पटना उच्च न्यायालय का फैसला: NCTE के समय-निर्धारित नियमों का कड़ाई से पालन आवश्यक — कॉलेज की पिछली सत्र से संबद्धता (affiliation) की मांग खारिज (2020)

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: NCTE के समय-निर्धारित नियमों का कड़ाई से पालन आवश्यक — कॉलेज की पिछली सत्र से संबद्धता (affiliation) की मांग खारिज (2020)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 13 अगस्त 2020 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें यह दोहराया गया कि शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय समय-सारणी (schedule) का सख्ती से पालन करना अनिवार्य है।

यह मामला पटना स्थित एक निजी शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज से जुड़ा था, जिसने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) द्वारा दी गई संबद्धता (affiliation) की तारीख को चुनौती दी थी। कॉलेज को संबद्धता सत्र 2018–20 से दी गई थी, जबकि उसका दावा था कि यह सत्र 2017–19 से प्रभावी होनी चाहिए क्योंकि NCTE ने 2 मई 2017 को ही कॉलेज को मान्यता (recognition) दे दी थी।

कॉलेज का तर्क था कि उसने सभी नियमों का पालन किया था और परीक्षा समिति की देरी के कारण उसके छात्रों को नुकसान नहीं होना चाहिए। लेकिन न्यायालय ने पाया कि कॉलेज स्वयं NCTE और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय समय सीमा का पालन करने में विफल रहा। इसलिए उसे पिछली तिथि से संबद्धता देने का कोई अधिकार नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि

  1. कॉलेज ने दो वर्षीय D.El.Ed. (Diploma in Elementary Education) कोर्स चलाने की अनुमति मांगी थी, जिसमें 100 छात्रों का वार्षिक प्रवेश निर्धारित था।
  2. BSEB ने कॉलेज को 18 मई 2016 को “नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC)” जारी किया।
  3. इसके बाद कॉलेज ने NCTE पूर्वी क्षेत्रीय समिति (भुवनेश्वर) को आवेदन दिया और 2 मई 2017 को मान्यता प्राप्त की।
  4. कॉलेज ने 4 अगस्त 2017 को परीक्षा समिति से संबद्धता के लिए आवेदन दिया, यानी मान्यता मिलने के लगभग तीन महीने बाद।
  5. समिति ने 3 जनवरी 2018 को संबद्धता दी, लेकिन इसे 2018–20 सत्र से लागू किया गया, न कि 2017–19 से।

कॉलेज का कहना था कि एक बार NCTE से मान्यता मिल जाने के बाद संबद्धता स्वतः उसी सत्र से मिलनी चाहिए। उसने यह भी कहा कि कुछ अन्य कॉलेजों को ऐसा लाभ दिया गया है।

याचिकाकर्ता के तर्क

  • कॉलेज ने कहा कि NCTE अधिनियम, 1993 की धारा 14(3)(b) के अनुसार, एक बार मान्यता मिल जाने के बाद संबंधित परीक्षा बोर्ड को संबद्धता देना आवश्यक है।
  • NCTE के 2014 के नियमों (Regulation 8(10)) के तहत, संबद्धता मान्यता के बाद ही दी जानी चाहिए।
  • कॉलेज ने राजेंद्र किशोर बी.एड. कॉलेज बनाम बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (पटना उच्च न्यायालय, 2019) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें समान स्थिति वाले कॉलेजों को पिछली सत्र से संबद्धता दी गई थी।
  • उनका तर्क था कि देरी परीक्षा समिति की ओर से हुई है और छात्रों को इसका नुकसान नहीं होना चाहिए।

राज्य और परीक्षा समिति के तर्क

राज्य की ओर से सरकारी अधिवक्ता ने यह कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने Maa Vaishno Devi Mahila Mahavidyalaya बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013) 2 SCC 617 के मामले में मान्यता और संबद्धता की समय सीमा तय कर दी थी, जिसका पालन अनिवार्य है।

  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार:
    • NCTE को मान्यता हर वर्ष 3 मार्च तक देनी होगी।
    • विश्वविद्यालय या बोर्ड को संबद्धता 10 मार्च तक देनी होगी।
    • यदि इन तिथियों के बाद मान्यता या संबद्धता दी जाती है, तो वह अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए मानी जाएगी।

राज्य ने कहा कि कॉलेज को NCTE की मान्यता 2 मई 2017 को मिली, जो तय तारीख के बाद थी, और कॉलेज ने संबद्धता के लिए 4 अगस्त 2017 को आवेदन किया। इसलिए कॉलेज को सत्र 2017–19 से संबद्धता नहीं दी जा सकती।

