निर्णय की सरल व्याख्या
कोविड-19 महामारी के दौरान दायर एक जनहित याचिका (PIL) में पटना हाईकोर्ट के सामने यह सवाल था कि क्या संकट के समय राहत कार्यों में नागरिक संगठनों (CSOs) और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को शामिल किया जाना चाहिए, और क्या ऐसा करना सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है?
याचिकाकर्ता एक अधिवक्ता थीं, जिन्होंने खुद कोर्ट में यह मामला उठाया। उनका कहना था कि बिहार जैसे बड़े राज्य में केवल सरकारी प्रयासों से सभी जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाना संभव नहीं है। इसलिए जो संगठन मदद करना चाहते हैं, उन्हें राहत कार्यों में भाग लेने की अनुमति मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार ऐसे संगठनों को जिला प्रशासन की ओर से लॉकडाउन पास तक नहीं दिया जा रहा था।
याचिकाकर्ता ने नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा 30 मार्च और 10 अप्रैल 2020 को भेजे गए पत्रों का उल्लेख किया, जिनमें राज्यों से कहा गया था कि वे NGOs और CSOs को राहत कार्यों में शामिल करें और जिला एवं राज्य स्तर पर समन्वय के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करें।
राज्य सरकार ने जवाब दिया कि नीति आयोग की सिफारिशें केवल सुझाव हैं, कोई कानूनी आदेश नहीं। सरकार ने यह भी बताया कि उसने कई कदम उठाए हैं जैसे हेल्पलाइन नंबर, वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन की सुविधा, और समाज कल्याण विभाग के जरिए NGOs से समन्वय।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि:
- नीति आयोग के निर्देश कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं क्योंकि उनके पास कोई संवैधानिक या वैधानिक अधिकार नहीं है।
- हालांकि, राज्य सरकार को चाहिए कि वह अच्छे प्रशासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के तहत ऐसे संगठनों के साथ सहयोग करे।
कोर्ट ने नागरिक समाज (civil society) के योगदान को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में स्वीकार किया और राज्य सरकार को इन संगठनों के साथ मिलकर काम करने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश दिए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि आपदा या संकट के समय केवल सरकारी तंत्र से काम नहीं चलेगा। NGOs और नागरिक संगठनों को भी राहत कार्यों में सक्रिय भागीदारी मिलनी चाहिए।
आम जनता के लिए यह निर्णय यह बताता है कि यदि कोई संगठन आपकी मदद करना चाहता है, तो सरकार को उसे साथ लेकर चलना चाहिए। सरकारों के लिए यह एक मिसाल है कि जनहित के काम में सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, न कि रोका जाना चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या नीति आयोग के निर्देश राज्य सरकारों पर बाध्यकारी हैं?
- नहीं। ये केवल सलाह हैं, कानूनी आदेश नहीं।
- क्या NGOs और CSOs को राहत कार्यों में शामिल होने का कानूनी अधिकार है?
- नहीं। लेकिन उनका सहयोग लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है और उसे बढ़ावा मिलना चाहिए।
- क्या अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन भारत में किया जा सकता है?
- हां, अगर वे भारत के संविधान से मेल खाते हैं और घरेलू कानून में कोई विरोध नहीं है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Poonam Verma v. Delhi Development Authority, (2007) 13 SCC 154
- Praneeth K v. University Grants Commission (UGC), 2020 SCC OnLine SC 592
- GJ Fernandez vs. State of Mysore, AIR 1967 SC 1753
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- PUCL v. State of T.N., (2004) 12 SCC 381
- Vishaka v. State of Rajasthan, (1997) 6 SCC 241
- R.D. Upadhyay v. State of A.P., (2007) 15 SCC 337
- K.S. Puttaswamy v. Union of India, (2017) 10 SCC 1
- Manoj Narula v. Union of India, (2014) 9 SCC 1
- Charan Lal Sahu v. Union of India, (1990) 1 SCC 613
- Bachpan Bachao Andolan v. Union of India, (2011) 5 SCC 1
- Sampurna Behrua v. Union of India, (2018) 4 SCC 433
- Rajesh Sharma v. State of U.P., (2018) 10 SCC 472
- National Campaign Committee v. Union of India, (2018) 5 SCC 607
मामले का शीर्षक
Parul Prasad v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 5609 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 140
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- सुश्री पारुल प्रसाद – याचिकाकर्ता (स्वयं उपस्थित)
- डॉ. के.एन. सिंह – सहायक सॉलिसिटर जनरल
- श्री एस. डी. संजय – वरिष्ठ अधिवक्ता
- श्री पी. एन. शाही – अपर महाधिवक्ता-6
- श्री पतंजलि ऋषि – सहायक अधिवक्ता
- श्री रत्नेश कुमार – केंद्रीय सरकारी अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNTYwOSMyMDIwIzEjTg==-ebvYJ0eL49w=
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