निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने सिविल रिट याचिका संख्या 1816/2021 में 19 मई 2021 को यह स्पष्ट किया कि जब पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो चुकी हो और परिणाम घोषित हो चुका हो, तब उस परिणाम को चुनौती देने के लिए रिट याचिका (Article 226) दायर नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में केवल चुनाव याचिका (Election Petition) ही एकमात्र वैध उपाय है।
यह फैसला माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह द्वारा दिया गया।
मामले में याचिकाकर्ता भागलपुर जिले की एक महिला थीं, जिन्होंने वर्ष 2016 के ग्राम पंचायत चुनाव में वार्ड सदस्य (Ward Member) के पद पर चुनाव लड़ा था। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रतिवादी (एक अन्य उम्मीदवार) ने चुनाव में कई अनियमितताएं कीं और अवैध रूप से जीत हासिल की। इसलिए उन्होंने न्यायालय से प्रतिवादी की सदस्यता रद्द करने और स्वयं को निर्वाचित सदस्य घोषित करने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की भी मांग की।
लेकिन यह याचिका पाँच वर्ष बाद, वर्ष 2021 में दायर की गई थी, जब 2016 के चुने गए सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने वाला था।
राज्य सरकार की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई कि यह रिट याचिका अस्वीकार्य (not maintainable) है, क्योंकि पंचायत चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे मामलों में केवल बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के तहत चुनाव याचिका ही दायर की जा सकती है।
न्यायालय ने संविधान, अधिनियम और न्यायिक निर्णयों का विश्लेषण करते हुए याचिका को कई आधारों पर खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायिक निष्कर्ष
1. संविधान और बिहार पंचायत राज अधिनियम के तहत रोक (Bar):
न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243-O(b) और 243-ZG(b) के तहत चुनाव परिणामों में न्यायालयीय हस्तक्षेप पर स्पष्ट रोक है। पंचायत या नगर निकाय के चुनाव को चुनौती केवल चुनाव याचिका के माध्यम से ही दी जा सकती है।
बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा 138 भी यही कहती है –
“किसी भी पंचायत के चुनाव को केवल इस अधिनियम के तहत निर्धारित प्राधिकारी के समक्ष चुनाव याचिका के द्वारा ही चुनौती दी जा सकती है।”
इसलिए यह रिट याचिका संवैधानिक रूप से अस्वीकृत है।
2. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायालय ने Mohinder Singh Gill बनाम मुख्य निर्वाचन आयुक्त, नई दिल्ली [(1978) 1 SCC 405] का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था –
“एक बार चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जाने पर, किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध एकमात्र उपाय चुनाव याचिका ही है।”
इसलिए, Article 226 का उपयोग करके पंचायत चुनाव परिणाम को चुनौती देना असंवैधानिक है।
3. पटना उच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय पर भरोसा:
न्यायालय ने Bibha Devi बनाम राज्य निर्वाचन आयोग (पंचायत) [2017 (1) PLJR 225] के निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि –
- अनुच्छेद 243-O की वजह से उच्च न्यायालय की Article 226 के तहत अधिकारिता सीमित हो जाती है।
- उच्च न्यायालय केवल चुनाव प्रक्रिया को “सुगम” बनाने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है, लेकिन चुनाव परिणाम को “रद्द या उलट” नहीं सकता।
इसलिए चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद रिट याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
4. देरी और लापरवाही (Delay and Laches):
न्यायालय ने पाया कि चुनाव परिणाम 29 मई 2016 को घोषित हुए थे, जबकि याचिका 2021 में दायर की गई — यानी लगभग 5 वर्ष बाद। इस दौरान न तो याचिकाकर्ता ने कोई शिकायत दर्ज कराई और न ही चुनाव याचिका दायर की।
इसलिए न्यायालय ने कहा कि इतनी असाधारण देरी से दायर याचिका पर कोई राहत नहीं दी जा सकती। याचिकाकर्ता ने अपने अधिकारों पर “नींद ली” है और अब न्यायालय के विवेकाधीन अधिकार (discretionary jurisdiction) का लाभ नहीं ले सकती।
5. एफआईआर दर्ज कराने की मांग अस्वीकार्य:
जहां तक याचिकाकर्ता द्वारा चुनाव अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग का सवाल था, न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार का राहत रिट याचिका के माध्यम से नहीं दिया जा सकता। यदि कोई अपराध हुआ है, तो उसके लिए अलग से आपराधिक प्रक्रिया के तहत कार्रवाई करनी होगी।
न्यायालय का निष्कर्ष
न्यायालय ने कहा —
- चुनाव परिणाम को चुनौती देने के लिए केवल चुनाव याचिका ही वैध रास्ता है।
- यह रिट याचिका अनुच्छेद 243-O(b) और धारा 138, बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के तहत अस्वीकार्य है।
- याचिका देरी और लापरवाही के कारण भी खारिज की जाती है।
इसलिए याचिका को पूर्णतः निराधार और अस्वीकार्य बताते हुए खारिज कर दिया गया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- चुनाव उम्मीदवारों के लिए: पंचायत या नगर चुनाव के बाद परिणाम को चुनौती देने का एकमात्र तरीका चुनाव याचिका है। रिट याचिका से कोई राहत नहीं मिलेगी।
- सरकारी अधिकारियों और निर्वाचन आयोग के लिए: यह निर्णय चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और अंतिमता की रक्षा करता है।
- आम जनता के लिए: यह निर्णय बताता है कि संविधान स्वयं चुनाव मामलों में न्यायालय की भूमिका सीमित रखता है।
- वकीलों के लिए: यह स्पष्ट करता है कि चुनाव संबंधी विवादों में Article 226 के तहत राहत नहीं मांगी जा सकती।
कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय
- क्या चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद रिट याचिका दायर की जा सकती है?
- नहीं। संविधान इस पर रोक लगाता है; केवल चुनाव याचिका ही मान्य है।
- क्या पाँच वर्ष बाद दायर याचिका उचित है?
- नहीं। यह असाधारण देरी है।
- क्या रिट न्यायालय एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दे सकता है?
- नहीं। यह आपराधिक प्रक्रिया का विषय है, रिट का नहीं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Mohinder Singh Gill बनाम मुख्य निर्वाचन आयुक्त, नई दिल्ली (1978) 1 SCC 405।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Bibha Devi बनाम राज्य निर्वाचन आयोग (पंचायत), 2017 (1) PLJR 225।
मामले का शीर्षक
CWJC No. 1816 of 2021 — याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य।
केस नंबर
सिविल रिट याचिका संख्या 1816/2021।
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 749
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह।
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता के लिए: श्री अमरेंद्र कुमार, अधिवक्ता।
- प्रतिवादियों के लिए: श्री मृितुंजय कुमार, सहायक अधिवक्ता (AAG-6)।
निर्णय का लिंक
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