पटना हाईकोर्ट का फैसला: राजस्व अधिकारी अपने ही न्यायिक आदेश को प्रशासनिक आदेश से नहीं कर सकते स्थगित

पटना हाईकोर्ट का फैसला: राजस्व अधिकारी अपने ही न्यायिक आदेश को प्रशासनिक आदेश से नहीं कर सकते स्थगित

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम निर्णय में यह स्पष्ट कर दिया कि एक राजस्व पदाधिकारी (D.C.L.R.) जो कि अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) शक्तियों का उपयोग करते हुए कोई आदेश पारित करता है, वह बाद में उसी आदेश को एक प्रशासनिक पत्र के माध्यम से रद्द या स्थगित नहीं कर सकता।

यह मामला बिहार के सहरसा जिले की जमीन से जुड़ा है। याचिकाकर्ता और उनके भाइयों ने एक वैध बिक्री पत्र (sale deed) के आधार पर जमीन खरीदी थी और 2006 में उसका म्यूटेशन करवाया था, जिससे उनके नाम पर नया जमाबंदी नंबर 285 बना। इस म्यूटेशन के खिलाफ एक महिला (प्रत्यर्थी संख्या 7) ने अपील दायर की, जिसे D.C.L.R. ने 2017 में खारिज कर दिया और म्यूटेशन आदेश को सही ठहराया।

लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उसी D.C.L.R. ने कुछ ही दिन बाद 29.04.2017 को एक प्रशासनिक पत्र (लेटर नंबर 593-2) जारी कर पहले दिए गए न्यायिक आदेश को स्थगित कर दिया और निर्देश दिया कि जमीन का किराया रसीद (rent receipt) महिला के नाम पर जारी किया जाए।

न्यायालय ने पाया कि यह महिला अपने पूर्वज आयोधी टांटी की उत्तराधिकारी होने का दावा कर रही थीं, लेकिन पहले उन्हें कोई सूचना नहीं दी गई थी। हालांकि उन्होंने BLDR केस और म्यूटेशन अपील दायर की, लेकिन राजस्व अधिकारी ने न्यायिक रूप से याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दे दिया था।

अदालत ने स्पष्ट किया कि एक अधिकारी जो न्यायिक क्षमता में निर्णय ले चुका है, वह बाद में प्रशासनिक रूप से उसी निर्णय को बदल नहीं सकता। यह कानून के खिलाफ है और न्यायिक व्यवस्था की पवित्रता को नुकसान पहुंचाता है।

अंततः हाईकोर्ट ने प्रशासनिक पत्र (लेटर नंबर 593-2) को अवैध मानते हुए रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता के म्यूटेशन को बहाल कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय बिहार में भूमि विवाद और म्यूटेशन मामलों से जुड़े लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह साफ करता है कि जब एक अधिकारी न्यायिक निर्णय ले चुका हो, तो वह उस पर प्रशासनिक रूप से हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इससे वैध रूप से जमीन खरीदने वालों के अधिकारों की रक्षा होती है।

सरकारी अधिकारियों के लिए यह फैसला एक चेतावनी की तरह है कि वे अपने न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों के बीच की सीमाओं का सम्मान करें। यह आदेश मनमाने ढंग से भूमि रिकॉर्ड में हस्तक्षेप को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति केवल वैधानिक प्रक्रिया से ही निर्णय को चुनौती दे सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या D.C.L.R. अपने ही न्यायिक आदेश को प्रशासनिक आदेश से रद्द कर सकते हैं?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं, यह कानूनन गलत है।
  • क्या किराया रसीद महिला के नाम पर जारी करना वैध था जब म्यूटेशन पहले से याचिकाकर्ता के पक्ष में था?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं, यह आदेश अवैध है।
  • क्या लेटर नंबर 593-2 कानूनी रूप से टिकाऊ था?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं, इसे रद्द किया गया।

मामले का शीर्षक
Satyendra Prasad Yadav बनाम The State of Bihar एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.7949 of 2018

उद्धरण (Citation)
2020 (2) PLJR 579

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रभात कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री आलोक कुमार, श्री नीरज कुमार
  • राज्य की ओर से: श्री माजिद महबूब खान
  • प्रत्यर्थी संख्या 7 की ओर से: श्री प्रमोद कुमार सिन्हा, श्री अरविंद कुमार शर्मा, श्री चेतन कुमार

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjNzk0OSMyMDE4IzUjTg==-bIYxasjs1o0=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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