निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने फरवरी 2021 में एक अहम फैसला सुनाया जिसमें यह तय किया गया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की दुकान का लाइसेंस बिना उचित शो-कॉज नोटिस और सुनवाई का मौका दिए रद्द नहीं किया जा सकता।
यह मामला रोहतास जिले का था। याचिकाकर्ता को 2015 में पीडीएस दुकान का लाइसेंस मिला था। 23 फरवरी 2016 को उन्हें एक शो-कॉज नोटिस भेजा गया जिसमें उनके पिता की जन्मतिथि में विसंगति का आरोप था। नोटिस में कहा गया कि उन्हें दो दिन में जवाब देना होगा। लेकिन इस नोटिस में यह स्पष्ट नहीं लिखा गया था कि यदि जवाब संतोषजनक न हुआ तो उनका लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने जवाब दिया, लेकिन 09 जुलाई 2016 को अनुमंडल पदाधिकारी (लाइसेंसिंग प्राधिकारी) ने उनका लाइसेंस रद्द कर दिया। उन्होंने जिला पदाधिकारी के समक्ष अपील की (अपील केस नं. 17/2016), लेकिन 16 सितम्बर 2016 को अपील भी खारिज कर दी गई।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका तर्क था कि:
- नोटिस में यह स्पष्ट नहीं था कि उनका लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।
- उन्हें अपनी ओर से पूरी तरह बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया।
- यह स्थिति प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने राम बचन राम बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, 2018 (4) PLJR 516 का हवाला दिया। उस मामले में भी कोर्ट ने कहा था कि लाइसेंस रद्द करने से पहले नोटिस में साफ लिखा होना चाहिए कि लाइसेंस रद्द करने का प्रस्ताव है।
राज्य की ओर से यह कहा गया कि याचिकाकर्ता का जवाब विचार करने के बाद ही आदेश दिया गया था। लेकिन राज्य यह नहीं झुठला सका कि नियम 2016 के तहत नोटिस में स्पष्ट प्रस्ताव का उल्लेख जरूरी था।
कोर्ट ने बिहार लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश, 2016 की धारा 27(2) का हवाला दिया, जिसमें साफ लिखा है कि लाइसेंस रद्द करने से पहले लाइसेंसधारी को रद्द करने के प्रस्ताव पर अपना पक्ष रखने का अवसर देना अनिवार्य है।
हाईकोर्ट ने माना कि नोटिस में यह स्पष्ट उल्लेख नहीं था, इसलिए याचिकाकर्ता को उचित अवसर नहीं मिला और यह पूरी कार्रवाई कानूनी रूप से दोषपूर्ण है।
नतीजतन, कोर्ट ने 09.07.2016 और 16.09.2016 दोनों आदेशों को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने सरकार को यह छूट दी कि वे यदि चाहें तो कानून के अनुसार दोबारा कार्रवाई शुरू कर सकते हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- निष्पक्ष प्रशासन के लिए: यह फैसला याद दिलाता है कि सरकारी अधिकारी किसी भी दंडात्मक कार्रवाई के लिए सही और स्पष्ट नोटिस जारी करें। अस्पष्ट नोटिस पर आधारित आदेश टिकाऊ नहीं होंगे।
- पीडीएस दुकानदारों के लिए सुरक्षा: अब यह साफ है कि राशन दुकान का लाइसेंस बिना उचित अवसर दिए रद्द नहीं किया जा सकता। यह संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा है।
- आम जनता के लिए लाभ: पीडीएस दुकानों का मनमाने ढंग से बंद होना जनता को सीधा नुकसान पहुँचाता है। यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि केवल वैध और न्यायसंगत आधार पर ही दुकान बंद होगी।
- सरकारी अधिकारियों के लिए चेतावनी: यदि नियमों का पालन नहीं किया गया तो अदालत हस्तक्षेप करेगी। इससे सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और अनुशासन बढ़ेगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या लाइसेंस रद्द करने के लिए नोटिस में स्पष्ट रूप से “रद्द करने का प्रस्ताव” लिखना जरूरी है?
- कोर्ट का निर्णय: हाँ। 2016 नियंत्रण आदेश की धारा 27(2) में यह अनिवार्य है। चूँकि नोटिस में यह नहीं था, आदेश अवैध है।
- क्या जिला पदाधिकारी अपील में रद्दीकरण आदेश कायम रख सकते थे?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं। जब मूल आदेश ही अवैध था तो अपील आदेश अपने आप अस्थिर हो जाता है।
- क्या सरकार दोबारा कार्रवाई कर सकती है?
- कोर्ट का निर्णय: हाँ। सरकार चाहें तो नए नोटिस के साथ, कानून के अनुसार कार्रवाई शुरू कर सकती है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- राम बचन राम बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, 2018 (4) PLJR 516
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- वही निर्णय: राम बचन राम बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, 2018 (4) PLJR 516
मामले का शीर्षक
Akhalakh Ansari v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 23891 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 746
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायाधीश मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय कुमार तिवारी, अधिवक्ता
- प्रतिवादी (राज्य प्राधिकार) की ओर से: श्री अरविंद उज्ज्वल, अधिवक्ता (SC-4)
निर्णय का लिंक
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