकती है, लेकिन उसी समयावधि में रॉयल्टी और जीएसटी का भुगतान अनिवार्य होगा। - क्या “रॉयल्टी” को टैक्स माना जा सकता है और क्या उस पर जीएसटी लगता है?
❖ निर्णय: यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की नौ-न्यायाधीश पीठ में विचाराधीन है। फिर भी कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जीएसटी “सप्लाई” पर लगता है, और जब खनन अधिकार किसी भुगतान के बदले दिए जाते हैं, तो वह जीएसटी के दायरे में आते हैं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- India Cement Ltd. v. State of Tamil Nadu, AIR 1990 SC 85
- State of West Bengal v. Kesoram Industries Ltd., AIR 2005 SC 1646
- Mineral Area Development Authority v. Steel Authority of India Ltd., (9 Judge Bench reference)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Bharat Sanchar Nigam Ltd. v. Union of India, (2006) 3 SCC 1
- Gannon Dunkerley & Co. v. State of Rajasthan, (1993) 1 SCC 364
- State of U.P. v. Mohd. Nooh, 1958 SCR 595
- Pratap Singh v. State of Punjab, AIR 1964 SC 72
- E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu, AIR 1974 SC 555
- Maneka Gandhi v. Union of India, (1978) 1 SCC 248
मामले का शीर्षक
M/s B.S.C.P.L Infrastructure Ltd बनाम State of Bihar एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 12414 of 2023
उद्धरण (Citation)
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न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति पुर्णेन्दु सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
वरिष्ठ अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
राज्य सरकार की ओर से – खान एवं कर विभाग के अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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