निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में श्रम न्यायालय द्वारा पारित एकतरफा आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें एक निजी फार्मेसी कॉलेज को उसके पूर्व क्लर्क को लंबे समय से बकाया वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। कॉलेज द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बार-बार अवसर मिलने के बावजूद अपनी बात रखने में गंभीरता नहीं दिखाई और केवल कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया।
मामले की शुरुआत एक पूर्व क्लर्क द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 33(c)(2) के तहत आवेदन देने से हुई थी। उन्होंने दावा किया था कि 1990 से 2003 के बीच कई महीनों तक उन्हें वेतन नहीं मिला, जिसकी कुल राशि ₹2,00,755.10 थी।
श्रम न्यायालय ने प्रारंभ में कॉलेज के अनुपस्थित रहने पर क्लर्क के पक्ष में एकतरफा आदेश पारित कर दिया। बाद में कॉलेज ने यह आदेश रद्द कराने का प्रयास किया, लेकिन वे ₹300 की मामूली लागत भी जमा नहीं कर सके और न ही अपनी लिखित सफाई या साक्ष्य पेश किए। अंततः श्रम न्यायालय ने मामले की सुनवाई जारी रखी और कर्मचारी के पक्ष में अंतिम आदेश पारित किया।
कॉलेज ने हाईकोर्ट में अपील की और यह दलील दी:
- कि वे एक “उद्योग” नहीं हैं, इसलिए श्रम कानून लागू नहीं होता।
- और क्लर्क “वर्कमैन” की परिभाषा में नहीं आता।
कोर्ट ने इन दोनों दलीलों को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के Raj Kumar बनाम Director of Education (2016) 6 SCC 541 के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निजी शैक्षणिक संस्थान “उद्योग” की परिभाषा में आते हैं और गैर-शिक्षकीय कर्मचारी, जैसे क्लर्क, “वर्कमैन” माने जाते हैं।
कोर्ट ने यह भी पाया कि क्लर्क ने वेतन की पावती (Acquittance Roll), वेतन बकाया की सूची, आवेदन पत्र आदि दस्तावेजों और मौखिक साक्ष्य के माध्यम से अपना दावा साबित कर दिया था।
कोर्ट ने कॉलेज की लगातार टालमटोल और प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति की आलोचना की और कहा कि जब उन्हें कई अवसर दिए गए फिर भी वे शामिल नहीं हुए, तो वे अब अदालत को दोष नहीं दे सकते।
अतः हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और अपील को खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला निजी शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक बड़ा सबक है। यह स्पष्ट करता है कि:
- श्रम कानून निजी कॉलेजों पर भी लागू होता है, विशेषकर उनके गैर-शिक्षकीय कर्मचारियों के संबंध में।
- वेतन बकाया हो और काम किया गया हो तो कर्मचारी का हक सुरक्षित रहेगा, चाहे संस्थान प्राइवेट ही क्यों न हो।
कर्मचारियों के लिए यह एक बड़ी राहत है और यह दिखाता है कि न्याय मिलने में देर हो सकती है, लेकिन अंधकार में नहीं जाएगी।
साथ ही, यह निर्णय कोर्ट में समय पर भागीदारी और जवाब देने के महत्व को भी रेखांकित करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या निजी कॉलेज “उद्योग” की श्रेणी में आते हैं?
- निर्णय: हां
- कारण: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, निजी शैक्षणिक संस्थान “industry” माने जाते हैं।
- क्या क्लर्क “वर्कमैन” की परिभाषा में आता है?
- निर्णय: हां
- कारण: गैर-शिक्षकीय कर्मचारी जैसे क्लर्क “workman” की श्रेणी में आते हैं।
- क्या श्रम न्यायालय का एकतरफा आदेश वैध था?
- निर्णय: हां
- कारण: कॉलेज को कई मौके दिए गए, लेकिन उन्होंने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
- क्या कर्मचारी ने अपना दावा प्रमाणित किया?
- निर्णय: हां
- कारण: दस्तावेज और गवाही के आधार पर दावा सिद्ध हुआ।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Raj Kumar बनाम Director of Education & Others, (2016) 6 SCC 541
- Kishore Kumar Ambashtha बनाम बिहार राज्य, 2016 (4) PLJR 929
- M/s Arun Chemicals Industries बनाम Certificate Officer, 2009 (1) PLJR 682
- Prem Kumar Singh बनाम बिहार राज्य, 2009 (3) PLJR 131
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Raj Kumar बनाम Director of Education, (2016) 6 SCC 541
मामले का शीर्षक
Bihar College of Pharmacy बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Letters Patent Appeal No.643 of 2017 in CWJC No.15055 of 2012
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 181
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
अपीलकर्ता की ओर से: श्री अरुण कुमार
प्रतिवादी की ओर से: श्री अजय कुमार रस्तोगी, AAG-10
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM2NDMjMjAxNyMxI04=-BWSsCdvXIkw=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।







