पटना हाईकोर्ट का फैसला: एनडीपीएस मामले में धारा 42 के उल्लंघन पर अभियुक्त बरी (2021)

पटना हाईकोर्ट का फैसला: एनडीपीएस मामले में धारा 42 के उल्लंघन पर अभियुक्त बरी (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने मादक पदार्थ एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS Act) के तहत दोषसिद्ध एक व्यक्ति को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारियों द्वारा धारा 42 का पूरी तरह पालन न करना और सबूतों में गंभीर खामियां होना अभियोजन के पूरे मामले को अवैध बना देता है। इस वजह से सजा को निरस्त कर दिया गया और अभियुक्त को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।

मामला बक्सर ज़िले का था, जहाँ पुलिस ने एक मकान से लगभग 41.8 किलोग्राम गांजा मिलने का दावा किया था। निचली अदालत ने इस आधार पर 10 साल की सख्त कैद और जुर्माने की सजा सुनाई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि जिस कानूनी प्रक्रिया का पालन अनिवार्य था, उसका पूरी तरह उल्लंघन किया गया है।

पुलिस के अनुसार, गुप्त सूचना मिली कि एक व्यक्ति अपने घर में गांजा रखकर बेचने की तैयारी कर रहा है। सूचना पर ‘संहा एंट्री’ दर्ज की गई, अधिकारी को सूचित किया गया और एक टीम बनाकर छापा मारा गया। कहा गया कि घर से दो बोरियां गांजा मिलीं, जिन्हें जब्त कर नमूने लेकर सील किया गया और बाद में फॉरेंसिक रिपोर्ट में उसमें टेट्राहाइड्रोकैनाबिनॉल (THC) की पुष्टि हुई।

परंतु अदालत ने स्पष्ट किया कि जब छापा किसी मकान में मारा जाता है, तो धारा 42 के तहत यह आवश्यक है कि गुप्त सूचना को लिखित रूप में दर्ज किया जाए और उसे वरिष्ठ अधिकारी को भेजा जाए। रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि यह औपचारिकता पूरी की गई थी।

अभियुक्त की ओर से दलील दी गई कि धारा 42(1) और 42(2) दोनों का पालन बिल्कुल नहीं किया गया। गवाहों के बयानों में भी भारी विरोधाभास थे—किस कमरे से बोरियां मिलीं, सील करने के लिए किस रंग का कपड़ा इस्तेमाल हुआ, किस अधिकारी ने बैग उठाए—इन सब बातों पर गवाहों की बातें मेल नहीं खातीं। स्वतंत्र गवाहों ने अदालत में कहा कि उनसे बाजार में खाली कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए गए थे; उन्होंने कोई बरामदगी नहीं देखी।

फॉरेंसिक वैज्ञानिक ने कहा कि लैब में सिर्फ एक सील किया हुआ नमूना आया, जबकि पुलिस के मुताबिक तीन नमूने बनाए गए थे—वह भी दोनों बोरियों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा मिलाकर, जो कि नियमों के विरुद्ध है। इस कारण साक्ष्य की श्रृंखला (chain of custody) पूरी तरह टूट गई।

राज्य की ओर से कहा गया कि इतनी बड़ी मात्रा में गांजा बरामद हुआ है, गवाहों के हस्ताक्षर हैं, इसलिए कुछ तकनीकी खामियों से अपराध नहीं मिट सकता। परंतु अदालत ने कहा कि निष्पक्ष जांच और निष्पक्ष सुनवाई संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। जब कानून सख्त सजा देता है, तो उसकी प्रक्रिया का पालन भी उतना ही सख्त होना चाहिए।

अंत में, अदालत ने पाया कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि मकान अभियुक्त का ही था, बरामदगी सही तरीके से हुई, नमूने ठीक से सील और सुरक्षित रखे गए, या धारा 42 की लिखित सूचना वास्तव में दी गई। इन सभी कमियों के चलते अदालत ने कहा कि अभियोजन की कहानी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। नतीजतन सजा रद्द कर दी गई और अभियुक्त को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बताता है कि एनडीपीएस जैसे सख्त कानूनों में भी न्यायालय प्रक्रिया का पालन सर्वोपरि मानता है। जनता के लिए यह एक सीख है कि भले ही अपराध गंभीर हो, लेकिन बिना कानूनी प्रक्रिया पूरी किए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कानून में धारा 42 का मकसद यही है कि पुलिस मनमाने ढंग से किसी पर मामला न बनाए और हर कार्रवाई का रिकॉर्ड रहे।

