निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में यह स्पष्ट किया कि सरकारी विभागों द्वारा टेंडर प्रक्रिया में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को उनकी वैधानिक हिस्सेदारी कैसे मिलनी चाहिए। यह मामला एक निर्माता कंपनी (याचिकाकर्ता) और रेलवे विभाग (उत्तरदाता) के बीच था, जहां याचिकाकर्ता ने फरो-सिलिकॉन की आपूर्ति के लिए हुए टेंडर को चुनौती दी।
याचिकाकर्ता एक MSME और प्रमाणित निर्माता है। उसने रेलवे के रेल व्हील प्लांट, बेला (बिहार) द्वारा फरो-सिलिकॉन की 443030.66 किलोग्राम आपूर्ति हेतु निकाले गए टेंडर में भाग लिया। पहले भी उसे 20% मात्रा का “विकासात्मक आदेश” दिया गया था जिसे उसने सफलतापूर्वक पूरा किया।
लेकिन अगले टेंडर में, यद्यपि वह सबसे कम दर वाला (L1) बोलीदाता था, उसे केवल 10% मात्रा दी गई और उसे फिर से विकासात्मक श्रेणी में ही रखा गया। शेष 90% मात्रा अधिक दर पर एक अन्य निजी कंपनी को दे दी गई।
याचिकाकर्ता का आरोप था कि रेलवे ने सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (CVC) के दिशा-निर्देशों और सार्वजनिक खरीद नीति (Public Procurement Policy) का उल्लंघन किया, विशेष रूप से MSME से संबंधित आरक्षण नीति का।
रेलवे विभाग ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अभी तक कोई ऐसा नियमित आदेश पूरा नहीं किया जिससे वह “रेगुलर सप्लायर” की श्रेणी में आ सके। जबकि निजी उत्तरदाता पहले से नियमित आपूर्तिकर्ता था।
कोर्ट ने टेंडर दस्तावेजों और पात्रता की शर्तों की समीक्षा के बाद कहा कि:
- याचिकाकर्ता भले ही निर्माता हो, लेकिन उसने अभी तक फरो-सिलिकॉन की पूरी मात्रा एकल आदेश में आपूर्ति नहीं की है, जो नियमित आपूर्तिकर्ता बनने की शर्त थी।
- MSME के लिए 20% मात्रा आरक्षित होती है, लेकिन रेलवे ने केवल 10% ही क्यों दी, इसका कोई उचित कारण नहीं दिया गया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो सरकारी टेंडरों में भाग लेते हैं। यह स्पष्ट संदेश देता है कि सरकारी विभागों को नीतियों का पालन करना होगा और MSMEs को उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित करनी होगी।
सरकारी खरीद नीति के तहत MSME को कम से कम 20% हिस्सेदारी दी जानी चाहिए। इस फैसले से यह सुनिश्चित हुआ कि विभाग बिना उचित कारण के MSMEs को वंचित नहीं कर सकते।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या याचिकाकर्ता नियमित आपूर्तिकर्ता का हकदार था?
- नहीं, क्योंकि उसने निर्धारित मात्रा की आपूर्ति पूर्व में एकल आदेश के तहत नहीं की थी।
- क्या रेलवे ने MSME नीति का उल्लंघन किया?
- हां, याचिकाकर्ता को केवल 10% मात्रा दी गई जबकि नीति 20% की अनुमति देती है।
- क्या मूल्य वार्ता (price negotiation) प्रक्रिया अवैध थी?
- नहीं, रेलवे ने केवल उन्हीं श्रेणियों में वार्ता की जहां अनुमति थी।
- क्या अनुबंध को रद्द किया जाना चाहिए?
- नहीं, क्योंकि सभी आपूर्तियाँ पहले ही हो चुकी थीं।
- क्या भविष्य के लिए कोई निर्देश दिया गया?
- हां, भविष्य के टेंडरों में रेलवे को MSME नीति के अनुसार 20% हिस्सा देना होगा, जब तक कोई ठोस कारण न हो।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Haffkine Bio-Pharmaceutical Corporation Ltd. v. Nirlac Chemicals, (2018) 12 SCC 790
- R.D. Shetty v. International Airport Authority, (1979) 3 SCC 489
- Tata Cellular v. Union of India, (1994) 6 SCC 651
मामले का शीर्षक
Surya Alloy Industries Ltd. v. Union of India & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 10860 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 135
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री जितेन्द्र सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री यश सिंह, श्री कमल किशोर सिंह, श्री तेज प्रताप सिंह
- रेलवे की ओर से: श्री एस.डी. संजय (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल), श्री रामाधार शेखर, सुश्री पारुल प्रसाद
- निजी उत्तरदाता की ओर से: श्री बिनोद कुमार सिंह
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTA4NjAjMjAxOSMxI04=-ssDzVwfHVPc=
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