निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पंचायत समिति में पारित अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion) को बरकरार रखा। यह मामला बिहार के पूर्वी चंपारण जिले से जुड़ा था, जहाँ पंचायत समिति की विशेष बैठक में प्रखंड प्रमुख (Pramukh) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया।
बैठक 18 जनवरी 2024 को हुई थी। इसमें कुल 9 सदस्य शामिल हुए। मतदान के दौरान 5 सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में और 4 ने विरोध में मतदान किया। इस प्रकार, बहुमत से प्रस्ताव पारित हो गया और प्रखंड प्रमुख को पद से हटाने का रास्ता साफ हो गया।
लेकिन प्रखंड प्रमुख (याचिकाकर्ता) ने इस प्रक्रिया को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि कुछ मतपत्र (ballots) पर “+” का निशान लगाया गया था, जबकि बिहार पंचायत चुनाव नियमावली, 2006 (Bihar Panchayat Election Rules, 2006) के अनुसार सही तरीका केवल “x” का निशान लगाना है। इसलिए ऐसे मतपत्र अमान्य (invalid) माने जाने चाहिए थे।
पहले दौर की सुनवाई में हाईकोर्ट ने जिला पदाधिकारी (District Magistrate)-सह-जिला निर्वाची पदाधिकारी को निर्देश दिया कि वे मतपत्रों की दोबारा जाँच करें और हर मतपत्र का विवरण लिखें। अदालत ने यह भी कहा कि जाँच के दौरान मतदाता की पहचान गुप्त रखी जाए और सिर्फ यह बताया जाए कि मतपत्र पर कौन-सा निशान बना है।
जिला पदाधिकारी ने सभी सदस्यों की मौजूदगी में सीलबंद मतपेटी खोली और हर मतपत्र को देखा। पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की गई। इस बार पाया गया कि सभी मतपत्रों पर “x” का निशान ही बना है, “+” का नहीं। इस रिपोर्ट के आधार पर जिला पदाधिकारी ने सभी मतपत्रों को वैध माना।
याचिकाकर्ता ने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका तर्क था कि जिला पदाधिकारी ने सिर्फ औपचारिक रिपोर्ट दी है, विस्तृत कारण नहीं बताए गए हैं। लेकिन अदालत ने साफ कहा कि जब एक बार नहीं बल्कि दो बार मतपत्रों की जाँच हो चुकी है और दोनों बार यह पाया गया कि सभी मतपत्रों पर “x” बना है, तो अब इस विवाद को खत्म करना ही उचित है।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले Kuldeep Kumar v. Union Territory of Chandigarh (2024) 3 SCC 526 का भी उल्लेख किया। उस मामले में मतदान प्रक्रिया में स्वयं प्रिसाइडिंग ऑफिसर ने गड़बड़ी की थी और मतपत्रों पर गलत निशान लगा दिया था। लेकिन पटना हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई भी अधिकारी या सदस्य पर ऐसी गड़बड़ी का आरोप नहीं है। इसलिए यह मिसाल यहाँ लागू नहीं होती।
अंततः अदालत ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है और प्रखंड प्रमुख का पद जनता के प्रतिनिधियों की इच्छा पर निर्भर करता है। जब बहुमत ने विश्वास खो दिया है और प्रक्रिया नियमों के अनुसार हुई है, तो याचिका खारिज की जाती है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- स्थानीय निकायों की स्थिरता पर असर: यह फैसला स्पष्ट करता है कि पंचायत स्तर पर अविश्वास प्रस्ताव एक वैध और लोकतांत्रिक तरीका है। जब बहुमत का समर्थन खो जाता है, तो प्रमुख को पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है।
- मतदान की गोपनीयता और पारदर्शिता: अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि मतपत्रों की जाँच पारदर्शी ढंग से होनी चाहिए लेकिन मतदाता की पहचान गुप्त रहनी चाहिए। इससे जनता का भरोसा मजबूत होता है।
- अनावश्यक मुकदमेबाजी पर रोक: इस फैसले से यह संदेश भी जाता है कि बिना ठोस सबूत के चुनाव प्रक्रिया पर बार-बार सवाल उठाकर अदालत को परेशान नहीं किया जा सकता।
- प्रशासनिक प्रक्रिया की पुष्टि: अदालत ने यह भी माना कि जिला पदाधिकारी द्वारा दो बार पारदर्शी जाँच और वीडियोग्राफी पर्याप्त है। इससे प्रशासनिक फैसलों को अदालत का समर्थन मिलता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या “+” के निशान वाले मतपत्र अमान्य हैं?
अदालत ने कहा कि जब तथ्यात्मक रूप से साबित हुआ कि सभी मतपत्रों पर “x” का निशान था, तो यह सवाल ही निरर्थक हो जाता है। - क्या जिला पदाधिकारी की रिपोर्ट पर्याप्त थी?
हाँ। अदालत ने माना कि सीलबंद मतपेटी की उपस्थिति में सभी सदस्यों के सामने दो बार जाँच हुई और रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया कि हर मतपत्र सही है। - क्या सुप्रीम कोर्ट का Kuldeep Kumar मामला यहाँ लागू होता है?
नहीं। उस मामले में चुनाव अधिकारी ने खुद गड़बड़ी की थी, लेकिन यहाँ ऐसी कोई स्थिति नहीं है। - अंतिम निर्णय:
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि प्रखंड प्रमुख का पद जनता के विश्वास पर आधारित है। जब बहुमत का विश्वास नहीं रहा, तो उन्हें पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Kuldeep Kumar v. Union Territory of Chandigarh & Ors., (2024) 3 SCC 526
- Shobhna Kumari v. State of Bihar & Ors., CWJC No. 13287 of 2024 (Patna High Court)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Kuldeep Kumar v. Union Territory of Chandigarh & Ors., (2024) 3 SCC 526 (तथ्यों के आधार पर अलग बताया गया)
मामले का शीर्षक
डोली देवी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 19153 of 2024
उद्धरण (Citation)
2025 (1) PLJR 528
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार (मौखिक निर्णय, दिनांक 19-12-2024)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री एस. बी. के. मंगलम, श्री विकास कुमार सिंह, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्रीमती बिनीता सिंह, SC-28
- राज्य निर्वाचन आयोग (पंचायत) की ओर से: श्री रवि रंजन, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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