सरकार और पुलिस के लिए यह निर्णय चेतावनी के समान है। अदालत ने साफ किया कि जांच अधिकारी यह साबित करें कि गुप्त सूचना को लिखित रूप में दर्ज किया गया, वरिष्ठ अधिकारी को भेजा गया, नमूनों की सीलिंग, जब्ती सूची और मालखाने में जमा करने की पूरी प्रक्रिया दस्तावेज़ में दर्ज हो। स्वतंत्र गवाह विश्वसनीय हों और उनसे सही तरीके से हस्ताक्षर करवाए जाएँ। फॉरेंसिक नमूने कभी मिलाए नहीं जाएँ और सबूतों की श्रृंखला पूरी और सुरक्षित रहे। इन बातों की अनदेखी से अभियोजन का पूरा मामला गिर सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • धारा 42 का अनुपालन हुआ या नहीं
    निर्णय: नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि धारा 42(1) और 42(2) का पूर्ण उल्लंघन हुआ है। किसी प्रकार की लिखित सूचना या रिपोर्ट का रिकॉर्ड मौजूद नहीं था। संविधान पीठ के Karnail Singh v. State of Haryana (2009) के अनुसार, पूर्ण अनुपालन न होना अभियोजन के लिए घातक है।
  • बरामदगी और तलाशी के सबूत कितने विश्वसनीय हैं
    निर्णय: विश्वसनीय नहीं। स्वतंत्र गवाहों ने बरामदगी को नहीं देखा और न ही उनका बयान अभियोजन के अनुरूप था। चूँकि उन्हें शत्रुतापूर्ण घोषित नहीं किया गया, इसलिए उनका बयान अभियोजन के खिलाफ माना गया, जैसा कि Raja Ram v. State of Rajasthan और Mukhtiar Ahmed Ansari v. State (NCT of Delhi) में कहा गया है।
  • साक्ष्य की श्रृंखला (chain of custody) और सीलिंग का प्रमाण
    निर्णय: नहीं। मालखाने का रजिस्टर या उसके प्रभारी का बयान पेश नहीं किया गया। सीलिंग के कपड़े के रंग और बैग की हालत पर गवाहों के बयान एक-दूसरे से अलग थे। अदालत में प्रस्तुत बोरियां इस हालत में थीं कि उनमें से वस्तुएँ आसानी से निकाली या डाली जा सकती थीं।
  • नमूनों की तैयारी और फॉरेंसिक प्रक्रिया का पालन हुआ या नहीं
    निर्णय: नहीं। दो अलग बोरियों का पदार्थ मिलाकर नमूना बनाना गलत है। सिर्फ एक नमूना ही प्रयोगशाला तक पहुँचा, जिससे साक्ष्य का लिंक टूट गया। मकान की स्वामित्व स्थिति भी सिद्ध नहीं की जा सकी।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Karnail Singh v. State of Haryana, (2009) 8 SCC 539 — अभियुक्त की ओर से यह तर्क देने के लिए उद्धृत किया गया कि धारा 42 का पूर्ण अनुपालन अनिवार्य है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Karnail Singh v. State of Haryana, (2009) 8 SCC 539
  • Raja Ram v. State of Rajasthan, (2005) 5 SCC 272
  • Mukhtiar Ahmed Ansari v. State (NCT of Delhi), (2005) 5 SCC 258

मामले का शीर्षक

क्रिमिनल अपील (एस.जे.) संख्या 2487/2017 — [अपीलकर्ता] बनाम बिहार राज्य

केस नंबर

Criminal Appeal (SJ) No. 2487 of 2017; arising out of Brahampur (Chakki O.P.) P.S. Case No. 336 of 2015; NDPS Case No. 8 of 2015 (Buxar)

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 546

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति श्री बीरेन्द्र कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री विक्रमदेव सिंह, अधिवक्ता (सहायक अधिवक्ता श्री शंकर कुमार) — अपीलकर्ता की ओर से
  • श्री जियाउल होदा, ए.पी.पी. — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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