निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट का रुख किया था और मांग की थी कि राजस्व विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वे ज़मीन के रिकॉर्ड (Register-II) में उसका नाम दर्ज करें। यह मांग 2018 में उप समाहर्ता (राजस्व) द्वारा पारित एक अपीली आदेश के आधार पर की गई थी।
लेकिन कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि याचिकाकर्ता सिर्फ़ एक “पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर” था — यानी उसे किसी अन्य व्यक्ति (राम चंद्र राय) की ओर से कार्य करने का अधिकार था, लेकिन खुद उसका ज़मीन पर कोई स्वामित्व नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि पावर ऑफ अटॉर्नी रखने वाला व्यक्ति तब तक राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज नहीं करा सकता जब तक उसके पास ज़मीन का वैध मालिकाना हक न हो। याचिकाकर्ता ने अपने पक्ष में ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं दिखाया जिससे यह साबित हो कि ज़मीन पर उसका खुद का कोई अधिकार है।
कोर्ट ने यह भी बताया कि जिस ज़मीन की बात हो रही थी, उसमें से केवल 9 डिसमिल ज़मीन पर ही राम चंद्र राय और तीन अन्य लोगों के नाम पर कोर्ट का कोई डिक्री था। बाकी ज़मीन के लिए कोई प्रमाण नहीं था जिससे यह साबित हो सके कि वह ज़मीन राम चंद्र राय की थी।
इसलिए कोर्ट ने माना कि न तो याचिकाकर्ता और न ही राम चंद्र राय ज़मीन के मालिकाना हक को साबित कर पाए, और राजस्व अधिकारियों द्वारा नाम दर्ज करने से इनकार करना बिल्कुल सही था। कोर्ट ने चेतावनी भी दी कि पावर ऑफ अटॉर्नी रखने वाले व्यक्ति को अपनी सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए और अदालत को गुमराह नहीं करना चाहिए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला ज़मीन से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और क़ानूनी प्रमाण की अहमियत को दर्शाता है। इससे साफ़ संदेश जाता है कि सिर्फ़ पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर कोई व्यक्ति ज़मीन पर हक नहीं जमा सकता।
आम नागरिकों के लिए यह सीख है कि पावर ऑफ अटॉर्नी से सिर्फ़ प्रतिनिधित्व किया जा सकता है, मालिकाना दावा नहीं किया जा सकता।
सरकारी अधिकारियों के लिए यह फैसला उनकी कार्रवाई को वैधता देता है कि जब तक ज़मीन का स्पष्ट कानूनी स्वामित्व साबित न हो, तब तक किसी का नाम रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया जाए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर खुद के नाम म्यूटेशन करवा सकता है?
❌ नहीं, जब तक वह ज़मीन का मालिक न हो। - क्या राम चंद्र राय ने ज़मीन पर स्वामित्व का पर्याप्त प्रमाण दिया?
❌ नहीं, केवल 9 डिसमिल पर आंशिक डिक्री थी और बाकी ज़मीन के लिए कुछ साबित नहीं किया। - क्या अधिकारियों द्वारा म्यूटेशन से इनकार करना सही था?
✅ हां, क्योंकि मालिकाना हक साबित नहीं किया गया।
मामले का शीर्षक
सुबोध कुमार भगत (पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर, राम चंद्र राय की ओर से) बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 369 of 2020
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 762
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री जे. पी. सिंह, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री साजिद सलीम खान (SC 25) और सुश्री प्रकृति शर्मा (AC to SC 25)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMzY5IzIwMjAjMSNO-gdzZEdEo5QU=
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