पटना हाई कोर्ट का आदेश: गलत तरीके से नामांकन खारिज कर चुने गए नगर परिषद अध्यक्ष का चुनाव रद्द

पटना हाई कोर्ट का आदेश: गलत तरीके से नामांकन खारिज कर चुने गए नगर परिषद अध्यक्ष का चुनाव रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में खुसरूपुर नगर पंचायत के मुख्य पार्षद (Chief Councillor) का चुनाव रद्द कर दिया है। यह निर्णय इसलिए आया क्योंकि नामांकन प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी हुई थी—एक उम्मीदवार का नामांकन अवैध रूप से खारिज कर दिया गया, जिससे दूसरा उम्मीदवार बिना मुकाबले (uncontested) जीत गया।

मामले की शुरुआत तब हुई जब याचिकाकर्ता, जो पहले भी खुसरूपुर के मुख्य पार्षद रह चुके हैं, ने दोबारा इस पद के लिए नामांकन भरा। पहले उन्हें 2022 में “अविश्वास प्रस्ताव” (No-confidence motion) के ज़रिए पद से हटाया गया था। 2024 में यह पद फिर खाली हुआ, और सिर्फ दो उम्मीदवारों ने नामांकन भरा—एक याचिकाकर्ता, और दूसरा वर्तमान मुख्य पार्षद (प्रतिवादी संख्या 7)।

नामांकन जांच के दौरान, रिटर्निंग अफसर ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता का नामांकन खारिज कर दिया कि उन्हें पहले “हटाया गया था”, और वे दोबारा चुनाव नहीं लड़ सकते। इसके पीछे उन्होंने बिहार नगर पालिका (संशोधन) अधिनियम, 2022 की धारा 25(5) का हवाला दिया।

लेकिन याचिकाकर्ता ने अदालत में तर्क दिया कि यह धारा केवल उन लोगों पर लागू होती है जिन्हें सरकार ने अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत हटाया हो, न कि जिनके खिलाफ “अविश्वास प्रस्ताव” पारित हुआ हो। इस बात को पहले के एक फैसले (Vinay Kumar Pappu बनाम राज्य चुनाव आयोग) में भी स्पष्ट किया गया है।

महत्वपूर्ण बात यह रही कि खुद राज्य चुनाव आयोग ने भी माना कि रिटर्निंग अफसर ने कानून की गलत व्याख्या की और अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। आयोग ने अपनी आंतरिक चिट्ठी में इसे गंभीर लापरवाही माना।

इस सब को ध्यान में रखते हुए, हाई कोर्ट ने कहा कि यह एक “अत्यंत असाधारण मामला” है, जहाँ चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता ही खतरे में थी। ऐसे मामलों में, अदालत संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकती है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की रक्षा करता है। यह जनता को यह विश्वास दिलाता है कि अगर चुनाव अधिकारियों द्वारा कोई पक्षपात या गैरकानूनी कार्रवाई होती है, तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।

स्थानीय स्वशासन में यह फैसला स्पष्ट करता है कि “अविश्वास प्रस्ताव” से हटाए गए व्यक्ति चुनाव लड़ने से अयोग्य नहीं होते। साथ ही, चुनाव अधिकारियों को यह संदेश जाता है कि यदि उन्होंने मनमाने तरीके से कार्य किया, तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाएगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या “अविश्वास प्रस्ताव” से हटाया गया व्यक्ति धारा 25(5) के तहत दोबारा चुनाव लड़ने से वंचित है? — नहीं।
  • क्या रिटर्निंग अफसर ने नामांकन खारिज करते समय कानून का गलत प्रयोग किया? — हां।
  • क्या ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकता है? — हां, यदि मामला असाधारण हो।
  • अंतिम निर्णय — चुनाव रद्द किया गया, और नए चुनाव कराने का आदेश दिया गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • विनय कुमार पप्पू बनाम राज्य चुनाव आयोग, बिहार (CWJC No. 12051/2015)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • ज्योति बसु बनाम देवी घोषाल, AIR 1982 SC 983
  • एन.पी. पोंनुस्वामी बनाम रिटर्निंग अफसर, AIR 1952 SC 64
  • लक्ष्मीबाई बनाम कलेक्टर, नांदेड़, AIR 2020 SC 3393
  • रामा बलभ सिंह केशरी बनाम बिहार राज्य, 2001(2) PLJR 267
  • कुलदीप कुमार बनाम चंडीगढ़ प्रशासन, 2024(3) SCC 526
  • एन.एस. माधवन बनाम श्यामदेव प्रसाद, 2010(3) PLJR 578
  • प्रफुल चंद्र सुधांशु बनाम राज्य निर्वाचन आयोग, 2013(2) PLJR 114

मामले का शीर्षक
माणिक लाल प्रसाद बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 13098 of 2024

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 129

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति नवनीत कुमार पांडेय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री एस.बी.के. मंगलम, श्री अवनीश कुमार, श्री कुमार गौरव, श्री विकास कुमार सिंह
  • राज्य चुनाव आयोग की ओर से: श्री रवि रंजन, श्री गिरीश पांडेय
  • प्रतिवादी संख्या 7 की ओर से: श्री अमित श्रीवास्तव (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री रंजीत चौबे
  • राज्य की ओर से: श्री रामाधर सिंह (जीपी 25)
  • नगर पंचायत की ओर से: श्री अशोक कुमार

निर्णय का लिंक
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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

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