साथ ही, राज्य ने Anuragi Devi Degree College बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2016) 12 SCC 517 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि बिना संबद्धता के छात्रों को दाखिला देना अवैध है और ऐसे छात्रों के परिणाम घोषित नहीं किए जा सकते।

न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद विस्तृत रूप से कानून और नियमों की व्याख्या की।

  1. मान्यता और संबद्धता में अंतर:
    न्यायालय ने कहा कि NCTE से मान्यता और परीक्षा बोर्ड से संबद्धता दो अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं। एक बार NCTE से मान्यता मिल जाने पर संबद्धता दी जानी चाहिए, परंतु यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय समय-सारणी के भीतर ही संभव है।
  2. समय सीमा का उल्लंघन:
    इस मामले में NCTE ने 3 मार्च 2017 की तय सीमा के बाद 2 मई 2017 को मान्यता दी, और कॉलेज ने 4 अगस्त 2017 को आवेदन किया। इसलिए 2017–19 से संबद्धता देना नियमों के विरुद्ध होता।
  3. कॉलेज की देरी:
    न्यायालय ने कहा कि कॉलेज ने तीन महीने देर से आवेदन किया, जिससे वह खुद ही समय-सारणी का उल्लंघन करने वाला बन गया।
  4. बिना संबद्धता दाखिला:
    कॉलेज ने 2017–19 सत्र के लिए छात्रों को प्रवेश दे दिया, जबकि उसे संबद्धता नहीं मिली थी। NCTE के नियमों के अनुसार यह अवैध प्रवेश माना जाएगा।
  5. पिछले निर्णय का अंतर:
    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राजेंद्र किशोर बी.एड. कॉलेज का मामला उन संस्थानों पर लागू होता था जिन्हें 2014 से पहले मान्यता मिली थी। वर्तमान कॉलेज का मामला अलग था।
  6. अंतिम निष्कर्ष:
    अदालत ने कहा कि चूंकि कॉलेज और NCTE दोनों ने सर्वोच्च न्यायालय के तय समय का उल्लंघन किया, इसलिए कॉलेज को पिछली तिथि से संबद्धता देने का कोई आधार नहीं है। अदालत ने याचिका को निरस्त कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • शैक्षणिक संस्थानों के लिए:
    यह निर्णय एक सख्त चेतावनी है कि किसी भी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान को NCTE और सर्वोच्च न्यायालय की समय-सारणी का पालन करना अनिवार्य है। देर या प्रशासनिक चूक के आधार पर पिछली तिथि से लाभ नहीं मिल सकता।
  • सरकारी निकायों के लिए:
    बिहार विद्यालय परीक्षा समिति जैसे निकायों को यह अधिकार मिला है कि वे केवल उन्हीं कॉलेजों को संबद्धता दें जो तय समय पर आवेदन करें। इससे प्रक्रिया पारदर्शी और नियंत्रित बनी रहेगी।
  • छात्रों के लिए:
    यह फैसला छात्रों के हित में है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कॉलेज बिना संबद्धता छात्रों को दाखिला न दे सके। इससे छात्रों की डिग्री और करियर सुरक्षित रहेंगे।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या NCTE की मान्यता मिलने के बाद स्वतः संबद्धता का अधिकार मिलता है?
    नहीं। मान्यता और संबद्धता दोनों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय समय-सारणी के अनुसार पूरा किया जाना चाहिए।
  • क्या प्रशासनिक देरी के आधार पर पिछली सत्र से संबद्धता दी जा सकती है?
    नहीं। ऐसा करना सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन होगा।
  • क्या बिना संबद्धता छात्रों का दाखिला वैध है?
    नहीं। NCTE के नियमों के अनुसार, संबद्धता मिलने से पहले प्रवेश देना अवैध है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Rajendra Kishore B.Ed. College & Ors. v. Bihar School Examination Board & Ors. (Patna HC, 2019).

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Maa Vaishno Devi Mahila Mahavidyalaya v. State of U.P., (2013) 2 SCC 617.
  • Anuragi Devi Degree College v. State of U.P., (2016) 12 SCC 517.
  • The Vice-Chancellor, Aryabhatta Knowledge University v. State of Bihar, 2018 (4) PLJR 821.

मामले का शीर्षक

National B.Ed. College of Higher Education बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 3936 of 2019

उद्धरण (Citation)

2021(3) PLJR 98

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री निरंजन कुमार — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री कामेश्वर कुमार (GP-17) — राज्य की ओर से
  • श्री सुनील कुमार सिंह एवं श्री रणविजय सिंह — NCTE की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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