पटना हाई कोर्ट का फैसला: पावर कंपनी में आउटसोर्स कर्मचारी का विवाद

पटना हाई कोर्ट का फैसला: पावर कंपनी में आउटसोर्स कर्मचारी का विवाद

निर्णय की सरल व्याख्या

दिसंबर 2023 में पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले पर फैसला दिया, जिसमें एक आउटसोर्स कर्मचारी और नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (NBPDCL) के बीच विवाद था।

याचिकाकर्ता का कहना था कि वह एक निजी एजेंसी M/S सुरेन्द्र कुमार एजेंसी का कर्मचारी है, लेकिन उसी एजेंसी के माध्यम से पावर कंपनी में रोज़ाना काम करता था। इसलिए उसके रोजगार से जुड़ी समस्याओं पर पावर कंपनी को जवाब देना चाहिए।

मामला तब शुरू हुआ जब 19 अगस्त 2017 को कंपनी के सुपौल डिवीजन के इलेक्ट्रिकल एक्जीक्यूटिव इंजीनियर ने अचानक निरीक्षण किया। उस समय यह पाया गया कि याचिकाकर्ता 12 अगस्त से 18 अगस्त 2017 तक बिना अनुमति अनुपस्थित था। इसके आधार पर कंपनी ने कहा कि वह उनका कर्मचारी नहीं है, बल्कि एजेंसी का कर्मचारी है, इसलिए अनुशासनात्मक कार्यवाही का सवाल कंपनी पर नहीं आता।

कंपनी के वकीलों ने दलील दी कि कंपनी और एजेंसी के बीच एक अनुबंध है, और याचिकाकर्ता उसी एजेंसी का कर्मचारी है। सीधे तौर पर उसे कंपनी का कर्मचारी नहीं माना जा सकता।

हाई कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार किया। अदालत ने कहा कि जब याचिकाकर्ता का सीधा रोजगार कंपनी से नहीं है और वह केवल आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से काम कर रहा है, तो उसकी सेवा संबंधी शिकायतें सीधे तौर पर हाई कोर्ट में नहीं सुनी जा सकतीं।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों का निपटारा श्रम न्यायालय (Labour Court) में होना चाहिए, न कि रिट याचिका (Article 226) के माध्यम से हाई कोर्ट में। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए: यह फैसला साफ करता है कि अगर कोई कर्मचारी किसी एजेंसी के माध्यम से काम कर रहा है, तो उसे सीधे सरकारी या पब्लिक सेक्टर कंपनी का कर्मचारी नहीं माना जाएगा। उसकी शिकायतों का समाधान श्रम न्यायालय में होगा।
  • सरकारी कंपनियों और विभागों के लिए: इस फैसले से कंपनियों को सुरक्षा मिलती है कि आउटसोर्स कर्मचारी सीधे उन पर सेवा लाभ का दावा नहीं कर सकते।
  • श्रम कानून और अनुबंध के लिए: यह मामला दिखाता है कि रोजगार संबंध की सही पहचान करना ज़रूरी है। केवल इस आधार पर कि कर्मचारी किसी कंपनी के लिए काम कर रहा है, उसे सीधे उस कंपनी का स्थायी कर्मचारी नहीं माना जाएगा।
  • कानूनी उपचार के लिए: कोर्ट ने दोहराया कि ऐसे कर्मचारी सीधे हाई कोर्ट नहीं जा सकते। उनके पास उपयुक्त मंच श्रम न्यायालय और औद्योगिक न्यायाधिकरण (Industrial Tribunal) हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या याचिकाकर्ता को पावर कंपनी का सीधा कर्मचारी माना जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं।
    • कारण: याचिकाकर्ता एजेंसी का कर्मचारी था और कंपनी व एजेंसी के बीच अनुबंध था।
  • क्या हाई कोर्ट को रिट याचिका में राहत देनी चाहिए थी?
    • निर्णय: नहीं।
    • कारण: यह विवाद श्रम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि हाई कोर्ट के।

मामले का शीर्षक

Petitioner v. North Bihar Power Distribution Company Ltd. & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 4237 of 2018

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 233

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमन

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सनी आनंद, अधिवक्ता; श्री संजय कुमार रौशन, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी की ओर से: श्रीमती निवेदिता निर्विकार, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री मनोज कुमार, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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