पटना उच्च न्यायालय का फैसला: सुनवाई का अवसर दिए बिना रद्द की गई पी.डी.एस. डीलर की चयन प्रक्रिया रद्द (2021)

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: सुनवाई का अवसर दिए बिना रद्द की गई पी.डी.एस. डीलर की चयन प्रक्रिया रद्द (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 25 मार्च 2021 को एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी उम्मीदवार की लोक वितरण प्रणाली (PDS) की डीलरशिप चयन को बिना सुनवाई का अवसर दिए रद्द करना कानून और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (Principles of Natural Justice) के खिलाफ है।

इस मामले में याचिकाकर्ता, औरंगाबाद जिले की निवासी एक महिला, को मार्च 2019 में पी.डी.एस. दुकान का लाइसेंस देने के लिए चयनित किया गया था। चयन के बाद उसने निर्धारित राशि चालान के माध्यम से जमा भी कर दी थी। परंतु कुछ महीनों बाद, उसकी चयन प्रक्रिया को जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर रद्द कर दिया गया।

जांच रिपोर्ट 08 जुलाई 2019 को एक तीन सदस्यीय समिति द्वारा तैयार की गई थी, जिसे मगध प्रमंडल के आयुक्त (Divisional Commissioner, Gaya) ने गठित किया था। इस समिति ने कहा कि चयन प्रक्रिया में कई गड़बड़ियाँ हुई हैं और पूरी प्रक्रिया को रद्द कर पुनः चयन की आवश्यकता है

याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में तीन दस्तावेजों को चुनौती दी —

  1. पत्र संख्या 726, दिनांक 28.08.2019 (मगध प्रमंडल, गया के आयुक्त द्वारा जारी),
  2. पत्र संख्या 4410, दिनांक 18.09.2019 (खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग, बिहार सरकार द्वारा जारी), जिसमें नई चयन प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश था,
  3. और 08.07.2019 की जांच रिपोर्ट

याचिकाकर्ता का कहना था कि —

  • उसे पहले ही चयनित किया जा चुका था और उसने सभी औपचारिकताएँ पूरी कर ली थीं, इसलिए उसके पक्ष में एक वैधानिक अधिकार (vested right) उत्पन्न हो चुका था।
  • समिति की रिपोर्ट सामान्य शिकायतों से संबंधित थी, इसलिए बिना उसे सुनवाई का अवसर दिए उसकी चयन रद्द नहीं की जा सकती थी।
  • शिकायतकर्ता ने यह झूठा आरोप लगाया था कि उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित है, जबकि ऐसा कोई मामला अस्तित्व में नहीं था और जांच के दौरान भी कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया।

राज्य सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि समिति ने पूरे चयन की समीक्षा की थी और उसे अनुचित पाया, इसलिए सभी चयन रद्द कर दिए गए।

लेकिन न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने सभी तथ्यों का विश्लेषण करने के बाद पाया कि —

  • जांच समिति को केवल सामान्य शिकायतों की समीक्षा करनी थी, न कि किसी चयन को व्यक्तिगत रूप से रद्द करने का अधिकार था।
  • याचिकाकर्ता के चयन की सूचना पहले ही जारी हो चुकी थी और उसने राशि भी जमा कर दी थी, जिससे उसका वैधानिक अधिकार बन चुका था
  • बिना सुनवाई दिए उसका चयन रद्द करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
  • शिकायतकर्ता जांच में उपस्थित नहीं हुआ और उसके आरोप साबित नहीं हुए।
  • आयोग का आदेश जल्दबाजी में पारित किया गया था और ऐसा प्रतीत कराया गया मानो यह उच्च न्यायालय के आदेश पर जारी हुआ हो, जो कि गलत था।

इस आधार पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर न देकर उसकी चयन रद्द करना पूर्णत: अनुचित और अवैध है।

इसलिए पटना उच्च न्यायालय ने उसके विरुद्ध जारी आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि —

  • लाइसेंसिंग प्राधिकारी 08 मार्च 2019 के मेमो संख्या 198 के आधार पर 30 दिनों के भीतर याचिकाकर्ता को पी.डी.एस. लाइसेंस जारी करे।
  • हालांकि, यदि विभाग चाहे तो बाद में पुनः शिकायत की जांच कर सकता है, परंतु याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर अवश्य देना होगा

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

यह फैसला सरकारी नियुक्ति और लाइसेंस से जुड़ी प्रक्रियाओं में प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता की अहमियत को दोहराता है।

  • अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति के रोज़गार या जीवनयापन से जुड़े अधिकार को छीना नहीं जा सकता जब तक कि उसे अपने पक्ष में बोलने का अवसर न दिया जाए।
  • एक बार जब चयन और औपचारिकताएँ पूरी हो जाती हैं, तो उम्मीदवार का अधिकार स्थापित हो जाता है, जिसे प्रशासन मनमाने ढंग से रद्द नहीं कर सकता।
  • सामान्य जांच रिपोर्ट के आधार पर व्यक्तिगत चयन रद्द करना न्यायसंगत नहीं है।
  • यह निर्णय उन सैकड़ों पी.डी.एस. डीलरों और अन्य आवेदकों के लिए राहत लेकर आया है जिनके चयन सामूहिक रूप से रद्द किए गए थे।
  • अधिकारियों को यह संदेश दिया गया कि न्यायालय के आदेशों की गलत व्याख्या कर मनमाने निर्णय लेना गंभीर प्रशासनिक गलती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या किसी चयन को बिना सुनवाई का अवसर दिए रद्द किया जा सकता है?
    निर्णय: नहीं। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।
  • क्या सामान्य जांच रिपोर्ट व्यक्तिगत उम्मीदवार के चयन को रद्द करने के लिए पर्याप्त है?
    निर्णय: नहीं। व्यक्तिगत मामले में विशिष्ट साक्ष्य और सुनवाई आवश्यक है।
  • क्या याचिकाकर्ता पर लगाए गए आपराधिक मामले के आरोप सिद्ध हुए थे?
    निर्णय: नहीं। आरोप निराधार थे और शिकायतकर्ता जांच में उपस्थित नहीं हुआ।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • CWJC No. 7646 of 2019, पटना उच्च न्यायालय — पहले दिए गए निर्देशों के अनुपालन में यह जांच गठित की गई थी।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • अदालत ने सामान्य सिद्धांतों का उल्लेख किया कि प्राकृतिक न्याय हर प्रशासनिक प्रक्रिया में लागू होता है।

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 21657 of 2019

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 326

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री जितेन्द्र कुमार सिंह, श्री साकेत गुप्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री आलोक रंजन (AC to AAG-5) — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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