निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 27 मई 2021 को एक महत्त्वपूर्ण मौखिक आदेश में यह स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति सेना या नौसेना की सेवा छोड़कर बिहार सरकार की सेवा में आता है, तो वह तभी अपनी पूर्व सैन्य सेवा को पेंशन गणना में जोड़ सकता है जब वह बिहार पेंशन नियमावली, नियम 87 की सभी शर्तों का पालन करे।
यह मामला Letters Patent Appeal (LPA) No. 44 of 2021 से जुड़ा था, जो CWJC No. 14254 of 2011 के आदेश के खिलाफ दायर किया गया था। अपीलकर्ता पहले भारतीय नौसेना में कार्यरत थे और बाद में बिहार मिलिट्री पुलिस (BMP) में शामिल हुए। उन्होंने यह दावा किया कि उनकी नौसेना सेवा को पेंशन के लिए गिनी जानी चाहिए।
लेकिन एकल न्यायाधीश ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। इस निर्णय को चुनौती देने के लिए अपीलकर्ता ने लगभग 6 साल बाद अपील दायर की। यह विलंब 5 वर्ष और 355 दिनों का था।
अपीलकर्ता ने सीमाबंधन अधिनियम (Limitation Act) की धारा 5 के तहत विलंब माफी (condonation of delay) के लिए आवेदन किया, परंतु न्यायालय ने पाया कि इतनी लंबी देरी के लिए कोई पर्याप्त कारण नहीं बताया गया। इसलिए न्यायालय ने देरी माफ करने से इनकार किया और परिणामस्वरूप पूरी अपील को खारिज कर दिया।
फिर भी, न्यायालय ने मामले के गुण-दोष (merits) पर भी संक्षेप में विचार किया। पीठ ने पाया कि नियम 87 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति सेना या नौसेना की सेवा के बाद राज्य सरकार में आता है, तो उसकी पुरानी सेवा तभी जोड़ी जा सकती है जब—
- वह अपनी नई नौकरी जॉइन करने के तीन महीने के अंदर यह विकल्प (option) दे कि वह अपनी पुरानी सेवा जोड़ना चाहता है, और
- वह सेना/नौसेना से मिली ग्रेच्युटी (gratuity) राशि राज्य कोष में जमा कर दे।
अपीलकर्ता ने न तो समय पर विकल्प दिया और न ही ग्रेच्युटी राशि जमा की। इसलिए अदालत ने माना कि वे नियम 87 की आवश्यक शर्तें पूरी नहीं कर सके और इस आधार पर उन्हें पेंशन का लाभ नहीं मिल सकता।
अपीलकर्ता ने वित्त विभाग की 1 जून 2005 की परिपत्र (circular) का हवाला देते हुए कहा कि उससे उन्हें संयुक्त सेवा का लाभ मिलना चाहिए, परंतु न्यायालय ने यह तर्क भी अस्वीकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह परिपत्र केवल उन कर्मचारियों पर लागू होता है जो राज्य सरकार की सेवा में निरंतर कार्यरत हैं, न कि उन पर जो बाहर से (जैसे सशस्त्र बलों से) राज्य सेवा में आए हैं।
इस प्रकार, न्यायालय ने अपील को न केवल विलंब के कारण, बल्कि मूल रूप से भी अस्वीकार कर दिया और एकल न्यायाधीश के निर्णय को सही ठहराया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- पूर्व सैनिकों के लिए: यह फैसला स्पष्ट करता है कि जो सैनिक या नौसैनिक राज्य सरकार में नौकरी लेते हैं, उन्हें नियम 87 के अनुसार समय पर विकल्प देना और ग्रेच्युटी राशि जमा करना आवश्यक है। ऐसा न करने पर पुरानी सेवा पेंशन में नहीं जुड़ सकती।
- सरकारी विभागों के लिए: यह आदेश दिखाता है कि पेंशन नियमों का पालन अनिवार्य है। किसी भी देरी या प्रक्रिया की चूक को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
- भविष्य के वादियों के लिए: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपील दाखिल करने में देरी को गंभीरता से लिया जाएगा। समयसीमा का पालन आवश्यक है।
- आम जनता के लिए: यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि पेंशन का लाभ केवल उन्हीं को मिले जो विधिक नियमों का पालन करते हैं।
कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय
- प्रश्न 1: क्या अपील दाखिल करने में लगभग छह साल की देरी माफ की जा सकती है?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: अपीलकर्ता ने पर्याप्त या ठोस कारण नहीं बताया, इसलिए विलंब माफी अस्वीकार की गई।
- प्रश्न 2: क्या अपीलकर्ता अपनी नौसेना सेवा को पेंशन में जोड़ने के पात्र थे?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: उन्होंने नियम 87 के तहत तीन महीने में विकल्प नहीं दिया और ग्रेच्युटी राशि जमा नहीं की।
- प्रश्न 3: क्या 01.06.2005 का वित्त विभाग परिपत्र अपीलकर्ता पर लागू होता है?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: यह परिपत्र केवल राज्य सरकार के मौजूदा कर्मचारियों के लिए था, न कि उन पर जो अन्य सेवाओं से राज्य में आए हों।
मामले का शीर्षक
Letters Patent Appeal No. 44 of 2021 in CWJC No. 14254 of 2011 — अपीलकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य।
केस नंबर
L.P.A. No. 44 of 2021 (I.A. No. 01 of 2021 के साथ)।
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 739
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार।
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता के लिए: श्री राम हृदय प्रसाद, अधिवक्ता।
- प्रतिवादियों के लिए: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता; श्री सरोज कुमार शर्मा, सहायक अधिवक्ता (AAG-3 के सहयोगी)।
निर्णय का लिंक
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