निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने Letters Patent Appeal (LPA) No. 271 of 2019 में 31 मई 2021 को यह स्पष्ट किया कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी लंबे समय तक बिना अनुमति के अनुपस्थित रहता है और बाद में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है, तो उसे पेंशन का अधिकार नहीं मिलता। यह निर्णय माननीय मुख्य न्यायाधीश एवं माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार की द्वैतिक पीठ द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनाया गया।
मामले के अनुसार, अपीलकर्ता वर्ष 1979 से बिहार सरकार की सेवा में थे। वर्ष 1995 में उन्होंने तीन महीने की छुट्टी मांगी, जो 10 मई 1995 से मंजूर की गई। लेकिन छुट्टी खत्म होने के बाद उन्होंने ड्यूटी जॉइन नहीं की। उन्होंने 1 अगस्त 1995 को छुट्टी बढ़ाने का अनुरोध किया, परंतु यह आवेदन 16 जनवरी 1996 को अस्वीकार कर दिया गया। इसके बावजूद उन्होंने कार्य पर वापसी नहीं की।
इसके बाद, अपीलकर्ता ने 1 फरवरी 1996 और 16 फरवरी 1996 को आवेदन देकर बिहार सेवा संहिता के नियम 74(b)(i) के तहत स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (Voluntary Retirement) की मांग की। उनका कहना था कि वे 50 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। लेकिन विभाग ने 8 मार्च 1996 को यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि वे बिना अनुमति अनुपस्थित हैं।
अपीलकर्ता ने इस निर्णय के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। परिणामस्वरूप, विभाग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Proceedings) शुरू की। जांच के दौरान उन्हें कई बार सूचित किया गया, परंतु उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और न ही सुनवाई में भाग लिया। सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद विभाग ने 11 अक्टूबर 2000 को आदेश जारी कर उन्हें सेवा से बर्खास्त (Dismiss) कर दिया।
लगभग 19 वर्ष बाद, यानी 2019 में, अपीलकर्ता ने CWJC No. 1185 of 2019 के माध्यम से न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, जिसमें उन्होंने अपनी बर्खास्तगी और पेंशन अधिकार पर पुनर्विचार की मांग की। एकल न्यायाधीश ने यह याचिका देरी और योग्यता दोनों आधारों पर खारिज कर दी।
इसके बाद अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय में LPA No. 271 of 2019 दायर किया। सुनवाई के दौरान उनके वरिष्ठ अधिवक्ता श्री योगेश चंद्र वर्मा ने D.V. Kapur बनाम भारत संघ (1990) 4 SCC 314 का हवाला देते हुए कहा कि पेंशन एक मौलिक अधिकार है जिसे छीना नहीं जा सकता। लेकिन न्यायालय ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया।
न्यायालय के प्रमुख निष्कर्ष:
- अनुचित देरी:
- न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता ने लगभग 19 वर्ष की देरी से याचिका दायर की और देरी का कोई वाजिब कारण नहीं बताया। इतनी पुरानी मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- सेवा नियमों का पालन अनिवार्य:
- अदालत ने कहा कि पेंशन कोई स्वचालित अधिकार नहीं है, बल्कि यह सेवा नियमों से नियंत्रित होता है।
- यदि कोई व्यक्ति सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है, तो उसे पेंशन का अधिकार नहीं मिलता।
- प्राकृतिक न्याय का पालन:
- न्यायालय ने पाया कि विभाग ने जांच में सभी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (principles of natural justice) का पालन किया। अपीलकर्ता को हर स्तर पर सूचना दी गई, परंतु उन्होंने खुद भाग नहीं लिया।
- D.V. Kapur केस का उल्लेख असंगत:
- अदालत ने कहा कि D.V. Kapur मामला इस स्थिति पर लागू नहीं होता क्योंकि वह मामला सेवा से बर्खास्त व्यक्ति से संबंधित नहीं था।
- एकल न्यायाधीश का निर्णय सही:
- न्यायालय ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने सभी तथ्यों और कानून का सही विश्लेषण किया और कोई त्रुटि नहीं की।
अंततः, न्यायालय ने अपील को बिना योग्यता (devoid of merit) बताते हुए खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- सरकारी कर्मचारियों के लिए: यदि कोई कर्मचारी बिना अनुमति लंबे समय तक अनुपस्थित रहता है, तो यह अनुशासनहीनता मानी जाती है और पेंशन का अधिकार समाप्त हो जाता है।
- सेवानिवृत्त अधिकारियों के लिए: यह निर्णय बताता है कि पेंशन का अधिकार तभी सुरक्षित है जब कर्मचारी सेवा नियमों का पालन करे और उसके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न हो।
- प्रशासनिक व्यवस्था के लिए: यह फैसला सरकारी सेवा अनुशासन को सुदृढ़ करता है और संदेश देता है कि लापरवाही और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
- आम जनता के लिए: न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि “न्याय उन्हीं को मिलता है जो समय पर कदम उठाते हैं।” बहुत देर से की गई कार्रवाई न्यायिक राहत नहीं दिला सकती।
कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय (बुलेट में)
- क्या 19 वर्ष की देरी माफ की जा सकती है?
- नहीं। न्यायालय ने कहा कि इतनी लंबी देरी का कोई उचित कारण नहीं बताया गया।
- क्या सेवा से बर्खास्त कर्मचारी को पेंशन का अधिकार है?
- नहीं। सेवा नियमों के अनुसार बर्खास्तगी के बाद पेंशन का अधिकार समाप्त हो जाता है।
- क्या जांच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ?
- नहीं। विभाग ने सभी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया और पर्याप्त अवसर दिया।
- क्या D.V. Kapur केस इस मामले में लागू था?
- नहीं। वह मामला अलग तथ्यों पर आधारित था।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- D.V. Kapur बनाम भारत संघ (1990) 4 SCC 314।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
कोई नहीं।
मामले का शीर्षक
Letters Patent Appeal No. 271 of 2019 in CWJC No. 1185 of 2019 — अपीलकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य।
केस नंबर
L.P.A. No. 271 of 2019।
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 747
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार।
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता के लिए: श्री योगेश चंद्र वर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री मोहम्मद अनीसुर रहमान, अधिवक्ता।
- प्रतिवादियों के लिए: श्री अंजनी कुमार, एएजी-4।
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMyNzEjMjAxOSMxI04=-yZ–am1–WtQeRZfQ=
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