पटना उच्च न्यायालय : ट्रायल के बाद समय सीमा से बाहर संशोधन पर स्पष्ट निर्णय (2025)

पटना उच्च न्यायालय : ट्रायल के बाद समय सीमा से बाहर संशोधन पर स्पष्ट निर्णय (2025)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 27 जनवरी 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि अगर कोई पक्ष मुकदमे के ट्रायल शुरू होने के बाद वादपत्र (plaint) में संशोधन करना चाहता है, तो उसे यह साबित करना होगा कि उसने “पूर्ण सावधानी और तत्परता (due diligence)” के बावजूद यह संशोधन पहले क्यों नहीं किया। अन्यथा ऐसा संशोधन स्वीकार नहीं किया जा सकता, खासकर जब वह संशोधन “समय-सीमा से बाहर (time-barred)” दावे से संबंधित हो।

यह मामला एक पारिवारिक विभाजन वाद (partition suit) से जुड़ा था। वादी पक्ष ने पहले केवल आधे हिस्से की मांग की थी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान उन्होंने एक आवेदन देकर वादपत्र में संशोधन करने की मांग की, ताकि यह जोड़ा जा सके कि कुछ दस्तावेज़ — जैसे उपहार पत्र (gift deed) और वसीयत (will) — जो उनकी माता द्वारा बनाए गए थे, वे अवैध हैं और उनके ऊपर बाध्यकारी नहीं हैं।

प्रतिवादी पक्ष ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ये दस्तावेज़ कई साल पहले बनाए गए थे और इन पर पहले से ही अन्य मुकदमों (जैसे प्रोबेट केस) में बहस हो चुकी है। इसलिए अब इन दस्तावेज़ों को चुनौती देना कानूनन तीन साल की सीमा अवधि से बाहर है।

निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट) ने संशोधन की अनुमति दे दी, यह कहते हुए कि इससे “न्याय के हित में विवादों की संख्या कम होगी।” लेकिन उच्च न्यायालय ने इस आदेश को गलत माना और उसे रद्द कर दिया।

माननीय न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा ने अपने मौखिक आदेश में कहा कि — ट्रायल शुरू होने के बाद कोई भी संशोधन तभी स्वीकार किया जा सकता है जब पक्ष यह दिखाए कि उसने पूर्ण सतर्कता (due diligence) के बावजूद पहले यह आवेदन क्यों नहीं किया। इस मामले में वादी को इन दस्तावेज़ों की जानकारी छह–सात साल पहले से थी, इसलिए अब संशोधन करना केवल देरी और लापरवाही का परिणाम है।

उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के दो प्रमुख फैसलों का उल्लेख किया —

  1. Life Insurance Corporation of India v. Sanjeev Builders (P) Ltd., 2022 SCC OnLine SC 1128
  2. Radhika Devi v. Bajrangi Singh, AIR 1996 SC 2358

इन निर्णयों में कहा गया था कि यद्यपि संशोधन के लिए अदालतों को उदार दृष्टिकोण रखना चाहिए, लेकिन यदि संशोधन किसी समय सीमा से बाहर दावे (time-barred claim) को जोड़ता है, तो वह अमान्य होगा क्योंकि यह दूसरे पक्ष के अधिकारों को प्रभावित करता है।

अंततः, पटना उच्च न्यायालय ने यह माना कि निचली अदालत का आदेश “कानून की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण” था और उसे निरस्त कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार और पूरे देश के सिविल मुकदमों के लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शन देता है:

  • यह बताता है कि Order VI Rule 17 CPC के तहत ट्रायल शुरू होने के बाद संशोधन केवल असाधारण स्थिति में ही किया जा सकता है, और वह भी तब जब “due diligence” साबित हो।
  • अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि समय सीमा से बाहर दावे को संशोधन के माध्यम से जोड़ा नहीं जा सकता। अगर वह दावा नया मुकदमा दाखिल करने पर अवैध हो जाएगा, तो वादपत्र में संशोधन के ज़रिए भी उसे वैध नहीं बनाया जा सकता।
  • निचली अदालतों के लिए यह फैसला एक चेतावनी है कि केवल विवादों की संख्या कम करने के नाम पर कानूनी सीमा अवधि को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
  • आम जनता के लिए यह सीख है कि किसी वसीयत, दानपत्र या अन्य दस्तावेज़ पर आपत्ति करनी हो तो उसे समय रहते करना चाहिए।
  • सरकारी विभागों और संस्थाओं के लिए भी यह निर्णय उपयोगी है, क्योंकि यह मुकदमों को लंबा खींचने वाली अनावश्यक संशोधनों की प्रवृत्ति को रोकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा: क्या ट्रायल शुरू होने के बाद वादी समय सीमा से बाहर दावे को जोड़ने के लिए संशोधन कर सकता है?
    निर्णय: नहीं। ऐसा संशोधन अनुमन्य नहीं है क्योंकि यह “time-barred claim” है।
  • मुद्दा: क्या वादी ने “due diligence” का पालन किया था?
    निर्णय: नहीं। उसे दस्तावेज़ों की जानकारी कई साल पहले से थी, इसलिए यह संशोधन देरी से किया गया और कानून के विरुद्ध था।
  • मुद्दा: क्या केवल “विवादों की संख्या कम करने” के आधार पर संशोधन की अनुमति दी जा सकती है?
    निर्णय: नहीं। ऐसा कोई कारण कानून में पर्याप्त नहीं है।
  • मुद्दा: सुप्रीम कोर्ट के Sanjeev Builders और Radhika Devi के फैसलों का प्रभाव?
    निर्णय: अदालत ने कहा कि ये फैसले स्पष्ट करते हैं कि यदि संशोधन से “अधिकारों का हनन” या “समय सीमा का उल्लंघन” होता है, तो उसे अस्वीकार करना आवश्यक है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  1. Kamal Kishore Prasad v. Sri Lal Kumar Rai & Ors., Civil Misc. No. 657 of 2017 (Patna High Court, निर्णय दिनांक 12.06.2016)
  2. Life Insurance Corporation of India v. Sanjeev Builders (P) Ltd., 2022 SCC OnLine SC 1128

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  1. Life Insurance Corporation of India v. Sanjeev Builders (P) Ltd., 2022 SCC OnLine SC 1128
  2. Radhika Devi v. Bajrangi Singh & Ors., AIR 1996 SC 2358
  3. Laxmidas Dahyabhai Kabarwala v. Nanabhai Chunilal Kabarwala, (1964) 2 SCR 567

मामले का शीर्षक

Brij Mohan Mishra Vs. Krishna Mohan Mishra

केस नंबर

Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 576 of 2019

उद्धरण (Citation)

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न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री राघव प्रसाद, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री धुरेंद्र कुमार और श्री सुमित कुमार, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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