पंचायती राज में धोखाधड़ी: वैशाली प्रखंड में अविश्वास प्रस्ताव की कार्यवाही पटना हाई कोर्ट ने रद्द की

पंचायती राज में धोखाधड़ी: वैशाली प्रखंड में अविश्वास प्रस्ताव की कार्यवाही पटना हाई कोर्ट ने रद्द की

पटना हाई कोर्ट ने वैशाली जिले के प्रखंड पंचायत समिति की दो विशेष बैठकों (10 और 11 अगस्त 2018) में पारित अविश्वास प्रस्तावों की कार्यवाही को अवैध और धोखाधड़ीपूर्ण मानते हुए रद्द कर दिया। इन बैठकों में प्रस्ताव असफल हुए थे, जिससे प्रमुख और उप-प्रमुख अपने पदों पर बने रहे। न्यायालय ने इसे कानून और लोकतंत्र की प्रक्रिया पर किया गया धोखा बताया।

इस मामले में पंचायत समिति के 10 निर्वाचित सदस्यों ने 2 अगस्त 2018 को प्रमुख और उप-प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के लिए विशेष बैठक बुलाने का अनुरोध किया था। लेकिन, जिस दिन बैठक हुई, उस दिन वही 10 सदस्य बैठक में उपस्थित नहीं हुए। इस गैरहाजिरी के चलते प्रस्ताव पारित नहीं हो सका और संविधान के तहत आगे कोई दूसरा अविश्वास प्रस्ताव लाने पर रोक लग गई।

याचिकाकर्ता, जो स्वयं पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य थे, उन्होंने इस प्रक्रिया को एक पूर्व नियोजित साजिश बताया और अदालत से हस्तक्षेप की मांग की। न्यायालय ने उनकी बात से सहमति जताते हुए पाया कि यह पूरे तरीके से एक सोची-समझी धोखाधड़ी थी, जिसमें प्रमुख और उप-प्रमुख को पद पर बनाए रखने के लिए प्रक्रिया को जानबूझकर विफल किया गया।

न्यायमूर्ति माननीय अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने इस पूरे घटनाक्रम में अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका को भी उजागर किया। जिस दिन प्रस्ताव दाखिल हुआ, उसी दिन बीडीओ और प्रमुख के स्तर पर बैठक की तिथि तय हो गई और सभी संबंधितों को नोटिस जारी हो गया। अदालत ने इस तेज कार्यवाही को अस्वाभाविक और पूर्व निर्धारित बताया।

सबसे चिंताजनक पहलू यह था कि जिन 10 सदस्यों ने प्रस्ताव दिया, वे खुद बैठक में उपस्थित नहीं हुए। कोर्ट ने इसे संयोग नहीं बल्कि जानबूझकर किया गया कृत्य मानते हुए कहा कि इसका मकसद यही था कि प्रस्ताव विफल हो जाए और आगे कोई दूसरा प्रस्ताव न लाया जा सके।

कोर्ट ने न केवल दोनों बैठकों की कार्यवाही को शून्य घोषित किया बल्कि वैशाली के जिलाधिकारी को यह निर्देश भी दिया कि संबंधित बीडीओ के खिलाफ जांच कराई जाए। साथ ही राज्य सरकार को सलाह दी गई कि ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए कानून में आवश्यक बदलाव लाए जाएं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय पंचायती राज संस्थाओं में लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक सशक्त संदेश देता है। यह बताता है कि चुने गए जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते और कानून का दुरुपयोग कर पद पर बने नहीं रह सकते। यह बिहार की आम जनता के लिए आश्वासन है कि न्यायपालिका ऐसे मामलों में सख्ती से कार्रवाई करेगी। सरकार के लिए यह एक चेतावनी है कि वह पंचायती राज अधिनियम में मौजूद कमजोरियों को दूर करे और ईमानदार प्रशासन को सुनिश्चित करे।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या 10.08.2018 और 11.08.2018 को हुई विशेष बैठकें वैध थीं?
    निर्णय: नहीं, कोर्ट ने इन्हें धोखाधड़ीपूर्ण मानते हुए रद्द कर दिया।
  • क्या प्रस्ताव देने वाले सदस्यों का बैठक में अनुपस्थित रहना कार्यवाही को अवैध बनाता है?
    निर्णय: हां, यह जानबूझकर की गई कार्यवाही थी ताकि प्रस्ताव विफल हो जाए।
  • क्या अब दोबारा अविश्वास प्रस्ताव लाना संभव है?
    निर्णय: हां, क्योंकि पिछली बैठकें वैध नहीं थीं, इसलिए निषेध लागू नहीं होता।
  • क्या बीडीओ का आचरण विधिसम्मत था?
    निर्णय: नहीं, कोर्ट ने उनके खिलाफ जांच का आदेश दिया।

मामले का शीर्षक

हेमंत कुमार एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

CWJC No. 20751 of 2018

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 966

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री एस.बी.के. मंगलम, अधिवक्ता — याचिकाकर्ताओं की ओर से
  • श्री कुमार आलोक (SC 7), श्री प्रेम रंजन राज (AC to SC 7) — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjA3NTEjMjAxOCMxI04=-IDLwJTZoyGM=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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