निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरकारी विभाग किसी ठेकेदार की बकाया राशि से बिना पूर्व सूचना और उचित प्रक्रिया अपनाए हुए कोई भी राशि समायोजित (adjust) नहीं कर सकते, भले ही वह ठेकेदार पहले से ही ब्लैकलिस्ट किया गया हो।
मामले में याचिकाकर्ता एक ठेका कंपनी थी जो बिहार राज्य खाद्य एवं असैनिक आपूर्ति निगम (BSFCSC) के साथ परिवहन और भंडारण सेवाओं में कार्यरत थी। याचिकाकर्ता को पहले ही पाँच वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट किया जा चुका था और उसका बैंक गारंटी व अर्नेस्ट मनी जब्त कर लिया गया था। हालांकि, इन बिंदुओं को याचिकाकर्ता अलग से संबंधित प्राधिकरण के समक्ष चुनौती दे रहा है।
इस विशेष याचिका में मुद्दा यह था कि निगम ने याचिकाकर्ता को सूचित किए बिना ही उसकी बकाया बिल राशि से निगम को हुए कथित नुकसान की भरपाई शुरू कर दी थी।
याचिकाकर्ता ने यह दलील दी:
- उसे दिए गए कारण बताओ नोटिस में बिल राशि से समायोजन का कोई उल्लेख नहीं था।
- इसलिए उसे यह बताने का अवसर ही नहीं मिला कि कथित नुकसान कैसे और किसकी गलती से हुआ।
- निगम ने सिर्फ कुछ त्रुटियों की लिस्ट दी, लेकिन नुकसान की कोई स्पष्ट गणना या प्रमाण नहीं दिया।
- जब किसी व्यक्ति से राशि वसूली की जा रही हो, तो पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इन बातों से सहमति जताई और कहा कि यह कार्यवाही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
- निगम को पहले याचिकाकर्ता को नोटिस देना चाहिए था,
- उसमें नुकसान की स्पष्ट गणना होनी चाहिए थी,
- और फिर जवाब देने का उचित समय देना चाहिए था।
इसलिए कोर्ट ने निगम द्वारा 27.03.2018 को पारित आदेश का वह भाग रद्द कर दिया जिसमें बकाया बिल से राशि समायोजित करने की बात थी। साथ ही निगम को निर्देश दिया गया कि वह इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करे—लेकिन न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए।
कोर्ट ने पूरा समयबद्ध निर्देश भी दिया:
- निगम 4 सप्ताह के भीतर उचित नोटिस जारी करे,
- याचिकाकर्ता 2 सप्ताह के भीतर उसका जवाब दे,
- फिर निगम के प्रबंध निदेशक 4 सप्ताह के भीतर अंतिम आदेश पारित करें और उसे याचिकाकर्ता को तत्काल सूचित करें।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन ठेकेदारों, आपूर्तिकर्ताओं और निजी कंपनियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो सरकारी संस्थानों के साथ अनुबंध करते हैं। यह स्पष्ट करता है कि:
- बिना पूर्व सूचना के राशि की कटौती करना कानूनन गलत है,
- ब्लैकलिस्ट ठेकेदारों को भी न्याय का अधिकार प्राप्त है,
- किसी भी आर्थिक कार्रवाई से पहले उचित नोटिस और जवाब देने का अवसर अनिवार्य है।
सरकारी विभागों के लिए भी यह फैसला एक चेतावनी है कि वे सभी आर्थिक व अनुबंध संबंधी निर्णय उचित प्रक्रिया के तहत ही लें, ताकि प्रशासनिक पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहे।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या निगम को बिना सूचना के याचिकाकर्ता की बिल राशि से नुकसान की भरपाई करने का अधिकार था?
- निर्णय: नहीं
- कारण: नोटिस में ऐसी कोई बात नहीं थी, जिससे याचिकाकर्ता को जवाब देने का अवसर नहीं मिला।
- क्या अनुमानित नुकसान के आधार पर राशि कटौती की जा सकती है?
- निर्णय: नहीं
- कारण: स्पष्ट गणना और प्रमाण आवश्यक हैं।
- क्या निगम को दोबारा प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति है?
- निर्णय: हां
- कारण: प्रक्रिया उचित तरीके से शुरू की जा सकती है, परंतु न्यायिक मानदंडों के अनुसार।
- कोर्ट ने क्या समयसीमा तय की?
- निर्णय:
- नोटिस 4 सप्ताह में
- उत्तर 2 सप्ताह में
- अंतिम आदेश 4 सप्ताह में
- निर्णय:
मामले का शीर्षक
M/s Raj Construction बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.8955 of 2018
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश श्री अशुतोष कुमार
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से:
श्री बिंध्याचल सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता
श्री राम बिनोद सिंह, अधिवक्ता
राज्य की ओर से:
श्री एस. रज़ा अहमद, AAG-5
श्री आलोक रंजन, AC to AAG-5
BSFCSC की ओर से:
श्री अंजनी कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता
श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह, अधिवक्ता
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